बस्तर : विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की एक और महत्वपूर्ण मावली परघाव रस्म शनिवार की रात अदा की गई. दो देवियों के मिलन के इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण कुटरूबाढ़ा में निभाई गई. इस रस्म को देखने हर साल की तरह शनिवार रात भी बड़ी संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ा था.
माईजी की डोली का भव्य स्वागत : परंपरा के मुताबिक, दंतेवाड़ा से मावली देवी की छत्र डोली और दंतेश्वरी के छत्र को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया गया. दंतेवाड़ा से पहुंची माईजी की डोली और छत्र का भव्य स्वागत राजपरिवार सदस्य कमलचंद भंजदेव और बस्तरवासियों ने किया. आतिशबाजियां की गई, फूलों की बारिश की गई. माईजी की डोली का स्वागत की परम्परा को देखने बड़ी संख्या में स्थानीय लोग भी पहुंचे.
मावली परघाव रस्म हुई पूरी (ETV BHARAT)
यह सबसे महत्वपूर्ण रस्म है. सिर पर पहनाया गया फूल से बना साफा है. यह फूल केवल जंगल मे पाया जाता है. राजा को यह पहनाया जाता है और इसकी पूजा होती है. इसी साफा को पहन कर देवी की डोली को राज महल परिसर स्थित दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित किया जाता है और दशहरा पर्व के अन्य रस्मों में शामिल किया जाता है. रीति रिवाजों और परंपराओं को देखकर काफी खुशी होती है. परमपराओं से ही भारत विश्वगुरु बनेगा और आने वाली पीढ़ी भी इसी रीति से रस्मों को निभाएगी. : कमलचंद भंजदेव, सदस्य, बस्तर राज परिवार
राजपरिवार सदस्य ने की पूजा अर्चना : बस्तर दशहरा की परम्परा के अनुसार, बस्तर राजपरिवार सदस्य कमलचंद भंजदेव ने माईजी की डोली की पूजा अर्चना की. जिसके बाद माईजी की डोली को दशहरा पर्व समापन होने तक मंदिर के भीतर रखा गया है. बस्तर दशहरा के दौरान होने वाली महत्वपूर्ण रस्म भीतर रैनी और बाहर रैनी, कुटुम जात्रा, काछन जात्रा में डोली और छत्र को शामिल किया जाएगा.
रियासतकाल से देवी देवताओं को दशहरा में निमंत्रण दिया जाता है और आज भी मावली देवी के साथ अन्य देवी देवताओं को निमंत्रण दिया गया था. निमंत्रण के बाद दशहरा मनाने के लिए मावली देवी के साथ सभी देवी देवता बस्तर पहुंचे हैं. : कृष्ण कुमार पाढ़ी, पुजारी, दंतेश्वरी मंदिर
संजय मार्केट के कुटरू बाड़ा में यह रस्म निभाया गया. पहले और अभी के दशहरा पर्व में बहुत बदलाव देखने की मिल रहा है. हम छोटे समय से पर्व को देखते आये हैं. अभी भीड़ काफी उमड़ती है. भारत देश के लोगों के अलावा विदेशों से भी लोग बस्तर आते हैं. : मांझी, स्थानीय निवासी
देश विदेश से पर्यटक पहुंचे हैं बस्तर : भिलाई निवासी बालक अनुरुद्र ने बताया कि वे भिलाई से खासतौर पर बस्तर दशहरा पर्व को देखने के लिए अपने परिवार सहित यहां आए हैं. उन्होंने कहा कि वे बस्तर के दशहरे को देखने के लिए काफी उत्साहित हैं. बस्तर का दशहरा पर्व देश दुनिया से अलग है. बाकी जगह रावण का पुतला दहन होता है, लेकिन बस्तर में विशालकाय रथ चलता है.
मावली परघाव रस्म में जो भक्तों का श्रद्धा भक्ति भावना देखने को मिला, यह अभूतपूर्व है. जनसैलाब उमड़ पड़ा और देवी का दर्शन किया. लोगों की आस्था देवी के साथ जुड़ी हुई है. : केदार कश्यप, वन मंत्री, छत्तीसगढ़
बस्तर दशहरा का ऐतिहासिक महत्व : दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण में मनाए जाने वाले मावली परघाव रस्म को देखने हजारों की संख्या में हर साल लोग पहुंचते हैं. 600 साल पहले रियासतकाल से इस रस्म को धूमधाम से मनाया जाता है. बस्तर के महाराजा रुद्र प्रताप सिंह डोली का भव्य स्वागत करते थे. यह परंपरा आज भी बस्तर में बखूबी निभाई जाती है.
बस्तर राजपरिवार की कुलदेवी हैं माईजी : मान्यता के अनुसार, देवी मावली कर्नाटक राज्य के मलवल्य गांव की देवी हैं, जो छिन्दक नागवंशी राजा द्वारा उनके बस्तर के शासनकाल में लाई गई थीं. छिंदक नागवंशी राजाओं ने 9वीं और 14वीं शताब्दी तक बस्तर में शासन किया. इसके बाद चालुक्य वंश के राजा अन्नम देव ने जब बस्तर में अपना नया राज्य स्थापित किया, तब उन्होंने देवी मावली को अपनी कुलदेवी के रूप में मान्यता दी. मावली देवी का बस्तर दशहरा पर्व में यथोचित सम्मान और स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई.
दशहरा समापन तक यहां रहेंगी माईजी : जानकारों के मुताबिक, दंतेवाड़ा से आई मावली देवी की डोली का स्वागत करने बस्तर राजपरिवार सदस्य, राजगुरु और पुजारी के अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधि राजमहल से मंदिर के प्रांगण तक आते हैं. उनकी अगवानी और पूजा अर्चना के बाद माईजी की डोली को बस्तर के राजकुमार कंधों पर उठाकर राजमहल स्थित देवी दंतेश्वरी के मंदिर में लाकर रखते हैं. साथ ही दशहरे के समापन पर इसकी ससम्मान विदाई की जाती है.