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दरगाह दीवान बोले- कच्ची कब्र के नीचे मंदिर कहां से आ गया ? संभल हिंसा पर कही बड़ी बात

Ajmer Dargah Dispute- अजमेर दरगाह दीवान का बयान, कहा- 800 साल पहले मैदान में थी कच्ची कब्र. उसके नीचे मंदिर कैसे हो सकता है.

Syed Zainul Abedin Ali Khan
सैयद जैनुअल आबेदीन (ETV Bharat GFX)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 29, 2024, 5:35 PM IST

अजमेर: राजस्थान के अजमेर दरगाह विवाद को लेकर देशभर में सियासी पारा गरमाने लगा है, सियासतदानों के बीच जुबानी जंग छिड़ गई है. वहीं, अजमेर दरगाह में शिव मंदिर होने के दावे को लेकर पहली बार दरगाह के दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन का बयान सामने आया है. उन्होंने कहा कि 800 साल पहले यहां कच्ची कब्र थी, फिर नीचे मंदिर कैसे हो सकता है. उन्होंने कहा कि सन 1950 में जस्टिस गुलाम हसन की अध्यक्षता में बने आयोग की इंक्वायरी रिपोर्ट में दरगाह में कहीं भी मंदिर होने का हवाला नहीं दिया गया है.

दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन ने कहा कि संभल की तरह अजमेर दरगाह को लेकर भी विवाद खड़ा किया गया है. उन्होंने कहा कि वाद में हरविलास शारदा की पुस्तक का जिक्र किया गया है. वह पुस्तक सन 1910 में लिखी गई. सन 1930 में किताब का री-एडिशन हुआ. हरविलास शारदा इतिहासकार नहीं थे, वह शिक्षित थे. शारदा ने 1910 में जो उनकी जानकारी में आया वह लिखा. किताब के पेज नंबर 92 में साफ लिखा है कि ट्रेडिशन सेज का मतलब है, ऐसा सुना गया. इस शब्द पर ही मैं कोर्ट में अपनी बात कहूंगा. पुस्तक में जो शेष लिखा वह परिवादी ने याचिका में दिया है. उन्होंने कहा कि हम जो कुछ भी जवाब देंगे, वह वकीलों से राय शुमारी करके कोर्ट में मजबूती से देंगे.

दरगाह दीवान ने क्या कहा, सुनिए... (ETV Bharat Ajmer)

कच्ची कब्र के नीचे मंदिर कैसे हो सकता है ? उन्होंने कहा कि ख्वाजा गरीब नवाज का 800 साल का इतिहास है. भारत सरकार ने दरगाह ख्वाजा गरीब नवाज एक्ट पास कर रही थी. उससे पहले 1950 में भारत सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन जज गुलाम हसन की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया. उस आयोग ने दरगाह के बारे में समस्त जानकारियां और इतिहास से जुड़ी सभी चीजों को जुटाया. उन्होंने कहा कि पुराने रिकॉर्ड देखने के बाद आयोग ने अपनी रिपोर्ट तत्कालीन सरकार को दी.

1950 में जस्टिस गुलाम हसन की अध्यक्षता में बने आयोग की रिपोर्ट भारत सरकार के पास मौजूद है. इस रिपोर्ट के पेज नंबर 18 पर साफ लिखा है कि ख्वाजा गरीब नवाज यहां आए तब यहां कच्चा मैदान था. उस कच्चे मैदान में उनकी कब्र थी. डेढ़ सौ साल तक ख्वाजा गरीब नवाज का मजार बिल्कुल कच्चा रहा. वहां कोई पक्का निर्माण नहीं था, तब कच्ची कब्र के नीचे मंदिर कहां से आ गया.

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उन्होंने बताया कि मालवा के महमूद खिलजी ने अजमेर पर कब्जा किया था. ख्वाजा गरीब नवाज के खलीफा सूफी हमीमुद्दीन की नागौर में दरगाह है. उनके परपोते ख्वाजा हुसैन नागौरी के नाम से जाने जाते थे. महमूद खिलजी की उनसे बहुत ज्यादा दिली मोहब्बत थी. महमूद खिलजी ने उन्हें तौफे में कुछ दौलत दी. उस दौलत का उपयोग गुंबद, जन्नती दरवाजा बनवाने के साथ ही कच्चे मजारों को पक्का बनवाने में किया गया. ख्वाजा गरीब नवाज के निधन के डेढ़ सौ साल के बाद यहां पक्का निर्माण हुआ है.

संभल मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत : ऐसे निराधार और झूठे दावे करने वाले लोगों के खिलाफ पाबंदी लगाई जाए और उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन अली चिश्ती ने कहा कि दरगाह को लेकर जो विवाद बना हुआ है, इस विवाद को लेकर मीडिया में अलग-अलग तरह के बयान आ रहे हैं. इस कारण सच्चाई बयां करने के लिए मुझे सामने आना पड़ा है, ताकि दरगाह की वास्तविक स्थिति जनता के सामने आ सके.

उन्होंने संभल की शाही मज्जिद को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया, साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार पर अमन और शांति बनाए रखने की अपील की. अपनी ओर से ऐसा कोई काम ना करें कि कोई विवाद खड़ा हो. हमारे पास अधिकार है कि हम कोर्ट में अपनी बात रख सकें और आप देख लें, कोर्ट ने संभल मामले में निर्णय दिया.

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