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चुनावी साल में फिर से शुरू हुई 'जाति' रैलियां, कुर्मी रैली से नीतीश कुमार को ताकत देने की तैयारी! - KURMI RALLY

बिहार में चुनावी साल में जाति आधारित रैलियों का आयोजन बढ़ा है, जिसका उद्देश्य नेताओं की राजनीतिक ताकत दिखाना और हिस्सेदारी की मांग करना है-

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जाति रैलियों से मिलेगी पावर (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 15, 2025, 8:34 PM IST

पटना : चुनावी साल में बिहार में जाति आधारित रैलियों का सिलसिला शुरू हो चुका है. हाल ही में तेली हुंकार रैली हुई थी, जिसमें तेजस्वी यादव भी शामिल हुए थे. अब कुर्मी एकता रैली का आयोजन होने जा रहा है, जिसमें जदयू और बीजेपी के नेता भी भाग लेंगे. इस रैली का उद्देश्य नीतीश कुमार को शक्ति देना और उनकी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना है. नीतीश कुमार ने 1994 में कुर्मी चेतना रैली के जरिए बिहार की राजनीति में अपनी पकड़ बनाई थी.

कुर्मी चेतना रैली से नीतीश कुमार की शक्ति में वृद्धि : 1994 में लालू यादव के खिलाफ नीतीश कुमार ने गांधी मैदान में कुर्मी चेतना रैली आयोजित की थी, जो राजनीतिक दृष्टिकोण से ऐतिहासिक साबित हुई. इस रैली के जरिए नीतीश कुमार ने अपनी हिस्सेदारी की मांग की थी और फिर कुर्मी समाज के बड़े नेता के रूप में उभरे. इसके बाद नीतीश कुमार ने अति पिछड़ी जातियों में भी अपनी पकड़ मजबूत की और लालू प्रसाद यादव को बिहार की सत्ता से बाहर करने में सफलता हासिल की.

जाति आधारित रैलियों का बिहार में आगाज (ETV Bharat)

जाति आधारित रैलियों का राजनीतिक प्रभाव: बिहार की राजनीति में जाति आधारित रैलियों का बड़ा प्रभाव होता है. जदयू नेता अरुण सिंह का कहना है कि कुर्मी एकता रैली का आयोजन नीतीश कुमार को अगले 5 वर्षों के लिए मजबूत बनाने की दिशा में है. इस रैली के माध्यम से कुर्मी समाज को एकजुट कर राजनीतिक ताकत दिखाई जाएगी. इससे पहले, मिलर स्कूल मैदान में तेली हुंकार रैली भी आयोजित की गई थी, जिसमें राजद के तेजस्वी यादव ने भी भाग लिया था.

''बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव जब डिप्टी सीएम थे तो उन्होंने जाति आधारित गणना करवाया और उससे यह खुलासा हो गया कि बिहार में कुर्मी कितना है, तेली कितना है और अन्य जाति कितना है. अब सब अपनी हिस्सेदारी की बात कर रहा है. इस तरह की रैली के माध्यम से चाहे वह एमपी का हो या एमएलए का हो या एमएलसी का मामला अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश की जाती है.''-रणविजय साहू, विधायक, आरजेडी

कुर्मी एकता रैली का पटना में पोस्टर (ETV Bharat)

जातीय गणना और हिस्सेदारी की मांग: बिहार में 2023 में नीतीश सरकार ने जातीय गणना कराकर 215 जातियों का आंकड़ा जारी किया. इसके अनुसार, यादवों की आबादी 14%, कुर्मी 3%, कुशवाहा 4.21%, ब्राह्मण 3.65%, भूमिहार 2.8%, राजपूत 3.45%, मलाह 3%, मुसहर 3%, और बनिया 2.3% के करीब है. जातीय गणना के बाद, अब विभिन्न जातियांअपनी हिस्सेदारी की मांग को लेकर रैलियों और सम्मेलनों का आयोजन कर रही हैं.

जाति रैलियों का चुनावी महत्व : राजनीतिक विशेषज्ञ चंद्रभूषण का मानना है कि जाति रैलियों के माध्यम से विशेष जातियों का गोलबंद होना आसान हो जाता है, और चुनावी साल में यह ताकत दिखाने का तरीका बन जाता है. वहीं, सुनील पांडे का कहना है कि बिहार में जाति की राजनीति महत्वपूर्ण है और जाति आधारित रैलियों का चुनावों पर गहरा असर होता है.

कुर्मी एकता रैली (ETV Bharat)

''जाति रैली या सम्मेलन के माध्यम से खास जाति के लोगों की आसानी से गोलबंदी हो जाती हैं, जिसका तात्कालिक असर होता है. चुनाव के समय जाति आधारित रैली से ताकत दिखाने की कोशिश भी होती है. कोई भी दल इसे नजर अंदाज नहीं कर सकता है.''- प्रो. चंद्रभूषण सिंह, राजनीति शास्त्र, पटना विश्वविद्यालय

चुनावी साल में जाति आधारित रैलियों का बढ़ता प्रभाव : जैसे-जैसे बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक आएगा, जाति आधारित रैलियां और सम्मेलन बढ़ेंगे. राजनीतिक दलों के बड़े नेता इन रैलियों में भाग लेंगे और अपनी ताकत दिखाएंगे. यह रैलियां सत्ता में हिस्सेदारी की मांग करने और राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने का एक प्रमुख मंच बन चुकी हैं.

तेली हुंकार रैली (ETV Bharat)

''बिहार में राजनीति में जाति महत्वपूर्ण है. चुनावी साल में इस तरह की रैली का अपना महत्व होता है. अब नीतीश कुमार को ही लीजिए कुर्मी जाति की आबादी बहुत नहीं है, लेकिन नीतीश कुमार के साथ सभी एकजुट है. कुछ लोग टिकट और अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए भी इस तरह की रैली का आयोजन करते हैं.''-सुनील पांडे, राजनीतिक विशेषज्ञ

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