उत्तरकाशी: साल 1978 की विनाशकारी बाढ़ के बाद दशक दर दशक आपदाओं से लड़ते हुए मजबूत हुआ उत्तरकाशी जनपद आज अपनी वयोवृद्ध 64 वर्ष की आयु में प्रवेश कर गया है. उत्तरकाशी जनपद का इन 64 वर्षों में भले ही आपदाओं का काला इतिहास रहा हो, लेकिन उसके बाद भी चारधाम यात्रा और यहां की प्राकृतिक खूबसूरती, परंपरा इसे देश-विदेश में अपनी एक विशेष पहचान दिलाती है.
24 फरवरी 1960 में उत्तरकाशी टिहरी रियासत से अलग होकर एक पृथक जनपद बना था. इसमें गंगा और रवांई घाटी के परगनाओं को शामिल किया गया. गंगोत्री और यमुनोत्री धाम स्थित होने के कारण इसकी पहचान देश-विदेश में रही है. लेकिन जनपद के लिए चुनौतियां भी कम नहीं थी. जनपद धीरे-धीरे अपने विकास की दौड़ की और बढ़ने लगा. लेकिन आपदा ने हिमालय के गोद में बसे इस जनपद की बार-बार परीक्षा ली.
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साल 1978 की विनाशकारी बाढ़ के बाद हर दशक उत्तरकाशी बड़ी-बड़ी आपदाओं को झेलता रहा. इसमें 1991 का भूकंप आज भी सबसे बड़ी त्रासदी के रूप में लोगों के जेहन में शामिल है. जिसमें 700 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. लगा था कि अब जनपद की दशा-दिशा कभी पटरी पर नहीं लौटेगी. लेकिन उसके बाद भी जनपद मजबूती के साथ खड़ा हुआ. यही कारण है तमाम आपदाओं के बाद इसने अपनी खूबसूरती नहीं छोड़ी. आज भी हर वर्ष यहां पर देश-विदेश से लोग चारधाम यात्रा सहित बुग्यालों और यहां के गांव-गांव की समृद्ध और दैवीय व सांस्कृतिक परंपराओं को देखने पहुंचते हैं.