खूंटी: धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जयंती उलिहातू में मनाई गई. आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण कोई भी सरकारी या राजनीतिक दलों के द्वारा कार्यक्रम का आयोजन नहीं हुआ. भगवान बिरसा मुंडा जयंती के अवसर पर ग्रामीणों में भी खास उत्साह नहीं देखा गया. गांव के पाहन और बिरसा मुंडा के वंशज सुखराम मुंडा एवं परिजनों ने पारंपरिक रीति रिवाज के साथ पूजा अर्चना कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की. इसके बाद उलिहातू के ग्रामीण एवं आसपास के दूसरे गांव से पहुंचे लोगों ने श्रद्धांजलि देकर नमन किया है.
दूर-दूर से बिरसायत समाज के लोगों ने भी पहुंचकर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किया. बिरसा मुंडा वंशज जंगल मुंडा ने बताया कि दूर दराज से ग्रामीण एवं बिरसायत बड़ी संख्या में पहुंच कर पारंपरिक रीति रिवाज से पूजा किए हैं. वहीं परपोते सुखराम मुंडा ने कहा कि उलिहातू में तस्वीर बदली है, लेकिन उनका पुस्तैनी घर नहीं बना है. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक उनके गांव पहुंचे और घर बनाने का आश्वसन मिला है. राष्ट्रपति ने खुद उनका घर बना कर देने को कहा था बावजूद उनके पुश्तैनी घर नहीं बना, उनको वह मलाल है.
जयंती के मौके पर तमाड़ विधायक विकास कुमार मुंडा ने बिरसा मुंडा के वंशज सुखराम मुंडा से मिलकर उनका हाल-चाल लिया एवं श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि अंग्रेज शासन के दौरान जब अत्याचार किया जा रहा था, तब बिरसा मुंडा ने अधिकारों की रक्षा एवं स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया है. मातृभूमि की आन बान और शान की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया है. बिरसा मुंडा आदिवासी जनजातीय समाज ही नहीं अन्य वर्गों के लिए भी प्रेरणा के स्रोत हैं.
वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि बिरसा जयंती को केंद्र सरकार जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाती है. वैसे स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ सुदूर जंगली क्षेत्र में देश और समाज को जागृत करने के लिए अभियान चलाया और उसे नाम दिया गया 'उलगुलान'. जिसके नायक बिरसा मुंडा ने अपने कम आयु में विलक्षण नेतृत्व से समाज को एकजुट कर अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था. जिससे अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. वे जनजातीय समाज में नायक के तौर पर उभरे, जिन्होंने समाज को रास्ता दिखाया एवं एक सूत्र में बंधा और अल्प आयु में उनका देहांत हुआ है.