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विलुप्त हो रही सांझी कला को पीढ़ी दर पीढ़ी संजो रहा सोनी परिवार, एक चित्र को बनाने में कई घंटों का लगता है समय - SANJHI ART

अलवर का सोनी परिवार सैंकड़ों साल पुरानी सांझी कला को संरक्षित करने का काम कर रहा है. पढ़िए ये रिपोर्ट.

सांझी कला
सांझी कला (ETV Bharat Alwar)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 25, 2025, 5:02 PM IST

अलवर :प्राचीन कला को सालों साल संजोए रखना आम बात नहीं है. आधुनिकता के इस दौर में आज भी कई परिवार ऐसे हैं जो अपनी पुरखों की विरासत और सालों पुरानी कला को संरक्षित किए हुए हैं. ऐसा ही अलवर का एक परिवार है, जो करीब 300 साल पुरानी सांझी आर्ट की कला को संजोए हुए है. इस कला को संरक्षित करने वाले सोनी परिवार के सदस्य देव सोनी ने बताया कि यह कला दो तरह से की जाती है. इस कला में चित्र को एकांत में बैठकर बनाया जाता है. इसमें कई घंटों का समय लगता है. कला को प्रदर्शित करने वाले कलाकार के अनुसार इसके लिए व्यक्ति को एक एकांत का माहौल जरूरी है, तभी कलाकार अपने कलाकारी के माध्यम से चित्र को अच्छी तरह से कागज पर उकेर सकता है.

जितना छोटा चित्र, उतना ज्यादा समय :सांझी आर्ट की कला को संजोए रखने वाले परिवार के सदस्य देव सोनी ने बताया कि यह कला सैंकड़ों सालों पुरानी है, जिसे उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी संभाल रहा है. इस कला को सांझी कला इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें बनाए जाने वाले चित्र को साथ में बैठकर तैयार किया जाता है. हालांकि, कलाकार की ओर से चित्र तैयार करने पर इसका कार्य लोगो को आसान दिखाई पड़ता है, लेकिन यह एक बारीक कार्य है. इस आर्ट में एक चित्र को तैयार करने में कई घंटे और कई दिन का समय भी लग सकता है. यह नेचर से जुड़ी हुई कला है. इसमें जितना छोटा चित्र बनाना है, उतना जी ज्यादा समय लगता है.

विलुप्त हो रही सांझी कला (ETV Bharat Alwar)

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कैंची के जरिए काटी जातीहै डिजाइन: देव बताते हैं कि सांझी कला को तीन तरह से किया जाता है. इसमें पेपर सांझी आर्ट, गोबर से सांझी कला व दीवार पर भी सांझी चित्र उकेरे जाते हैं. उनका परिवार पेपर पर सांझी कला करता है, जिसमें एक कृति को पहले पेंसिल से कागज पर उकेरा जाता है. इसके बाद कैंची के जरिए डिजाइन काटी जाती है. अंत में इस डिजाइन को फ्रेम में सजाया जाता है. इसके बाद इसे प्रदर्शित किया जाता है. जब कलाकार चित्र उकेरना शुरू करता है, उस समय उसे शांत वातावरण की जरूरत होती है, जिससे वह अपनी कला के जरिए चित्र पर एकाग्र रूप से कार्य कर सके.

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गलती होने पर फिर किया जाता है शुरू :उन्होंने बताया कि कलाकार एक चित्र को पहले अपने दिमाग में तैयार करता है, फिर उसे अपनी कला के माध्यम से कागज पर उकेरता है. यदि चित्र में छोटी से भी गलती हो जाती है, तो इसे नए सिरे से शुरू करना पड़ता है. देव सोनी ने बताया कि वे नेचर से रिलेटेड चित्रों को कागज पर करते हैं. इसमें नृत्य करते हुए कृष्ण, पेड़ों पर बैठे पक्षी, तालाब से पानी पीते हंस, विभिन्न तरह के पौधे व फूल, झूला झूलते राधा कृष्ण सहित अन्य चित्रों को बनाया है. इन चित्रों को देखने वाले लोग भी तारीफ करते नहीं रुकते.

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कला को फिर मिल रहा जीवन दान :उन्होंने बताया कि उनके परिजन बताते हैं कि इस कला से पहले बहुत से लोग जुड़े थे, लेकिन समय के साथ सांझी कला भी विलुप्त सी होने लगी, लेकिन इस दौर में फिर से इस कला को जीवन दान मिला है. आज कई कलाकार इस कला को संजो रहे हैं. साल 2022 में भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने भी ने भी इस कला का चित्र विदेशी मेहमान को उपहार स्वरूप दिया था. इसके बाद यह कला और चर्चा में आई.

स्थानीय क्षेत्र के मंदिरों पर आज भी दिखेगी यह कला : उन्होंने बताया कि मथुरा में पहले सांझी कला के कलाकारों की ओर से मंदिर के दीवारों पर सांझी कला के चित्र उकेरे गए, जो आज भी मंदिरों की दीवारों पर मौजूद हैं. यह चित्र राधा-कृष्ण से सम्बंधित हैं, जो यहां आने वाले लोगों को आकर्षित करते हैं. लोग यह कलाकृति देख आश्चर्यचकित हो उठते हैं.

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