अयोध्या/लखनऊ: अयोध्या में बनने वाली मस्जिद का निर्माण अधर में लटकता नजर आ रहा है. क्योंकि, इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (IICF) ने अपनी सभी चार उप-समितियों को भंग कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार द्वारा मस्जिद के निर्माण के लिए पांच एकड़ जमीन आवंटित की गई थी, लेकिन निर्माण प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं हो पाई है.
इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के सचिव अतहर हुसैन के अनुसार, फाउंडेशन के अध्यक्ष जफर फारूकी की अध्यक्षता में एक बैठक हुई, जिसमें फैसला लिया गया कि एफसीआरए (विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम) की मंजूरी के लिए यह कदम उठाना बेहद जरूरी है, ताकि मस्जिद के निर्माण के लिए विदेश से धन जुटाया जा सके. उप-समितियों के भंग होने के बाद ट्रस्ट अब नई संरचना पर काम करेगा.
इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के सचिव अतहर हुसैन से संवाददाता की खास बातचीत. (Video Credit; ETV Bharat) उन्होंने बताया कि खाड़ी देशों में कई लोगों से बातचीत हुई है, जिन्होंने अयोध्या के धनीपुर में बनने वाली मस्जिद के प्रोजेक्ट के साथ रुचि दिखाई है. कई लोगों ने मौखिक तौर पर वादा किया है कि हम इसके लिए बजट देंगे. यही वजह है कि अब हम लोग एफसीआरए की मंजूरी लेने पर काम कर रहे हैं और मुझे आशा है कि जल्द ही एफसीआई की मंजूरी मिल जाएगी.
अतहर हुसैन ने बताया कि मस्जिद के प्रोजेक्ट को लेकर के कई बार साइबर क्राइम और साइबर ठगी का भी मामला सामने आया है, जिसको लेकर हमने लखनऊ के हजरतगंज थाने में FIR भी दर्ज कराई है. उन्होंने कहा कि मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह मस्जिद नाम से अकाउंट खोला गया था और उसमें फंड जमा की जा रही थी जिसके खिलाफ हमने शिकायत की है.
अतहर हुसैन ने बताया कि 1 साल पहले बनी उप समिति के अहम जिम्मेदार हाजिर अराफात कई दरगाहों पर गए और क्राउड फंडिंग की कोशिश की थी. लेकिन कोई खास नतीजा सामने नहीं आया. उन्होंने कहा कि मस्जिद की बुनियाद रखने के लिए काबा के इमाम को बुलाया जाएगा या मुस्लिम बड़ी हस्तियों को बुलाया जाएगा, इस हवाले से अभी फाउंडेशन का कोई निर्णय सामने नहीं आया है. फिलहाल सभी उप समितियां भंग कर दी गई हैं.
फाउंडेशन ने मस्जिद के साथ एक सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, सामुदायिक रसोई और एक पुस्तकालय बनाने का प्रस्ताव दिया था. हालांकि, पांच साल बाद भी मस्जिद का शिलान्यास नहीं हो पाया है. अतहर हुसैन ने आशा जताई कि एफसीआरए मंजूरी मिलने के बाद दुनिया भर से दान मिल सकेगा. उन्होंने हिंदू और अन्य समुदायों से भी सहयोग की अपील की, यह कहते हुए कि यह मस्जिद सामुदायिक सेवा का केंद्र भी बनेगी.
हुसैन ने आगे कहा कि यह परियोजना भारत की साझा संस्कृति और स्वतंत्रता संग्राम की विरासत को दर्शाने का एक अवसर है. मस्जिद परिसर में 1857 की पहली स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े एक संग्रहालय का निर्माण भी प्रस्तावित है, जिससे हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम होगी.
ये भी पढ़ेंःतिरुपति प्रसादम की आंच यूपी पहुंची; वाराणसी-लखनऊ के प्रमुख मंदिरों के प्रसाद को लेकर प्रशासन अलर्ट, लिए सैंपल
छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद नए स्थल पर मस्जिद निर्माण के लिए यह भूखंड आवंटित किया गया था. आईआईसीएफ के सचिव अतर हुसैन के अनुसार ट्रस्ट ने इस संबंध में सभी जरूरी ब्यौरे केंद्र को मार्च में उपलब्ध करा दिए हैं. जिन समितियों को भंग किया गया है, उनमें प्रशासनिक समिति, वित्त समिति, विकास समिति-मस्जिद मोहम्मद बिन अब्दुल्ला और मीडिया एवं प्रचार समिति शामिल हैं.
उल्लेखनीय है कि लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 9 नवंबर 2019 को 2.77 एकड़ भूमि राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट को सौंप दी थी. मस्जिद के लिए अयोध्या में एक प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ भूमि आवंटित की थी. एक ओर जहां राम जन्मभूमि पर एक भव्य राम मंदिर लगभग बनकर तैयार है और 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा भी हो गई, वहीं मस्जिद निर्माण परियोजना धन की कमी के चलते सिरे नहीं चढ़ सकी.
यह भी पढ़ें :जिस कलश के सहारे ताजमहल में कब्रों पर टपका पानी, वह कभी 466 किलो सोने का था, अंग्रेजों ने बदल दिया था