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जिस चित्रकार ने रामलला को दिया स्वरूप, वही अब उज्जैन के महालोक की मूर्तियों का कर रहे चित्रण - Ujjain Mahakal Lok - UJJAIN MAHAKAL LOK

Idols of Mahalok in Ujjain, अरुण योगीराज ने जिस चित्र के आधार पर रामलला की प्रतिमा का निर्माण किया, वो चित्रकार हैं काशी विद्यापीठ के ललित कला विभाग के एचओडी डॉ. सुनील विश्वकर्मा. जिन्होंने अपने भाव रामलला के चित्र में उकेरे और अब डॉ. सुनील उज्जैन के महालोक में तैयार की जा रही पत्थर की प्रतिमाओं का चित्रण करने में जुटे हैं.

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उज्जैन के महालोक की मूर्तियों का चित्रण...

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Apr 29, 2024, 6:32 PM IST

डॉ. सुनील विश्वकर्मा ने क्या कहा, सुनिए...

जयपुर. 22 जनवरी 2024 वो दिन जब अयोध्या के भव्य श्री राम मंदिर में श्री रामलाल की प्राण प्रतिष्ठा हुई. हालांकि, प्राण प्रतिष्ठा से पहले भगवान की प्रतिमा गढ़ने से लेकर उनका चित्रण करने का लंबा सफर रहा है. इसके साक्षी बने हैं डॉ. सुनील विश्वकर्मा. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि कोई भी मूर्ति बनती है तो उससे पहले उसका एक लेआउट तैयार किया जाता है, तो राम मंदिर कमेटी ने देशभर से राम जी का चित्र बनवाया. चूंकि पहले टेंट में जो मूर्तियां रखी हुई थी, वो बहुत छोटी थी और मंदिर बड़ा बन रहा है.

प्रतिमाओं के पास तक जाने का बहुत कम लोगों को अवसर मिलेगा और दूर से छोटी मूर्तियां दिखाई नहीं देगी. इसलिए राम मंदिर निर्माण कमेटी ने ये निर्णय लिया कि एक बड़ी मूर्ति होनी चाहिए और मूर्ति में रामलला के बचपन का स्वरूप नजर आए. इसके लिए कुछ मानक निर्धारित किए गए थे, जिसमें 5 वर्ष की आयु एक क्राइटेरिया था. जिसके आधार पर देश भर के 82 चित्रकारों ने अपने चित्र भेजें.

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उन्होंने बताया कि राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र ने उनसे भी संपर्क किया और मानकों के आधार पर चित्र बनाने को कहा. जब रामलला का चित्र बनाने के लिए उन्हें कहा गया, तो उन्हें काफी खुशी हुई और उनसे जल्द से जल्द चित्र मंगवाया गया. मानकों में 5 वर्ष की आयु के राम जी का चित्र होना, उस चित्र में बाल सुलभ होने के साथ-साथ देवत्व भी दिखना. भगवान राम पुरुषोत्तम और धर्मनिष्ठ थे. ऐसे में धर्म के गुणों के आधार पर सुचिता, समरसता, करुणा चित्र में नजर आनी चाहिए थी. उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण के तो लीलाओं के आधार पर बहुत से चित्र रेफरेंस के लिए मिल जाते हैं, लेकिन भगवान राम के 5-6 आयु वर्ष के चित्र नहीं मिलते.

डॉ. सुनील ने बताया कि बालक का चित्र बनाना ही कठिन होता है. रेफरेंस कहीं से लेना नहीं था और भगवान राम का एक यूनिक चित्र बनाना था. एक सामान्य बालक में भगवान राम के गुण नहीं मिल सकते. इसलिए किसी बच्चे को भी सामने बैठाते हुए चित्र नहीं बनाया जा सकता था. हालांकि, वो पहले उज्जैन के लिए हनुमान चालीसा की एक पूरी सीरीज बना चुके थे, जिसमें 40 चित्र बनाए गए थे.

चित्र के आधार पर इस मूर्ति का निर्माण...

रामचरितमानस का भी अध्ययन कर इस चित्र पर 10-15 दिन काम किया. सड़क पर चलते हुए भी बच्चों को ही देखा करते थे और फिर मंद स्मित मुस्कान वाले भगवान को याद करते हुए चित्र बनाकर भेज दिया. अगले ही दिन उनके चित्र का चयन होने को लेकर फोन आया और तब बहुत अच्छा लगा कि 82 चित्र होने के बावजूद उनके चित्र का चयन हुआ और फिर ओरिजिनल चित्र के साथ उन्हें दिल्ली बुलाया गया.

उन्होंने बताया कि जब वो दिल्ली पहुंचे तो वहां पहले से दो चित्रकार मौजूद थे और श्री राम मंदिर निर्माण कमेटी के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र, ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय, मंदिर के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंददेव गिरी और यतींद्र मिश्र सहित अन्य सदस्य मौजूद थे. जब उनकी बारी आई तो उनसे पूछा गया कि आपने किस कल्पना के साथ भगवान का ही चित्र बनाया तो उन्होंने कहा कि कल्पना तो काल्पनिक चीजों की की जाती है, राम काल्पनिक नहीं है, ये भाव से बनाया गया चित्र है.

