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बिहार में जहरीली शराब से मौत का आंकड़ा 60 पार, छपरा और सिवान के 16 गांवों में नाच रही मौत

बिहार में शराब से मौत की संख्या बढ़कर 65 हो गयी है. सिवान और छपरा के 16 गांवों में शराब का कहर जारी है.

By ETV Bharat Bihar Team

Published : 4 hours ago

Updated : 4 hours ago

बिहार में शराब से मौत
बिहार में शराब से मौत (ETV Bharat)

पटना:बिहार में शराब से मौत का सिलसिला नहीं थम रहा है. बिहार में कुल मौत की संख्या 65 हो गयी है, जिसमें सिवान में 48, सारण में 15, और गोपालगंज में 2 की मौत हुई. हलांकि प्रशासनिक पुष्टि 37 है जिसमें सिवान में 28, सारण में 7 और गोपालगंज में 2 मौत हुई है. छपरा और सिवान जिलों के 16 गांवों में इसका कहर देखने को मिल रहा है. 50 बीमार हैं, जिनका इलाज सदर अस्पताल, बसंपतपुर सीएचसी और पीएमसीएच पटना में चल रहा है.

सारण में 15 की मौतः सारण में 15 लोगों की मौत हुई है लेकिन सरकारी पुष्टि 7 की है. छपरा डीएम अमन समीर और एसपी डॉ. आशीष कुमार ने बताया कि सात लोगों की मौत की जानकारी है. छपरा पुलिस की एसआईटी टीम ने एक शराब कारोबारी को गिरफ्तार किया है. भगवानपुर हाट थाना क्षेत्र के बिलासपुर गांव का निवासी है. आरोपी रजनीकांत जहरीली शराब की सप्लाई चेन में एक कड़ी का काम करता था. सिवान में भी एसआईटी 10 लोगों को गिरफ्तार किया है.

बिहार में शराब से मौत पर विशेषज्ञों की राय (ETV Bharat)

"रजनीकांत नाम के व्यक्ति को शराब सप्लाई के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. इस पूरे कांड का एक छोटी सी कड़ी है. एसआईटी टीम लगातार छापेमारी कर रही है. पुलिस छोटे से बड़े सभी माफिया पर ध्यान दे रही है जो भी आरोपी हैं उन पर कार्रवाई की जाएगी."-डॉ कुमार आशीष, एसपी, सारण

गोपालगंज में 2 मौतः सिवान और छपरा के अलावे गोपालगंज में कुल दो लोगों की मौत हुई है. एक का इलाज चल रहा है. गोपालगंज के मोहम्मदपुर निवासी लाल बालू राय और बैकुंठपुर के बंधौली गांव में लालदेव मांझी की मौत हुई है. लालदेव मांझी का पुत्र प्रदीप कुमार अस्पताल में भर्ती है. बताया जाता है कि लालदेव मांझी पिता पुत्र मशरख में भैंस खरीदने के लिए गए थे, वहीं शराब पी थी.

शराबबंदी के 8 साल से ज्यादाः बता दें कि बिहार में शराबबंदी हुए 8 साल हो गए लेकिन अब तक पूर्ण रूप से यह लागू नहीं हुआ. राज्य के जिलों में खुलेआम शराब की बिक्री होती है. लोग पीते हैं और मरते हैं. पिछले 2016 से 2024 की बात करें तो इस बीच करीब 500 से ज्यादा लोगों की मौत हुई होगी, लेकिन सरकार इस ओर कोई सख्त कदम नहीं उठा पायी. इसका असर है कि एक बार फिर बिहार में जहरीली शराब से मौत हो रही है.

बंदी के बाद शराब बिक्री जारीः बिहार में 1 अप्रैल 2016 शराबबंदी लागू हुआ. 5 अप्रैल 2016 से सभी तरह की शराब पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस कानून के तहत ना तो कोई शराब पी सकता है और ना ही इसे बेच सकता है, लेकिन बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बाद रोज शराब पीने वाले और शराब का कारोबार करने वाले पकड़े जा रहे हैं. आए दिन शराब की बड़ी खेप बरामद होती रही है. देसी शराब तो बिहार में खुलेआम बनायी जाती है.

कई फैक्ट्री का उद्भेदनः राजधानी पटना की बात करें तो 2018 में आर ब्लॉक चौराहा व हड़ताली मोड़ के बीच रेलवे ट्रैक के किनारे झुग्गी झोपड़ी में दर्जन भर से ज्यादा देसी शराब की भट्ठी पकड़ी गई थी. जनवरी 2020 में नगर चौराहे के पास पुलिस ने हजारों लीटर देसी शराब बरामद की थी. नाले के अंदर भट्टी बनायी गयी थी. 2022 में दानापुर रेलवे स्टेशन के पास शराब की दर्जनों भट्ठियां तोड़ी गई. रूपसपुर के जलालपुर नहर के नजदीक शराब बनाई जा रही थी. बहुमंजिली इमारत के पास शराब माफिया फैक्टरी लगा रखा था.

शराबबंदी से अब तक हुई कार्रवाई (ETV Bharat GFX)

पटना में कई फैक्ट्री का भंडाफोड़ः 16 अक्टूबर 2024 को पटना के कांटी फैक्ट्री रोड में शराब बनाने के कारखाना का खुलासा हुआ. मद्य निषेध विभाग के छापेमारी में पैकिंग मशीन, ड्रायर, 800 खाली बोतल, 44 बोतल शराब, 200 पीस ढक्कन, 600 रैपर के साथ 2 लोगों को गिरफ्तार किया था. इतनी शराब बरामदगी और निर्माण का खुलासा होने के बावजूद सरकार मान रही है कि बिहार में शराबबंदी है.

