नई दिल्ली: राष्ट्रीय चोट रोकथाम सप्ताह की समाप्ति के अवसर पर नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऑडिटोरियम में आयोजित एक जागरूकता कार्यक्रम में स्पाइनल कॉर्ड सोसाइटी के अध्यक्ष व स्पाइन वेलनेस एंड केयर फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ. हरविंदर सिंह छाबड़ा ने इस पर कई अहम जानकारियां दी. उनका कहना था कि एक समय ऐसा माना जाता था कि स्पाइन इंजुरी का इलाज संभव ही नहीं है, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान स्पाइन की इंजुरी को लेकर जो शोध हुए उससे इस प्रकार की घातक चोटों का इलाज संभव हो पाया.
डॉ. छावड़ा ने बताया कि शरीर के दूसरे हिस्सों की कोशिकाओं की तरह स्पाइनल कॉर्ड की कोशिकाएं नष्ट होने के बाद दोबारा नहीं बनती हैं. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में सीट बेल्ट न पहनने के कारण सड़क दुर्घटनाओं में 16,397 लोगों की जान चली गई, जिनमें 8, 438 ड्राइवर और 7,959 यात्री शामिल हैं. यह आंकड़ा चोट की रोकथाम और सुरक्षा जागरूकता में निरंतर प्रयासों की महत्वपूर्ण आवश्यकता को दर्शाता है.
उन्होंने कहा कि इस पहल का उद्देश्य स्पाइनल इंजुरी के बारे में लोगों को जागरूक करना है. अधिकतर लोगों को यह पता ही नहीं है. विडंबना यह है कि समाज में ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य पेशेवरों और नीति निर्माताओं में भी इसको लेकर जागरूकता का अभाव है. इसीलिए समाज में व्यापक स्तर पर जागरूकता लाने के लिए इस प्रकार के जागरूकता कार्यक्रम आवश्यक हैं.
डॉ. छावड़ा ने बताया कि उन्होंने स्पाइन इंजुरी से पीड़ित लोगों से जाना कि सामान्य जीवन जीने में उन्हें कोई परेशानी तो नहीं हो रही है. उन्होंने बताया कि गंभीर स्पाइन चोटों के कारण जो व्हील चेयर पर आ गए हैं, उनमें जीवन जीने के प्रति इतना जोश और उत्साह है कि उन्होंने स्पोर्ट्स और सांस्कृतिक कार्यक्रम में शानदार प्रदर्शन कर लोगों को प्रभावित किया.
स्पाइन कॉर्ड इसलिए होते हैं घातक