वाराणसी: बिहार के दशरथ मांझी की कहानी तो हर किसी को याद होगी, जिन्होंने अपनी पत्नी के प्रेम में पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया. कुछ ऐसे ही तस्वीर बनारस के एक गांव में नजर आ रही है. जहां उनकी जरूरत ने गांव वालों को दशरथ मांझी के राह पर चलने के लिए मजबूर कर दिया है. यह गांव है बनारस का दानियाल पुर गांव, जहां गांव वालों के पास रास्ता न होने के कारण उन्हें चंदा जुटा करके नदी पर बांस का पुल बनना पड़ रहा है.
दानियाल पुर गांव बनारस से कैंट रेलवे स्टेशन से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर है. जो वरुणा नदी के किनारे पर बसा है. आबादी की बात कर लें तो इस पूरे क्षेत्र में लगभग 25 से 30000 लोग रहते हैं. कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर यहां से विधायक है. हैरानी की बात यह है कि इन लोगों के पास नदी पार करने का कोई आसान रास्ता नहीं है.
बनारस के दानियालपुर गांव के बांस के पुल की कहानी पर संवाददाता की रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat) एक रास्ता है जरूर लेकिन, वह भी लगभग 8 से 10 किलोमीटर की दूरी पर है, जिस वजह से लोगों को आवागमन में बड़ी दिक्कत होती है. अपनी दिक्कतों को देखते हुए ही इस गांव के लोग चंदा इकट्ठा करके गांव के पास नदी पर बांस के पुल को बना रहे हैं. बड़ी बात यह है कि यह बास का पुल इनके आवागमन को थोड़ा सुलभ तो कर देगा लेकिन, जोखिम भरा भी होगा.
दो दशक से किसी ने नहीं सुनी:गांव के रहने वाले अजय बताते हैं कि, हमें यह समस्या दो दशक से है. एक दशक पहले तक जब नाव चलती थी तो हमें आवागमन में दिक्कत नहीं होती थी, लेकिन वक्त बदलता गया और 10 साल पहले नाव का संचालन यहां पूरी तरीके से बंद हो गया. उसके बाद हमें पुल की जरूरत महसूस होने लगी. हमने सभी जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई पत्र लिखा. लेकिन, हमारी सुनवाई किसी ने नहीं की.
बनारस के दानियालपुर गांव के ग्रामीण खुद बना रहे बांस का पुल. (Photo Credit; ETV Bharat) आग्रह करने पर एक दो बार लोग आए जरूर पुल का निरीक्षण किया लेकिन आज तक पुल कभी भी अपने स्वरूप में यहां बनता हुआ नहीं दिखाई दिया. हमारे पास जाने के लिए एक रास्ता है लेकिन वह लगभग 8 से 10 किलोमीटर की दूरी पर है और जहां से हम पहले आवागमन करते थे, वह रास्ता महज 10 मिनट की दूरी का है. यदि यह पुल सरकार बनवा देता तो हम 2 घंटे के बजाय 10 मिनट में अपने गांव से बनारस कैंट पहुंच सकते हैं.
चंदे से तैयार कर रहे है बांस का पुल:इस पुल को बनवाने के लिए जब हम लोगों ने हर संभव कोशिश कर ली और हमारी समस्या का समाधान नहीं हुआ तो थक हार कर हम लोगों ने बांस के पुल को तैयार करने का निर्णय लिया. हम लोग ग्रामीणों से चंदा इकट्ठा करते हैं. उसके बाद गांव के सभी लड़के श्रमदान करके बांस के पुल को तैयार करते हैं. एक महीने का समय तैयार करने में लगता है और इसका कुल खर्च लगभग तीन से चार लाख रुपए तक आता है. हमारी सिर्फ इतनी मांग है कि, अगर यहां पर सरकार पक्का पुल नहीं बना सकती तो कम से कम पीपा पुल ही बना दें, जिससे हम लोगों को आने जाने में दिक्कत ना हो.
बनारस के दानियालपुर गांव के ग्रामीण खुद बना रहे बांस का पुल. (Photo Credit; ETV Bharat) पुल के कारण लड़कियों की छूटी पढ़ाई:रास्ता न होने की वजह से सबसे ज्यादा दिक्कत गांव की महिलाएं, बेटियों व बुजुर्गों को होती है. गांव की रहने वाली कक्षा 10 की छात्रा अनुराधा बताती है कि, रास्ते का ना होना हमें पढ़ाई से दूर कर रहा है. कई लड़कियां ऐसी हैं कि दूर होने की वजह से वह स्कूल तक नहीं जा पाती. स्कूल के बाद ट्यूशन करने में हमें देर हो जाता है और 8 किलोमीटर घूम करके पैदल या साइकिल से घर आना सुरक्षित नहीं लगता.
