सीनियर पीडियाट्रिक डॉ एके सिंह ने दी जानकारी (video credit- etv bharat) लखनऊ: ऑटिज्म एक न्यूरोलॉजिकल विकासात्मक विकलांगता है, जो सामान्य मस्तिष्क के विकास को प्रभावित करती है. संचार, सामाजिक संपर्क, अनुभूति और व्यवहार को बाधित करती है. ऑटिज्म को एक स्पेक्ट्रम विकार के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इसके लक्षण और विशेषताएं कई तरीकों के संयोजनों में प्रकट होती हैं, जो बच्चों को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करती हैं.
कुछ बच्चों को अपने कार्यों को पूरा करने के लिए सहायता की आवश्यकता होती है. लेकिन, कुछ अपने काम को नहीं कर सकते हैं. साधारण भाषा में इसे ऑटिज्म कहते हैं. हर साल वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे की थीम बदलती है. इस वर्ष विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस 2024 की थीम 'ऑटिस्टिक आवाजो को सशक्त बनाये रखा गया हैं.
ऑटिज्म का कोई सटीक कारण नहीं: सिविल अस्पताल के वरिष्ठ पीडियाट्रिशियन डॉ. एके सिंह ने बताया, कि यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसके तीन कॉम्पोनेंट होते हैं. इसमें कम्युनिकेशन और सोशल इंटरेक्शन में दिक्कत होती है. इस दौरान रिपिटेटिव व्यवहार होता है. ऑटिज्म लगभग 10 हजार में से एक बच्चे को होता है. फीमेल बच्चों की तुलना में मेल बच्चों में इसके होने के पांच गुना ज्यादा संभावना होती है.
ऑटिज्म बीमारी का आज तक सटीक कारण पता नहीं लग पाया है. लेकिन, इसमें 50 प्रतिशत जेनेटिक डिस्पोजिशन भी होता है. ऐसे में जो बच्चे बहुत कम वजन के साथ पैदा होते हैं, या प्रीमेच्योर बेबी होते हैं या जिनके परिवार में पहले से ही किसी को ऑटिज्म की समस्या है या ट्यूंस में समस्या है या फिर इसके अलावा गर्भधारण के समय मां को अगर कुछ दिक्कत है, तो बच्चे को भी यह समस्या होने की संभावना रहती है.
अभिभावक अगर समय पर समझ सके कि बच्चों के व्यवहार में कुछ बदलाव है या फिर बच्चा कोई हलचल नहीं कर रहा है, या फिर उसके रहन सहन हाव-भाव व्यवहार में बदलाव है. तो जितनी जल्दी हो सके अभिभावक बच्चे की हरकतों को समझे और बच्चे का इलाज कराए. जल्दी इलाज कराने से बच्चा ठीक होगा.
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शनिवार को राजाजीपुरम के रहने वाले सिद्धार्थ कुमार अपने डेढ़ साल के बच्चे को लेकर सिविल अस्पताल की पीडियाट्रिक विभाग में पहुंचे. माता-पिता का कहना है कि बच्चा बहुत ज्यादा शांत रहता है. कुछ फिजिकल एक्टिविटी नहीं है. डॉ एके सिंह ने जब बच्चे को देखा और बच्चे का चेकअप किया. इसके बाद उन्होंने माता-पिता को बताया कि बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित है. अभी बच्चे को थोड़ा बड़ा हो जाने दीजिए. बच्चों की काउंसलिंग लगातार करते रहिए उसे प्यार से ट्रीट कीजिए.
वही एक और माता-पिता अपने छह साल के बच्चे को लेकर सिविल अस्पताल की ओपीडी में पहुंचे. जहां पर माता-पिता ने विशेषज्ञ से बताया, कि बच्चा बहुत चुप रहता है बोल नहीं पता है. विशेषज्ञ ने जब बच्चे को देखा तो माता-पिता को बताया, कि बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित है बच्चों की काउंसलिंग की जाएगी. ऐसे बच्चों के साथ बहुत ही प्यार से पेश आना होता है. नॉर्मल बच्चों की तुलना में यह बच्चे कम सक्रिय रहते हैं और इनका शारीरिक और मानसिक विकास कम होता है.