जिलों में देसी शराब का कारोबारःसारण पुलिस ने सितंबर 2024 में सरयू नदी के सीमावर्ती दियरा क्षेत्र के तीन दर्जन देसी शराब की भट्ठी को ध्वस्त किया था. इस दौरान पुलिस ने लगभग दस हजार लीटर कच्चा जावा व शराब बनाने वाले उपकरण को नष्ट कर दिया. छापेमारी के दौरान पुलिस ने एक हजार लीटर देसी शराब भी बरामद की थी.

छपरा में अवैध भट्टी का संचालनः दिसंबर 2022 में छपरा में उत्पाद विभाग की टीम बलवा दियारा में छापेमारी की. पांच घंटे तक चले ऑपरेशन के दौरान 5 अवैध शराब निर्माण करने के ठिकानों को ध्वस्त किया गया था. भारी मात्रा में कच्ची शराब बरामद की थी. मार्च 2023 में मुजफ्फरपुर पुलिस ने सदर थाना क्षेत्र के सीमावर्ती इलाके माधोपुर-सुस्ता पोखर के पास एक श्मशान घाट में शराब भट्टी को ध्वस्त किया था. रात के अंधेरे में शराब माफिया देसी शराब बनाते थे.

अब तक मौत का आंकड़ाःबिहार में 2016 में पूर्ण रूप से शराबबंदी लागू हुआ. इसी के बाद से जहरीली शराब पीने से मौत का सिलसिला जारी है. सरकारी आंकड़ा पर गौर करें तो 2016 में 156, 2018 में 9, 2021 में 90, 2022 में 100 से अधिक, 2023 में 35 और 2024 में अब तक 28 लोगों की मौत हुई है.

12.7 लाख की गिरफ्तारीःमद्य निषेध विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार एक अप्रैल 2016 से अब तक उत्पाद विभाग व बिहार पुलिस ने 69216 छापेमारी की है. उत्पाद विभाग के द्वारा 23562 व पुलिस विभाग के द्वारा 45654 छापेमारी हुई. अगस्त 2014 तक मध्य निषेध विभाग की ओर से शराबबंदी कानून के उल्लंघन के आरोप में 8.43 लाख मामले दर्ज किए गए हैं. कुल 12.7 लाख लोगों की अब तक गिरफ्तारी हो चुकी है.

शराब से मौत का आंकड़ा (ETV Bharat GFX)

NCRB के चौकाने वाला आंकड़ा: NCRB की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बाद 2016 से 2021 तक अब तक मात्र 23 लोगों की मौत हुई है. अगस्त 2024 तक मद्य निषेध विभाग की ओर से निषेध कानूनों के उल्लंघन से संबंधित कुल 8.43 लाख मामले दर्ज किए गए हैं. जिनमें राज्य के बाहर के 234 लोगों सहित कुल 12.7 लाख लोगों को अब तक गिरफ्तार किया गया है. संबंधित अधिकारियों ने अब तक 3.46 करोड़ लीटर शराब जब्त की है.

सरकारी फाइलों में शराबबंदीः बिहार के सिवान और छपरा में जहरीली शराब की मौत के बाद फिर से शराबबंदी पर सवाल उठने लगे हैं. वरिष्ठ पत्रकार सुनील पांडेय का कहना है बिहार में 8 वर्षों से पूर्ण शराबबंदी है, लेकिन हकीकत यही है कि यह सरकारी फाइलों में ही है. हकीकत यही है कि शराब आम लोगों के पास आसानी से उपलब्ध हैं. बड़े लोग बड़े ब्रांड के शराब घर पर मंगवा कर पीते हैं. नीचे तबके के लोग देसी शराब का सेवन करते हैं.

"यह दिलचस्प पहलू है कि शराब पीकर मरने वाले लोगों में अधिकांश गरीब तबके के लोग हैं. शराब के व्यापार के रूप में गिरफ्तार होने वाले लोगों में अधिक संख्या गरीब तबके के लोगों की ही है. बड़े लोग महंगे और बड़े ब्रांड की शराब मंगा कर पीते हैं इसलिए इनकी मौत नही होती है."-सुनील पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार

20000 करोड़ का नुकसानः सुनील पांडेय का कहना है कि लोग जानते हैं की देसी शराब के सेवन से जान जा सकती है. जिस विधि से इसका निर्माण किया जाता है उसमें जान जाने का खतरा ज्यादा रहता है. सुनील पांडेय का कहना है कि बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बाद भी हजारों करोड़ रुपए का पैरेलल इकोनामी चलाया जा रहा है. 20000 करोड़ रुपए राजस्व का नुकसान है.

"सुनील पांडे का कहना है कि शराब के व्यापार में व्यापारियों के अलावा गांव की चौकीदार से लेकर जिले के आला अधिकारी और बड़े सफेदपोश शामिल हैं. यही कारण है कि बिहार में शराबबंदी सफल नहीं हो पा रहा है."-सुनील पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार

शराब तस्करी प्रशासन की विफलता का सबूत:सुनील पांडेय का कहना है कि प्रतिदिन हर एक जिले में शराब की बड़ी खेप जब्त हो रही है. सबसे चिंता की बात है कि अवैध शराब की भट्ठी राज्य के सभी जिलों में आए दिन छापेमारी में देखने को मिलती है. पटना के पोस्ट इलाकों में भी अवैध शराब की भट्ठी चल रही है. ऐसा कोई दिन नहीं है जिस दिन शराब के धंधे से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी नहीं होती है.

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