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जोधपुर का अचलनाथ मंदिर जहां सिर्फ नागा साधु ही करते हैं पूजा - Sawan Special

जोधपुर में मेहरानगढ दुर्ग के नीचे पहाड़ी की तलहटी में करीब पांच सौ साल पुराना अचलनाथ शिवलिंग है, जिस पर आम जनता जल अर्पित नहीं कर सकती. यहां केवल नागा साधू ही जल अर्पण कर सकते हैं. यह परंपरा पिछले 500 सालों से बनी हुई है. विस्तार से जानिए इस शिवलिंग की महिमा इस खास रिपोर्ट में...

ACHALNATH TEMPLE OF JODHPUR
ACHALNATH TEMPLE OF JODHPUR (PHOTO : ETV BHARAT)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 25, 2024, 6:12 AM IST

जोधपुर का अचलनाथ मंदिर (VIDEO : ETV BHARAT)

जोधपुर. सामान्यत: किसी शिवालय के प्रमुख शिवलिंग पर श्रद्धालु जल अर्पित कर अपनी मनोकामना मांगते हैं, लेकिन जोधपुर में मेहरानगढ दुर्ग के नीचे पहाड़ी की तलहटी में करीब पांच सौ साल पहले स्वयंभू प्रकट शिवलिंग अचलनाथ महादेव पर सामान्यजन जल अर्पित नहीं कर सकते. सिर्फ इस शिवलिंग के दर्शन से ही उनकी मनोकामना पूरी होती है. इस मंदिर के प्रमुख पीले शिवलिंग पर सिर्फ नागा साधु महंत ही जल अर्पित करते हैं. यह परंपरा पांच सौ सालों से अधिक समय से चली आ रही है. जल भी इसी शिवलिंग के साथ मिली बावड़ी का अर्पित किया जाता है, जो आज भी मौजूद है. लेकिन वहां जाना प्रतिबंधित है. यहां सुबह भस्मारती भी होती है, जिसके दर्शन के लिए भी बड़ी संख्या में भक्त आते हैं.

1531 में हुआ था निर्माण : इस मंदिर का राव राजा गांगा ने संवत 1531 में करवाया था. आज शहर के लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र बना हुआ है. भीतरी शहर के संकरे रास्तों से होते हुए अचलनाथ महोदव मंदिर तक तक पहुंचा जाता है. मंदिर में सामान्यजन के लिए यहां अलग स्थापित शिवलिंग है जिस पर लोग जल चढ़ाते हैं. श्रावण मास में यहां भक्तों का तांता लगता है. शाम को होने वाली आरती नागा साधु द्वारा की जाती है जो काफी आकर्षक होती है.

यूं मंदिर की हुई स्थापना : कहा जाता है कि पांच सौ साल से भी पूर्व इस स्थान पर गाय स्वत: ही अपना दूध आकर छोडने लगी थी. साधुओं ने जब उसे देखा तो उन्होंने अनुभूति की तो पता चला कि वहां पर शिवलिंग है. जिसके बाद स्वयंभू शिवलिंग के उदय होने के बाद साधुओं ने पूजा शुरू की. इसका पता लगाने के बाद जोधपुर के तत्कालीन राव गांगा व उनकी पत्नी ने शिवालय का निर्माण करवाया. हालांकि निर्माण से पहले शिवलिंग की जगह परिवर्तित करने का प्रयास हुआ, लेकिन कोई सफल नहीं हुए, क्योंकि शिविलिंग अचल रहा. तब से अचलनाथ महादेव का नामकरण हुआ.

नागा साधु ने दिया राजा को अपने जीवन का समय : तत्कालीन महाराजा राव गांगा और महारानी नानकदेवी के संतान नहीं थी. अचलनाथ महादेव की आराधना से संतान प्राप्ति हुई. बताया जाता है कि महंत चैनपुरी भविष्यदर्शता थे. अंर्तदृष्टि से उन्हें पता चला कि राजा राव गांगा की आयु 20 वर्ष ही है. तब उन्होंने दो अन्य महंतों के साथ तपोबल से अपनी आयु का समय राव गांगा को दिया. जिसके प्रति कृतज्ञता दिखाते हुए रावगांगा ने मंदिर की जिम्मेदारी महंतों को सौंप दी थी. यह परंपरा आज तक चली आ रही है. अचलनाथ महादेव के शिवलिंग की पूजा सिर्फ साधु महंत ही कर रहे हैं. यहां तपस्या करने वाले कई नागा साधु महंतों की यहां कई समाधियां भी बनी हुई.

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नेपाली बाबा ने करवाया 1977 में जिर्णोद्धार : पुराने शहर में यह मंदिर बरसों तो अपने प्राचीन स्वरूप में रहा. मंदिर के आस पास बस्तियां ओर बाजार विकसित हो गए. 1977 में यहां नेपाली बाबा ने मंदिर का पूरा जिर्णोद्धार करवाया. उन्होंने प्राचीन अचलनाथ महादेव शिवलिंग के पास ही नर्मदा से लाकर एक शिवलिंग स्थापित किया. साधु महंतों की सभी समाधियों पर यहां शिवलिंग बने हुए है, लेकिन इन पर जल नहीं चढ़ाया जाता है. कुल 17 समाधियों में बताया जाता है कि सात यहां जीवित समाधियां भी बरसों पूर्व की है.

12 ज्योर्तिलिंग भी किए गए हैं स्थापित : सैंकडों बरसों से अचलनाथ महादेव जोधपुर के लिए आराध्य है. आज भी यहां सैंकड़ों ऐसे लोग हैं जो बिना दर्शन के भोजन नहीं करते हैं. कोरोना के समय भी आस-पास के लोगों के लिए दर्शन की व्यवस्था की गई थी. जो बताता है कि इस मंदिर के प्रति लोगों की कितनी गहरी आस्था है. इसके अलावा देश में अलग-अलग स्थानों पर मौजूद 12 ज्योर्तिलिंगों के नाम से भी यहां शिवलिंग स्थापित किए गए हैं.

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