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हाईकोर्ट ने यूपी पुलिस से पूछा- छह साल से एक भी मुकदमा नहीं तो कैसे लगाया गुंडा एक्ट - Allahabad High Court - ALLAHABAD HIGH COURT

हाईकोर्ट ने जिला बदर करने की कार्रवाई रद्द की. कहा कि अस्पष्ट आरोपों के आधार पर किसी की स्वतंत्रता नहीं छीन सकते.

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हाईकोर्ट ने जिला बदर करने की कार्रवाई रद्द की. (Photo Credit- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 4, 2024, 10:21 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति पर पिछले छह वर्षो में एक भी मुकदमा दर्ज नहीं हुआ, उस पर गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई कैसे की गई. कोर्ट ने कहा कि अस्पष्ट और अपर्याप्त आरोपों के आधार पर किसी की स्वतंत्रता नहीं छीनी जा सकती है. गुंडा एक्ट की कार्रवाई को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा कि याची पर दर्ज तीनों मामलों में गवाह बिना किसी डर के न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुए और साक्ष्य दिए.

यह कैसे कहा जा सकता है कि याची के आतंक से कोई भी व्यक्ति गवाही देने के लिए आगे नहीं आया. कोर्ट ने कहा कि विवादित आदेशों को पारित करने में प्राधिकारियों ने मैकेनिकल तरीके से काम किया है. उन्होंने न्यायिक विवेक का उपयोग नहीं किया. यह आदेश न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव ने वाहिद उर्फ अब्दुल वाहिद की याचिका पर दिया.

गाजियाबाद के थाना वेव सिटी में वाहिद पर गुंडा एक्ट में मुकदमा दर्ज किया गया. बीट सूचना में पुलिस अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि याची एक खूंखार अपराधी है, जो कई अपराधों में शामिल है. उसका इतना खौफ है कि उसके खिलाफ कोई भी रिपोर्ट दर्ज कराने की हिम्मत नहीं करता है. उसे जिले में खुला छोड़ना जनहित में नहीं था. इसके बाद अपर पुलिस आयुक्त, कमिश्नरेट गाजियाबाद ने 10 अप्रैल 2024 को निष्कासन आदेश पारित कर दिया. आयुक्त, मेरठ मंडल के समक्ष उक्त आदेश के खिलाफ दायर याची की अपील भी विफल हो गई. इसके बाद याची ने हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की.

याची के वकील ने दलील दी कि दोनों प्राधिकारियों ने याचिकाकर्ता को जिला बदर करने के आदेश में घोर त्रुटि की है. याची पर सिर्फ तीन मामले दर्ज हैं. कुछ लोगों ने दुश्मनी में दर्ज कराए हैं. याची ने कोई जघन्य अपराध नहीं किया गया है और उसके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले व्यक्तिगत प्रकृति के हैं. वर्ष 2016 में याचिकाकर्ता के खिलाफ दो आपराधिक मामले दर्ज होने के बाद, लगभग छह वर्षों तक उसने कोई और अपराध नहीं किया.

वकील ने कहा कि याची बेदाग रहा था. दिनांक 5 अक्टूबर 2008 की बीट जानकारी में भी कोई विशिष्ट विवरण शामिल नहीं है. याचिकाकर्ता की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अधिकारियों ने मनमाने ढंग से लागू आदेशों के माध्यम से खतरे में डाल दिया गया है. कोर्ट ने दलीलों को सुनने व तथ्यों अवलोकन करने के बाद याचिका स्वीकार करते हुए दोनों प्राधिकारियों के आदेश को रद्द कर दिया.

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