अलवर :प्राचीन कला को सालों साल संजोए रखना आम बात नहीं है. आधुनिकता के इस दौर में आज भी कई परिवार ऐसे हैं जो अपनी पुरखों की विरासत और सालों पुरानी कला को संरक्षित किए हुए हैं. ऐसा ही अलवर का एक परिवार है, जो करीब 300 साल पुरानी सांझी आर्ट की कला को संजोए हुए है. इस कला को संरक्षित करने वाले सोनी परिवार के सदस्य देव सोनी ने बताया कि यह कला दो तरह से की जाती है. इस कला में चित्र को एकांत में बैठकर बनाया जाता है. इसमें कई घंटों का समय लगता है. कला को प्रदर्शित करने वाले कलाकार के अनुसार इसके लिए व्यक्ति को एक एकांत का माहौल जरूरी है, तभी कलाकार अपने कलाकारी के माध्यम से चित्र को अच्छी तरह से कागज पर उकेर सकता है.
जितना छोटा चित्र, उतना ज्यादा समय :सांझी आर्ट की कला को संजोए रखने वाले परिवार के सदस्य देव सोनी ने बताया कि यह कला सैंकड़ों सालों पुरानी है, जिसे उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी संभाल रहा है. इस कला को सांझी कला इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें बनाए जाने वाले चित्र को साथ में बैठकर तैयार किया जाता है. हालांकि, कलाकार की ओर से चित्र तैयार करने पर इसका कार्य लोगो को आसान दिखाई पड़ता है, लेकिन यह एक बारीक कार्य है. इस आर्ट में एक चित्र को तैयार करने में कई घंटे और कई दिन का समय भी लग सकता है. यह नेचर से जुड़ी हुई कला है. इसमें जितना छोटा चित्र बनाना है, उतना जी ज्यादा समय लगता है.
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कैंची के जरिए काटी जातीहै डिजाइन: देव बताते हैं कि सांझी कला को तीन तरह से किया जाता है. इसमें पेपर सांझी आर्ट, गोबर से सांझी कला व दीवार पर भी सांझी चित्र उकेरे जाते हैं. उनका परिवार पेपर पर सांझी कला करता है, जिसमें एक कृति को पहले पेंसिल से कागज पर उकेरा जाता है. इसके बाद कैंची के जरिए डिजाइन काटी जाती है. अंत में इस डिजाइन को फ्रेम में सजाया जाता है. इसके बाद इसे प्रदर्शित किया जाता है. जब कलाकार चित्र उकेरना शुरू करता है, उस समय उसे शांत वातावरण की जरूरत होती है, जिससे वह अपनी कला के जरिए चित्र पर एकाग्र रूप से कार्य कर सके.