रांचीः मंईयां सम्मान योजना के लाभुकों के लिए खुशखबरी है. दिसंबर माह की 11 तारीख को लाभुकों के खाते में 2500 रु. ट्रांसफर हो जाएंगे. झामुमो नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने शुभकामनाएं देते हुए कहा कि कमिटमेंट के मुताबिक हेमंत सरकार ने 2500 रुपए प्रतिमाह देने के प्रस्ताव को स्वीकृत कर दिया है. 11 दिसंबर को बैंक खातों में खटाखट खटाखट पैसे गिरने लगेंगे.
इस सूचना के साथ आदिम जनजाति 'पहाड़िया' के उत्थान के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से विशेष समिति बनाने के बाबूलाल मरांडी के सुझाव पर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने काउंटर सुझाव पेश किया है. झामुमो के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि बाबूलाल मरांडी को मालूम होना चाहिए कि पूर्व सीएम शिबू सोरेन ने सबसे पहले झारखंड में आदिम जनजातियों की सीधी नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की थी. इसका पालन हेमंत सरकार ने भी किया. अब चुनावी नतीजे आने के बाद बाबूलाल मरांडी को पहाड़िया समाज की चिंता सता रही है. उनको मगरमच्छ के आंसू निकालने के बजाय भाजपा शासित छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा में निवास करने वाली आदिम जनजातियों की स्थिति का अध्ययन करना चाहिए.
झामुमो के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि झारखंड की 33 जनजातियों में नौ जनजातियां 'आदिम जनजाति' की श्रेणी में आती हैं. इनमें पहाड़िया जनजाति भी है. इनको चतरा और लातेहार के कुछ अंचलों में बैगा कहा जाता है. इसी तरह भाजपा शासित ओडिशा में 15, छत्तीसगढ़ में 12 और मध्य प्रदेश में 18 आदिम जनजातियां निवास करती हैं. लिहाजा सबसे धनी दल के प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व सांसद और वर्तमान विधायक होने के नाते बाबूलाल मरांडी को तीनों राज्यों का दौरा कर वहां की आदिम जनजातियों की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य और रोजगार से जुड़ी स्थिति का अध्ययन करना चाहिए.
झामुमो के प्रवक्ता ने बाबूलाल मरांडी को सुझाव देते हुए कहा कि उनको झारखंड की पहाड़िया जनजाति की तुलना तीनों भाजपा शासित राज्यों के आदिम जनजातियों से कर लेनी चाहिए. तस्वीर साफ हो जाएगी, लिहाजा, अब बाबूलाल मरांडी को संभल कर बात करना चाहिए. उन्होंने कहा कि बाबूलाल मरांडी को असम के चाय बागानों में जाकर बसे, यहां के जनजातीय की चिंता करनी चाहिए. उनको हक दिलाना चाहिए, लेकिन केंद्र में मंत्री रहने के बावजूद बाबूलाल मरांडी ने असम के चाय बागानों में रह रहे, यहां के आदिवासियों को आदिवासी का दर्जा देने की बात कभी नहीं उठाई.