इस वजह से गांव की बच्चियां स्कूल नहीं जाती हैं. ग्रामीण कई बार सरकार से गुहार भी लगाए, मंत्री जी से भी बोले लेकिन कोई हमारी बात नहीं सुनता. थक हार के हम लोगों को लकड़ी का पुल बनना पड़ रहा है. लेकिन, यह लकड़ी का पुल भी बहुत दिक्कत करता है, इस पर से साइकिल लेकर के आना-जाना हमें बहुत परेशान करता है.
बनारस के दानियालपुर गांव के ग्रामीण खुद बना रहे बांस का पुल. (Photo Credit; ETV Bharat) रोजी रोटी में हो रही बड़ी दिक्कत, इलाज के लिए होना पड़ता है परेशान:गांव की महिलाएं कहती हैं कि यदि यह पुल बन जाता तो हमें रोजी-रोटी के लिए भी परेशान नहीं होना पड़ता. हम गांव के लोग हैं सब्जियां उगाते हैं, सब्जी बेचने के लिए हम 10 मिनट में शहर में आ जाते है. कॉलोनी में जाकर अपनी सब्जियों को बेच लेते, काम धाम कर लेते. लेकिन, 8 किलोमीटर घूम करके शहर जाना किराया देना फिर सब्जी बेचना हमारे लिए मुश्किल होता है.
क्योंकि हमारे पास कुछ बचता है नहीं. इस पुल से रास्ता पार करने में जहां 10 मिनट लगता है तो वहीं 8 से 10 किलोमीटर घूम करके जाने में डेढ़ से 2 घंटे का समय लगता है. दिक्कत तो तब बढ़ जाती है जब घर की महिला बीमार हो या कोई गर्भवती महिला हो, जब तक एंबुलेंस आती है या किसी की गाड़ी मांग करके हम अस्पताल तक जाते हैं. रास्ते में डिलीवरी हो जाती है या केस बिगड़ने लगता है.
पुल नहीं होने के चलते नाव ही है ग्रामीणों का सहारा. (Photo Credit; ETV Bharat) 30 हजार है आबादी, 7 गांव शामिल:गांव में पुल बनवाने की मांग करने वाले गणेश बताते हैं कि, हमारे गांव की आबादी 30 हजार से ज्यादा है. इसमें कुल 6 से 7 गांव है, जिसमें 10,000 बच्चे 10 से 15000 महिलाएं बुजुर्ग शामिल हैं. यदि सरकार ध्यान दे देती तो इन सभी की दिक्कत का समाधान हो जाता. दो-दो मंत्री यहां पर मौजूद थे लेकिन, किसी ने भी हमारे समस्या का समाधान नहीं किया.
जिस वजह से हमें मजबूरी में अपना पैसा लगाकर श्रमदान करके लकड़ी के पुल को बनाना पड़ रहा है. हम सिर्फ यही उम्मीद कर सकते हैं कि जल्द से जल्द हमारी समस्याओं को सुनकर इसका समाधान किया जाए. पक्का पुल नहीं बन सकता तो कम से कम पीपा पुल ही बनवा दिया जाए, ताकि बच्चियों बुजुर्ग महिलाएं शहर में आकर अपनी पढ़ाई अपने काम को कर सके.
बनारस के दानियालपुर गांव के ग्रामीण खुद बना रहे बांस का पुल. (Photo Credit; ETV Bharat) गांव के पार्षद भी परेशान:गांव के पार्षद गोविंद प्रसाद बताते हैं कि हमारे गांव में रास्ते को लेकर के बड़ी समस्या है. हमने सभी जनप्रतिनिधियों से गुहार लगा दी, लेकिन अब तक हमारी मांग को नहीं सुना गया है. लगभग 25 से 30000 आबादी का यह पूरा इलाका है, यदि हमारे गांव में पुल बन जाता है तो बड़ी संख्या में लोगों को राहत मिल जाती. हर साल गांव के ही लोग आपस में मिलकर चंदा इकट्ठा करते हैं. उसके बाद इसको तैयार करते हैं. हम भी इस इंतजार में है कि कब सरकार की ओर से हमारे गांव में पुल को पास किया जाता है, जिससे लोगों को 10 मिनट के रास्ते के लिए 10 किलोमीटर का सफर नहीं तय करना पड़े.
नाव से एक-एक बांस लाकर ग्रामीण बना रहे पुल. (Photo Credit; ETV Bharat) ये भी पढ़ेंःसंगीत प्रेमियों को लुभाएगा बनारस का संगीत पार्क, मशहूर कलाकारों को होगा समर्पित