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उम्र 80 साल, शिक्षा 10वीं फेल, लिख दीं 400 किताबें - Banaras writer Shrinath Khandelwal

करोड़ों की संपत्ति का मालिक बनारस का यह बुजुर्ग, वृद्धाश्रम में गुजार रहे जीवन, पद्मश्री सम्मान लेने से कर चुके इनकार

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 4 hours ago

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Updated : 48 minutes ago

10वीं फेल श्रीनाथ ने 80 साल की उम्र में लिखीं कई किताबें.
10वीं फेल श्रीनाथ ने 80 साल की उम्र में लिखीं कई किताबें. (Photo Credit; ETV Bharat)

बनारस :बनारस में एक ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने 80 उम्र तक लगभग 400 किताबें लिखी हैं. इनकी किताबें ऑनलाइन, ऑफलाइन हजारों की संख्या में बिकती हैं. इन्होंने पद्मश्री सम्मान लेने से भी मना कर दिया था. आज यह वृद्धाश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं. 80 साल की उम्र में वे नरसिंह पुराण की किताब को हिंदी में अनुवादित कर रहे हैं. सबसे खास बात ये है कि ये लेखक 10वीं फेल हैं और अलग-अलग भाषाओं से हिंदी अनुवाद करते हैं.

हम बात कर रहे हैं वाराणसी में रहने वाले लेखक श्रीनाथ खंडेलवाल की. ये दसवीं फेल हैं, लेकिन किताबों की जानकारी, पुराणों का अनुवाद और हजारों पन्ने लिखना इनके लिए बहुत ही आसान है. इस उम्र के पड़ाव में भी आकर इनके मन में किताबें लिखने कि लालसा खत्म नहीं हुई है. जीवन ऐसा है कि वृद्धाश्रम में रहकर वे हाथ से किताबें लिख रहे हैं. न कोई गैजेट और न ही कंप्यूटर. तीन बार नहाना होता है और खाना आश्रम में ही मिल जाता है.

बनारस के दसवीं फेल श्रीनाथ की कहानी (Video Credit; ETV Bharat)
15 वर्ष की आयु में लिखी पहली किताब : श्रीनाथ खंडेलवाल बताते हैं कि, 15 वर्ष की आयु में पहली किताब लिखी थी, जिसे नागर जी के कहने पर लिखा था. नागर जी उसे पढ़कर इतने खुश हुए कि उन्होंने मुझे एक पन्ने का प्रमाण पत्र दिया. उसे हमने एक किताब में ले लिया. उनके कहने पर लिखना शुरू कर दिया. पद्मपुराण लिखा, मत्स्य पुराण 2000 पन्नों का लिखा है. तंत्र पर करीब 300 किताबें लिखी हैं. कुछ अभी छप रही हैं. शिवपुराण का 05 खंडों में अनुवाद किया है. आसामी और बांग्ला भाषाओं में अधिक अनुवाद किया है.

16 महापुराणों का कर चुके हैं अनुवाद :उन्होंने बताया कि, अभी एक किताब लिख रहा हूं नरसिंह पुराण. वह इंग्लिश में है. भारत में उसकी कोई प्रति नहीं है. अंग्रेज इसे ले गए तो उसे अपने यहां छापा. मैंने इसे अपने यहां लिखने के बारे में सोचा. उस किताब को मैंने मंगाया है. आएगा तो उसका अनुवाद करेंगे. अभी तक 21 या 22 उपपुराण और 16 महापुराणों का अनुवाद अब तक किया है. किताब लिखने के लिए कंप्यूटर का प्रयोग नहीं करते हैं. शुरू से ही हाथ से लिखते रहे हैं.

पद्मश्री सम्मान लेने से कर दिया था मना :वृद्धाश्रम में अपनी दिनचर्या के बारे में बताते हुए श्रीनाथ खंडेलवाल कहते हैं कि सुबह उठकर स्नान किया. स्नान तीन बार करते हैं, चाहे ठंडी हो या गर्मी. खाने के लिए यहीं पर मिलता है. बड़प्पन दिखाने का क्या फायदा. सच यही है कि मैं दसवीं फेल हूं. जीवन भर पढ़ाई की है और कोई काम नहीं किया. पद्मश्री सम्मान के बारे में बताते हुए कहते हैं किउसका मैंने सम्मान किया. मैंने कहा कि मैं उसके योग्य नहीं हूं.

किताब बिक्री से मिले पैसों से किताब छपती है :उन्होंने बताया कि, किताब छपने के बाद जो उसकी बिक्री होती है उससे मिले पैसों से फिर किताब छपा लेते हैं. कभी प्रकाशक के दरवाजे हम गए नहीं. मोल भाव नहीं करते हैं. हमने आजतक अपनी किताब का विमोचन नहीं कराया, कहीं विज्ञापन नहीं किया. बहुत से लोगों ने कहा था. मैंने एक रिक्शेवाले को बुलाकर तीन किताबों का विमोचन कर दिया. कुछ ग्रंथ और पूरे करने हैं. गीता टीका लिखा है. इसमें 18 अध्याय हैं. यह सिर्फ रीजनिंग पर है कि अर्जुन और कृष्ण का संवाद क्यों हुआ.

संचालक ने बताया क्या थी उनकी स्थिति :वृद्धाश्रम संचालक बताते हैं कि, जब श्रीनाथ खंडेलवाल हमारे पास आए तो उस स्थिति में थे कि उनको उठाकर हम लोगों ने बेड पर रखा. लंका के रहने वाले हैं और कुछ दिन इलाहाबाद (प्रयागराज) में भी रहे. बंगाल सहित अलग-अलग जगहों पर रहे हैं. परिवार का उनसे कोई मिलने नहीं आता है. ऐसा लगता है कि परिवार ने ही उनको छोड़ा होगा. हम लोगों द्वारा यहां पर उनके रहने की व्यवस्था की गई है. ये करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं.

समृद्ध परिवार से आते हैं एस एन खंडेलवाल
बताते चलें कि एसएन खंडेलवाल की पारिवारिक पृष्ठभूमि बेहद चौकाऊं है. यह बनारस के एक समृद्ध परिवार से आते हैं. वर्तमान समय में आज भी लंका पर इनका एक बड़ा मकान है, जिसकी करोड़ों में कीमत है. एसएन खंडेलवाल ने बताया कि एक बेटा- बेटी और पत्नी है. बेटा अपनी पत्नी के साथ अपने सास ससुर के घर रहता है, उनका ख्याल रखता है. बेटी सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट है. अपनी बेटी की थीसिस उन्होंने ही तैयार किया था, जिस पर उनकी बेटी को सम्मानित भी किया गया. उनका एक और बेटा था जो उनका बेहद ख्याल रखता था, लेकिन अब वह इस दुनिया में नहीं है. अब परिवार का कोई भी उनका ख्याल नहीं रखता. पत्नी बच्चे कोई उनसे मिलने नहीं आता और वह बेहद खुश भी रहते हैं. उनके सिर्फ ऊपर वाला है, उन्ही के लिए वह जीवित है और उनके आशीर्वाद से ही लेखन का काम कर रहे हैं. अब यह आश्रम ही उनका परिवार है और यहां रहने वाले लोग ही उनके मित्र हैं.

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