प्रयागराज :इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 15 वर्षीय गर्भवती रेप पीड़िता के मामले में महत्वपूर्ण आदेश देते हुए कहा कि यह महिला का अपना निर्णय है कि वह गर्भ को धारण रखना चाहती है या गर्भपात कराना चाहती है. हालांकि ऐसे मामले में जोखिम पर भी विचार होना चाहिए.
न्यायमूर्ति शेखर बी सर्राफ एवं न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ल की खंडपीठ ने पीड़िता और उसके अभिभावकों से बात करने के बाद 32 सप्ताह के गर्भ को रखने की इजाजत दे दी. कोर्ट ने कहा कि हमारा मानना है कि एक महिला को खुद यह निर्णय लेना होगा कि उसे गर्भ रखना है या नहीं. यह फैसला कोई दूसरा नहीं लेगा. यहां महिला की सहमति ही सबसे ऊपर है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि भले ही लड़की गर्भधारण करने और बच्चे को गोद देने का निर्णय लेती है लेकिन राज्य सरकार को सुनिश्चित करना है कि यह काम निजी तौर पर किया जाए. सरकार सुनिश्चित करे कि बच्चा इस देश का नागरिक होने के नाते संविधान के मौलिक अधिकारों से वंचित न हो इसलिए यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि गोद लेने की प्रक्रिया भी सही तरीके से अपनाई जाए और बच्चे के सर्वोत्तम हित के सिद्धांत का पालन किया जाए.