भोपाल। कबाड़ किसके घर नहीं निकलता और लोग उसे इकठ्ठा कर या तो फेंक देते हैं या कबाड़ी को दे देते हैं. भोपाल के रहने डीपी तिवारी का नजरिया कुछ अलग है. उनकी निगाहें कबाड़ को खोजती हैं. इन मॉडल्स को पहली नजर में देखकर आप नहीं कह सकते कि ये कबाड़ से बने हैं लेकिन वास्तव में ये कबाड़ से ही बनाए गए हैं. कहते हैं कि यदि देखने का नजरिया अच्छा हो तो कबाड़ को भी आकर्षक रूप दिया जा सकता है.
40 सालों में तकरीबन 400 मॉडल
कोल इंडिया में नौकरी करने के बाद भी कुछ नया करने की चाहत. नौकरी के साथ साथ और रिटायरमेंट के बाद भी उन्होंने मिनिएचर मॉडल बनाना जारी रखा. पिछले 40 सालों में तकरीबन 400 मॉडल तैयार कर दिए.सभी एक से बढ़कर एक. भोपाल के रिटायर्ड अधिकारी डीपी तिवारी ने कबाड़ के सामानों को इस तरह आकार दिया कि उनका नाम एक बार नहीं, बल्कि तीन बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हो चुका है. उन्होंने अलग-अलग सेनाओं से जुड़े इक्युपमेंट, हथियार, म्यूजिक, ट्रांसपोर्ट से जुड़े कई मॉडल तैयार किए हैं. वे अपने मॉडल्स की देश के कई शहरों में प्रदर्शनी भी लगा चुके हैं.
कबाड़ को ढूंढ़ती हैं निगाहें
देवेन्द्र प्रकाश तिवारी बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही कबाड़ के छोटे-मोटे सामानों से कुछ नया बनाने का शौक था, इसलिए जब भी इलेक्ट्रॉनिक्स या कोई ऑटो पार्ट्स मिलता तो उसे संभाल कर रख लेते. बाद में एनसीसी में सिलेक्ट हुआ, तो इन कबाड़ के सामानों से बंदूक, हेलीकॉप्टर आदि सामान बनाने शुरू कर दिए. लोगों से तारीफ मिली, तो उत्साह भी बढ़ता गया. बाद में कोल इंडिया में सर्विस में आ गया. नौकरी की व्यस्तता के बाद भी कबाड से जुगाड़ कर कुछ न कुछ नया बनाने की कोशिश करता रहा.
दोस्त भी करते हैं मदद
डीपी तिवारी बताते हैं कि शौक ऐसा है कि जब भी कहीं जाता हूं तो हमेशा नजर नीचे ही होती है कि कहीं कुछ काम का मिल जाए. इलेक्ट्रिक, ऑटोमोबाइल शॉप पर कई बार यूं ही पहुंच जाता हूं. मेरे दोस्तों को भी मेरे शौक का पता है, इसलिए जब भी उनके पास कुछ कबाड़ का सामान होता है, तो वे फेंकते नहीं, बल्कि मुझे दे देते हैं.