हालांकि, कमेटी की ओर से कुछ सुझाव दिए गए और चित्र दोबारा बनाने को भी कहा गया. चित्र में आजानुबाहु (घुटनों तक लंबे हाथ) की जगह हाथ थोड़े छोटे थे. चित्र में तरकश बनाया था, जिस पर उन्होंने तर्क दिया कि है बालक के शरीर पर तरकश का भारी बोझ नहीं होना चाहिए. हाथ में सिर्फ एक बाण देने से भी काम चल जाएगा, इसके अलावा चित्र में जनेऊ भी बनाई थी. इसे भी हटाने को कहा गया और उन्हें एक दिन अतिरिक्त रोका गया गोपनीयता बनाने के निर्देश दिए गए और फिर अगले दिन स्पष्ट कर दिया गया कि उनका चित्र रामलला की प्रतिमा के लिए पसंद कर लिया गया है और फिर उन्हें ही मूर्तिकारों से बात करने को भी कहा गया.

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डॉ. सुनील ने बताया कि वहां पांच मूर्तिकार थे, जिनमें कर्नाटक के अरुण योगीराज, गणेश भट्ट, जयपुर के सत्यनारायण पांडे के अलावा एक उड़ीसा और एक दक्षिण भारत के कलाकार और थे. इन सभी कलाकारों को चित्र दिखाया गया और इसी आधार पर मूर्ति बनाने का फैसला लिया गया. हालांकि, इनमें से तीन कलाकारों ने मूर्ति का काम शुरू किया. रामलला के पीछे एक चौखट भी बनी हुई है. ये सुझाव खुद मूर्तिकार ने दिया इससे मूर्ति को बल मिलेगा, क्योंकि रोज मूर्ति को स्नान कराया जाएगा तो मूर्ति खंडित ना हो. इसी दौरान पत्थरों पर भी चर्चा हुई और सभी ने अपने-अपने पत्थरों की खासियत बताते हुए मूर्ति का निर्माण शुरू किया.

उन्होंने बताया कि इसके बाद उनका सफर तो रुक गया और सिर्फ प्रतीक्षा थी कि वो मूर्ति कब बनकर तैयार होगी. कमेटी ने उन्हें गोपनीयता बनाए रखने का सुझाव दिया था. इस वजह से उन्होंने ये चित्र बनाने की चर्चा घर तक में नहीं की. इसी तरह मूर्तिकारों को निर्देश दिए थे कि वो अयोध्या में रहकर के ही मूर्ति का निर्माण करें. जब मूर्ति बनकर के तैयार हुई और पता चला कि 22 तारीख को उसकी प्राण प्रतिष्ठा होनी है. इसका निमंत्रण उनके पास भी आया और कार्ड पर देखा तो उन्हीं के हाथों से बनाया गया चित्र उस पर अंकित किया गया था. इससे वो भाव-विभोर हो गए थे और फिर निमंत्रण मिलने के बाद रुका भी नहीं गया तो 19 तारीख को ही बनारस से अयोध्या के लिए निकल गए. हालांकि, किसी की गलती से मूर्ति का स्वरूप पहले ही डिस्क्लोज हो गया था, लेकिन फिर भी वो बहुत प्रसन्न थे क्योंकि जो चित्र बनाया गया था वही भाव उस मूर्ति में दिख रहा था और 22 जनवरी का दिन तो सभी ने देखा. वहां एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं था, जिसकी आंखों में पानी नहीं था.

उन्होंने बताया कि इसके बाद से जो मूर्ति निर्माण करना चाहते थे, वो किसी न किसी माध्यम से फोन नंबर लेकर फोन कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने पहले भी उज्जैन में हनुमान चालीसा पर काम किया था. इसलिए इस बार जब महालोक में फाइबर की बजाय पत्थर की मूर्ति बनाई जा रहीं हैं तो इन मूर्तियों का चित्र बनाने की जिम्मेदारी भी उन्हें दी गई है. वहां तकरीबन 100 मूर्तियां बननी हैं, उनमें से उन्होंने सप्त ऋषि और भगवान शिव की मूर्ति के लिए चित्र बनाकर भेज दिया है. महालोक की बाकी मूर्तियों के चित्र बनाने का काम फिलहाल चल रहा है.

बहरहाल, डॉ. सुनील विश्वकर्मा ने पूरे देश को सभी राम भक्तों को रामलला के दर्शन कराए. उनका ये सफर करीब डेढ़ से 2 साल का रहा, लेकिन आगामी दिनों में डॉ. सुनील के कुछ और चित्र मूर्त रूप लेंगे और उज्जैन के महालोक में देखने को मिलेंगे.

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