लक्षण से पहचानें बीमारी:डॉ. एके सिंह ने बताया कि अगर बच्चा एक साल के बाद सोशल स्माइल नहीं करता है, या मां को देखकर मुस्कुरा नहीं रहा है पहचान नहीं पा रहा है, तो एक साल तक बच्चे में वेवलिन साउंड नहीं आई है. तो बच्चा बीमार है. इस बीमारी में बच्चा शांत रहता है, ज्यादा किसी से बातचीत नहीं करता. अकेले ही रहता है, बहुत लोगों उसकी दोस्ती नहीं होती है, शोर नहीं करता है, हंसता खेलता नहीं है या फिर ऐसा कोई काम जो पहले वह करता था और अब वह नहीं कर रहा है, ज्यादा समय बंद कमरे में रहना या अकेले-अकेले रहना इसके लक्षण है. उन्होंने कहा कि इन्हीं सब लक्षणों के सहायता से बच्चे की बीमारी और मानसिक स्थिति के बारे में पता लगाया जा सकता है.
थेरेपी और घर के माहौल से नार्मल रहेगा बच्चा:डॉ. एके सिंह ने कहा, कि ऑटिज्म के लिए कोई जांच नहीं है. माता पिता को बच्चे के हाव-भाव और व्यवहार से ही समझना होगा कि बच्चे को कोई बीमारी जरूर है. आमतौर पर लोग समझ नहीं पाते हैं कि बच्चे को कोई बीमारी है या वह किसी ऑटिज्म स्पेक्ट्रम बीमारी से ग्रसित है. यह कैसी बीमारी है, जिसमें बच्चा आम बच्चों की तरह सामान्य नहीं होता. बच्चे का विशेष ध्यान रखना होता है.
बच्चों के बदलते हाव-भाव और व्यवहार से ही इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है. इस स्थिति में माता-पिता को अपने बच्चों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है. अगर बच्चा ऑटिज्म से ग्रसित है तो इसके लिए मानसिक थेरेपी से ही बच्चे को ठीक किया जा सकता है. घर के माहौल में बच्चे का अच्छे से ध्यान रखा जा सकता है. बच्चे को हर चीज समझाने बताने की आवश्यकता रहती है.
ऑटिज्म प्राईड डे का उद्देश्य:डॉ. एके सिंह ने कहा, संयुक्त राष्ट्र महासभा के अनुसार, विश्व ऑटिज्म दिवस का उद्देश्य ऑटिस्टिक लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालना है. ताकि वे समाज के अभिन्न अंग के रूप में पूर्ण और सार्थक जीवन जी सकें. साल 2008 में दिव्यांग लोगों के अधिकारों पर कन्वेंशन लागू हुआ, जिसमें सभी के लिए सार्वभौमिक मानवाधिकारों के मौलिक सिद्धांत पर जोर दिया गया.
इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज:
- 3-4 साल की उम्र होने पर भी नहीं बोलना.
- नजर न मिलाना.
- एक ही शब्द को बार-बार कहना.
- खाने-पीने की कुछ चीजें ही पसंद करना.
- खाने-पीने की कुछ चीजें ही पसंद करना.
- सिर पटकना, पलकें झपकाते रहना, कूदना जैसी हरकतें.
- रात में नींद न आना.
इन बातों का रखें ख्याल:
- बच्चे के साथ प्यार से पेश आएं.
- बच्चे संग बातचीत को आसान बनाएं.
- धीरे-धीरे साफ और आसान शब्दों में बात करें.
- बच्चे का नाम बार-बार दोहराएं ताकि बच्चे को अपना नाम याद रहे.
- बच्चे को प्रतिक्रिया के लिए पर्याप्त समय लेने दें. जिससे कि बच्चा घबराए नहीं और प्रतिक्रिया देने की कोशिश करें.
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