उमरिया।बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से लगे गांवों में कई बार लोगों की जान भी जंगली जानवरों के हमले में चली जाती है. क्योंकि महुआ संग्रहण करने वाले लोग, चरवाहे, सावधानी नहीं बरतते और बिना सतर्कता के ही बहुत सुबह महुआ बीनने, साथ ही रातभर मवेशियों को लेकर जंगल में निकल जाते हैं. पिछले साल इसी तरह की घटनाओं में एक दर्जन से ज्यादा लोग घायल हो गए थे. इसी सप्ताह बुधवार और गुरुवार की दो अलग-अलग घटनाओं में दो व्यक्ति घायल हो गए. पहली घटना में भालू के हमले में एक युवक के घायाल होने की जानकारी सामने आई थी. यह घटना बुधवार को हुई थी. यह घटना मानपुर रेंज के ग्राम समरकोइनी में हुई थी. जिसमें दासू पिता बाबू लाल बैगा घायल हो गया था.
बाघ ने किया चरवाहे पर हमला, गंभीर घायल
दूसरी घटना गुरुवार की है. जिसमे बाघ ने एक चरवाहे पर हमला कर दिया. गुरुवार शाम करीब 5 बजे हुई इस घटना में बहादुर सिंह पिता मरदन सिंह मरावी उम्र 65 निवासी बदरेहल गम्भीर रूप से घायल हो गया. मौके पर पहुंचे पार्क के अधिकारियों ने घायल को जिला अस्पताल पहुंचाया. बता दें कि महुआ संग्रहण करने के लिए आदिवासी भोर के पहले, मध्य रात्रि के बाद ही जंगल में निकल जाते हैं. जंगल में घना अंधेरा छाया रहता है. ऐसे में झाड़ियों में छिपकर बैठे जंगली जानवर नजर नहीं आते और ग्रामीण उनका शिकार हो जाते हैं. ऐसे में बाघों के हमले की घटनाएं बढ़ जाती हैं. बाघों के अलावा भालू, हाथी, तेंदुए और दूसरे जानवर भी इस सीजन में हमलावर रहते हैं.
टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने ग्रामीणों किया जागरूक
जानवरों के इस तरह के हमलों से आदिवासियों को बचाने में पार्क प्रबंधन जुट गया है. इसके लिए ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है कि वे समूह में ही महुआ संग्रहण के लिए निकलें. सुरक्षा श्रमिकों को भी अलर्ट किया जा रहा है कि वे जंगल से लगे गांव के आसपास बाघों की लोकेशन पर नजर रखें और ग्रामीणों को सतर्क करते रहें. यदि सुरक्षा श्रमिक जंगली जानवरों की लोकेशन पर नजर रखेंगे तो वे पहले से ग्रामीणों को अलर्ट कर सकेंगे और घटनाए नहीं हो सकेंगी. हालांकि इस दौरान अलग-अलग घटनाओं में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में ही अभी नए साल अर्थात तीन महीने में 9 बाघों के अलावा भालू, हिरन, चीतल सहित अन्य वन्यजीव भी मारे गए.
जंगल घटने से गांवों की ओर आते हैं जानवर
जाहिर है, वन्यजीवों और मनुष्य के बीच जीवन की स्थितियों में बदलाव और टकराव के चलते अब ऐसे हालात पैदा होने लगे हैं कि नाहक जान जाने की घटनाओं की निरंतरता बढ़ने लगी है. दरअसल, वक्त के साथ बढ़ती आबादी या अन्य वजहों से जंगल के आसपास के गांवों में रिहाइशी इलाकों का विस्तार हुआ है. इससे वन क्षेत्रों का दायरा कम होता गया है और जंगली पशुओं के प्राकृतिक पर्यावास के क्षेत्र सिमटते गए हैं. इसका सीधा असर वन्यजीवों के जीवन पर पड़ता है और उसमें बाघ या तेंदुए जैसे पशुओं के लिए भोजन से लेकर अधिवास तक के मामले में असहज स्थितियां पैदा होती हैं.