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कुंभ शाही स्नान और पेशवाई शब्द मुगलों के दिए, अखाड़ों के संतो ने की बदलने की मांग - Mahakumbh 2025 - MAHAKUMBH 2025

अलग अलग अखाड़ों के महंत और संत इस मांग को उठाने लगे हैं, कि शाही स्नान और पेशवाई का नाम बदला जाये. क्योंकि ये उर्दू फारसी शब्द हैं. महाकुंभ मेले में शाही स्नान और पेशवाई की जगह हिंदी संस्कृत शब्द इस्तेमाल किया जाएगा.

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प्रयागराज महाकुंभ मेला 2025 (photo credit- Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 16, 2024, 12:39 PM IST


प्रयागराज: महाकुंभ मेले के दौरान होने वाले शाही स्थान और पेशवाई का नाम बदलने का साधु संतों ने मन बना लिया है. पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए प्रतिनिधियों ने एक स्वर से कहा, कि मुगल काल की याद दिलाने वाले शाही स्नान और पेशवाई शब्द को अब बदलने का वक्त आ गया है. अलग अलग अखाड़े के महंत और संतो की तरफ से यह प्रस्ताव जल्द होने वाली अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की बैठक में लाया जाएगा. सभी अखाड़ों से मंजूरी मिलने के बाद प्रयागराज मेला प्राधिकरण को शाही स्नान और पेशवाई का नाम बदले जाने का प्रस्ताव दिया जाएगा. जनवरी 2025 में लगने वाले महाकुंभ मेले में शाही स्नान और पेशवाई की जगह हिंदी संस्कृत का कोई शब्द इस्तेमाल में लाया जाएगा, जिसके लिए साधु संत मंथन कर नए नाम का सुझाव भी देंगे.

निर्वाणी अखाड़े के संतो ने नए नामों का दिया सुझाव (photo credit- Etv Bharat)

उत्तर प्रदेश में सरकार की तरफ से कई जिलों और स्थानों का नाम बदला जा चुका है. इसी बीच सदियों से लगने वाले कुंम्भ मेला के शाही स्नान और अखाड़ों की पेशवाई का नाम बदलने की चर्चा तेज हो गयी है. अलग अलग अखाड़ों के महंत और संत अब इस बात की मांग उठाने लगे हैं, कि शाही स्नान और पेशवाई का नाम बदला जाये. क्योंकि ये उर्दू फारसी शब्द हैं. मुगल काल के दौरान सनातन धर्म के इस मेले में ये नाम बादशाहो द्वारा रखे गए होंगे.

मुगलकाल की याद दिलाने वाले शाही स्नान और पेशवाई शब्द को बदलने की मांग अखाड़ों की तरफ से उठायी गयी है. जल्द ही अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की बैठक में अखाड़ों की तरफ से शाही स्नान और पेशवाई नाम बदलने का प्रस्ताव पास कर उसे प्रयागराज मेला प्राधिकरण को दिया जाएगा.जिसके बाद शाही स्नान और पेशवाई का नाम बदलने की प्रक्रिया होगी. साधु संत 2025 के महाकुम्भ से पहले इन दोनों नामों को बदलने की प्रक्रिया पूरी करवाना चाहते हैं.

इस मामले में कुंम्भ मेलाधिकारी विजय किरण आनंद का कहना है, कि अखाड़ों की तरफ से अभी कोई प्रस्ताव नहीं मिला है. यदि अखाड़ा परिषद की तरफ से कोई प्रस्ताव प्रयागराज मेला प्राधिकरण को दिया जाता है, तो उस पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी.नाम बदलने का प्रस्ताव पास कर शासन प्रशासन को भेजा जाएगा.

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इस मामले में श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव महंत यमुना पुरी महाराज ने कहा, कि अखाड़े प्राचीन संस्थाएं हैं. उनके मुताबिक अखाड़ों में बहुत सारी बातें मुगल काल से चली आ रही हैं. शाही स्नान और पेशवाई नाम उर्दू और फारसी के शब्द हैं, जिनका प्रयोग अदालतों से लेकर सरकारी कामकाज में होता है. अखाड़े के पुराने दस्तावेजों में भी पेशवाई और शाही स्नान का ही जिक्र मिलता है.

महंत यमुनापुरी महाराज का कहना है, कि अगर पेशवाई और शाही स्नान का नाम है, तो कुंभ के साथ ही सरकारी दस्तावेजों में भी बदलना पड़ेगा. जिसकी प्रक्रिया पूरी करने के लिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की आगामी बैठक में इस प्रस्ताव को लेकर सभी अखाड़ों की सहमति से प्रस्ताव बनाकर उसे शासन और सरकार के साथ ही प्रयागराज मेला प्राधिकरण को दिया जाएगा.उन्होंने कहा, कि संसार परिवर्तनशील है और हिंदी अपनी मातृभाषा है. इसलिए हमें अपनी भाषा और बोली पर गर्व करना चाहिए.

क्या होता है पेशवाई और शाही स्नान: कुंभ और महाकुंभ के दौरान मेला क्षेत्र में अखाड़ों मंडलेश्वर और महामंडलेश्वर के साथ मेला क्षेत्र में प्रवेश करने वाली यात्रा को पेशवाई कहा जाता है. इस पेशवाई में अखाड़ों में संत महंत के साथ ही उनके समर्थकों की भीड़ गाजे बाजे के समेत पूरी भव्यता के साथ मेला क्षेत्र में प्रवेश करते हैं. उसी परंपरा को पेशवाई के नाम से अब तक जाना जाता रहा है. इसी तरह से कुंम्भ मेला के दौरान तीन प्रमुख स्नान पर्व मकर संक्रांति मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी पर सभी अखाड़े राजसी अंदाज में सजधजकर हाथी घोड़े और रथ पर सवार होकर स्नान करने जाते हैं. इसी स्नान को शाही स्नान कहा जाता है.जिस रास्ते से अखाड़े शाही स्नान करने जाते हैं, उस रास्ते से आम लोगों की आवाजाही बंद रहती है. अखाड़ों के साधु संतों महंतों के स्नान करने की इसी परंपरा को शाही स्नान नाम दिया गया है. जिसका अब साधु संत विरोध कर रहे हैं. संत महात्माओं का कहना है, कि पेशवाई और शाही स्नान में उर्दू फारसी शब्द का इस्तेमाल किया गया है, जिसे बदलने का अब वक्त आ गया है. इसीलिए साधु संतों की तरफ से इन दोनों शब्दों को बदलने की मांग की जा रही है.

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