अजमेर: राजस्थान के अजमेर दरगाह विवाद को लेकर देशभर में सियासी पारा गरमाने लगा है, सियासतदानों के बीच जुबानी जंग छिड़ गई है. वहीं, अजमेर दरगाह में शिव मंदिर होने के दावे को लेकर पहली बार दरगाह के दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन का बयान सामने आया है. उन्होंने कहा कि 800 साल पहले यहां कच्ची कब्र थी, फिर नीचे मंदिर कैसे हो सकता है. उन्होंने कहा कि सन 1950 में जस्टिस गुलाम हसन की अध्यक्षता में बने आयोग की इंक्वायरी रिपोर्ट में दरगाह में कहीं भी मंदिर होने का हवाला नहीं दिया गया है.
दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन ने कहा कि संभल की तरह अजमेर दरगाह को लेकर भी विवाद खड़ा किया गया है. उन्होंने कहा कि वाद में हरविलास शारदा की पुस्तक का जिक्र किया गया है. वह पुस्तक सन 1910 में लिखी गई. सन 1930 में किताब का री-एडिशन हुआ. हरविलास शारदा इतिहासकार नहीं थे, वह शिक्षित थे. शारदा ने 1910 में जो उनकी जानकारी में आया वह लिखा. किताब के पेज नंबर 92 में साफ लिखा है कि ट्रेडिशन सेज का मतलब है, ऐसा सुना गया. इस शब्द पर ही मैं कोर्ट में अपनी बात कहूंगा. पुस्तक में जो शेष लिखा वह परिवादी ने याचिका में दिया है. उन्होंने कहा कि हम जो कुछ भी जवाब देंगे, वह वकीलों से राय शुमारी करके कोर्ट में मजबूती से देंगे.
कच्ची कब्र के नीचे मंदिर कैसे हो सकता है ? उन्होंने कहा कि ख्वाजा गरीब नवाज का 800 साल का इतिहास है. भारत सरकार ने दरगाह ख्वाजा गरीब नवाज एक्ट पास कर रही थी. उससे पहले 1950 में भारत सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन जज गुलाम हसन की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया. उस आयोग ने दरगाह के बारे में समस्त जानकारियां और इतिहास से जुड़ी सभी चीजों को जुटाया. उन्होंने कहा कि पुराने रिकॉर्ड देखने के बाद आयोग ने अपनी रिपोर्ट तत्कालीन सरकार को दी.
1950 में जस्टिस गुलाम हसन की अध्यक्षता में बने आयोग की रिपोर्ट भारत सरकार के पास मौजूद है. इस रिपोर्ट के पेज नंबर 18 पर साफ लिखा है कि ख्वाजा गरीब नवाज यहां आए तब यहां कच्चा मैदान था. उस कच्चे मैदान में उनकी कब्र थी. डेढ़ सौ साल तक ख्वाजा गरीब नवाज का मजार बिल्कुल कच्चा रहा. वहां कोई पक्का निर्माण नहीं था, तब कच्ची कब्र के नीचे मंदिर कहां से आ गया.
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