उत्तरकाशी:गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित सदियों पुरानी देशाटन की परंपरा को आज भी निभा रहे हैं. दोनों धामों के कपाट बंद होने के बाद तीर्थ पुरोहित देशाटन पर निकलते हैं. इस दौरान वह यजमानों के घर पहुंचकर उन्हें गंगा व यमुना का जल भेंट करते हैं. साथ ही दोनों धामों का प्रसाद भी भेंट करते हैं. देशाटन में तीर्थ पुरोहित यजमानों को आगामी चारधाम यात्रा पर पधारने का भी न्योता देते हैं.
तीर्थ पुरोहितों की पीढ़ी परंपरा बढ़ा रही आगे:दरअसल, प्रतिवर्ष गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट बंद होने के बाद देशाटन की प्रक्रिया शुरू होती है. यह वो परंपरा है, जो कि सदियों से चलती आ रही है. वर्तमान में जो भी तीर्थ पुरोहित हैं, कभी उनके पुरखे उस परंपरा को निभाते हुए देशभर में फैले अपने यजमानों तक पहुंचकर उनकी कुशलक्षेम के साथ उन्हें गंगा व यमुना जल के साथ प्रसाद पहुंचाया करते थे, आज वर्तमान तीर्थ पुरोहितों की पीढ़ी भी इस परंपरा को आगे बढ़ा रही है.
देशाटन की यह प्रक्रिया माघ माह से होती है शुरू:यह परंपरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि क्योंकि जब छह माह तक धाम के कपाट खुले रहते हैं तो दान दक्षिणा से तीर्थ पुरोहितों की आजीविका चलती है. लेकिन धाम के कपाट बंद होने के बाद देशाटन से ही तीर्थ पुरोहितों को दान दक्षिणा प्राप्त हो पाती है. गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित राजेश सेमवाल बताते हैं कि देशाटन की यह प्रक्रिया माघ माह से शुरू होती है. इस माह को धार्मिक कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है.