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महादेव को क्यों बेहद प्रिय है बेलपत्र, महाशिवरात्रि पूजन का शुभ मुहूर्त और पूजन विधान क्या है जानिए - MAHASHIVRATRI 2025

उपवास और रात्रि जागरण का क्या विधान है, इस बार बन रहे खास संयोग के बारे में जानिए.

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शिवरात्रि पर शिव को क्यों अर्पित की जाती है बेलपत्र (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 25, 2025, 2:00 PM IST

वाराणसी : भगवान भोलेनाथ की आराधना कभी भी की जा सकती है, लेकिन महाशिवरात्रि पर पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन का फल अन्य दिनों की पूजा से कहीं अधिक होता है. महाशिवरात्रि साल में एक बार आती है और यह गृहस्थ, साधु संतों और अघोर साधना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस दिन शिव पूजन का विशेष विधान होता है, जिसमें बेलपत्र अर्पित करना अनिवार्य है, यह क्यों भगवान शिव को प्रिय है ? पूजा में ऐसी कौन सी सामग्री का समावेश होना चाहिए जानिए...



उपवास-व्रत सहित करें रात्रि जागरण :इस बारे में पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि देवाधिदेव महादेव को प्रसन्न करने के लिए व्रतों में महाशिवरात्रि का अपना एक विशेष महत्व है, जो पूरे भारत सहित जहां पर सनातन धर्मावलंबी हैं वे सभी लोग महाशिवरात्रि को उपवास-व्रत सहित रात्रि जागरण करते हैं. मान्यता के अनुसार, भगवान शिवजी का विवाह माता पार्वती के साथ इसी दिन हुआ था. इस दिन प्रयाग तथा काशी में गंगा व त्रिवेणी स्नान का भी विशेष महत्व होता है, जो व्यक्ति निराहार रहकर रात्रि के चारों प्रहर शिव पूजन करता है उससे देवाधिदेव अतिप्रसन्न होते हैं.


भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है महापर्व :उन्होंने बताया कि इस बार महाशिवरात्रि व्रत 26 फरवरी को है. फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी को दिन में 09 बजकर 20 मिनट पर लग रही है, जो 27 फरवरी को प्रात: 08 बजकर 08 मिनट तक रहेगी. वहीं, महाशिवरात्रि व्रत के बारे में लिंग पुराण में कहा गया है कि ''प्रदोष व्यापिनी ग्राह्या शिवरात्र चतुर्दशी''. ''रात्रिजागरणं यस्यात तस्मातां समूपोषयेत''. अर्थात महाशिवरात्रि फाल्गुन चतुर्दशी को प्रदोष व्यापिनी लेना चाहिए. रात्रि में जागरण किया जाता है. इस कारण प्रदोष व्यापिनी ही उचित होता है.

इस बार महाशिवरात्रि पर सभी पुराणों का संयोग :पंडित ऋषि का कहना है कि वास्तव में महाशिवरात्रि में तिथि निर्णय में तीन पक्ष हैं. एक तो, चतुर्दशी को प्रदोषव्यापिनी, दूसरा निशितव्यापिनी और तीसरा उभयव्यापिनी, धर्मसिंधु के मुख्य पक्ष निशितव्यापिनी को ग्रहण करने को बताया है. वहीं धर्मसिंधु, पद्मपुराण, स्कंदपुराण में निशितव्यापिनी की महत्ता बतायी गयी है, जबकि लिंग पुराण में प्रदोषव्यापिनी चतुर्दशी की महत्ता बतायी है, जो इस बार महाशिवरात्रि पर सभी पुराणों का संयोग है.




महाशिवरात्रि के समान कोई पाप नाशक व्रत नहीं :धर्मशास्त्र में महाशिवरात्रि व्रत का सर्वाधिक बखान किया गया है. कहा गया है कि महाशिवरात्रि के समान कोई पाप नाशक व्रत नहीं है. इस व्रत को करके मनुष्य अपने सर्वपापों से मुक्त हो जाता है और अनंत फल की प्राप्ति करता है जिससे एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा सौ वापजेय यज्ञ का फल प्राप्त करता है. इस व्रत को जो 14 वर्ष तक पालन करता है उसके कई पीढ़ियों के पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में मोक्ष या शिव के परम धाम शिवलोक की प्राप्ति होती है. महाशिवरात्रि व्रत व शिव की पूजा भगवान श्रीराम, राक्षसराज रावण, दक्ष कन्या सति, हिमालय कन्या पार्वती और विष्णु पत्नी महालक्ष्मी ने किया था. जो मनुष्य इस महाशिवरात्रि व्रत के उपवास रहकर जागरण करते हैं उनको शिव सायुज्य के साथ अंत में मोक्ष प्राप्त होता है.


बेलपत्र चढ़ाने से अमोघ फल की प्राप्ति :इस दिन विधि-विधान से शिवलिंग का अभिषेक, भगवान शिव का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करने से सहस्रगुणा अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है. महाशिवरात्रि के दिन गंगा स्नान या प्रयाग में त्रिवेणी स्नान कर भगवान आशुतोष को पूजा में बेलपत्र चढ़ाने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है. ऐसा बेलपत्र जिसमें तीन पत्र अखंडित एक साथ हो, बेलपत्र की संख्या के बराबर युगों तक कैलाश में सुख पूर्वक वास करता है. ऐसा भक्त श्रेष्ठ योनि में जन्म लेकर भगवान शिव का परम भक्त होता है. उसके लिए नाना प्रकार की सम्पत्ति, भूमि, भवन, पुत्र, पौत्र, ज्ञान, विद्या आदि सभी स्वमेय सुलभ हो जाते हैं.


शास्त्र के अनुसार बेल के तीन पत्र शिव के त्रिनेत्र कहे गये हैं, जो व्यक्ति निराहार रहकर रात्रि के चारों प्रहर शिव पूजन करता है. पूजन में मंदार, धतूरा के पुष्प, भांग-धतूरा आदि नैवेद्य के साथ भोग लगाना चाहिए. इसी के साथ भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ओम नम: शिवाय, शिव तांडव, शिव महिम्न स्रोत आदि का पाठ करना चाहिए. काशी में इस दिन चतुर्दश लिंग की पूजा तथा कृतिवासेश्वर दर्शन के साथ ही वैद्यनाथ जयंती भी मनायी जाती है.

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