हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में 35वीं अखिल भारतीय समन्वित मसाला अनुसंधान परियोजना की तीन दिवसीय वार्षिक समूह बैठक का शुभारंभ हुआ, जिसमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के उप-महानिदेशक (बागवानी) डॉ. एसके सिंह मुख्यातिथि रहे, जबकि बैठक की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने की. विशिष्ट अतिथि के रूप में पूर्व उप-महानिदेशक (बागवानी), डॉ. एन कृष्णा कुमार, डॉ. वीए पार्थ सारथी व एडीजी डॉ. सुधाकर पांडे उपस्थित रहे.
40 वैज्ञानिकों ने लिया हिस्सा :हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सब्जी विज्ञान विभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् व केंद्रीय मसाला अनुसंधान संस्थान कोझीकोड, केरल की ओर से संयुक्त रूप से यह बैठक आयोजित की जा रही है, जिसमें विभिन्न राज्यों के 40 अखिल भारतीय कृषि अनुसंधान परियोजना केंद्रों से आए वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं. मुख्यातिथि डॉ. एसके सिंह ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि मसालों की खेती में नर्सरी से लेकर खेत में उत्पादन के बाद प्रसंस्करण पर और अधिक काम करने की जरूरत है. ताकि मसालों की खेती को और अधिक लाभकारी बनाया जा सके. उन्होंने कहा कि मसाले वाली फसलों की खेती करके किसान अन्य फसलों के मुकाबले अधिक लाभ कमा सकते है. किसानों को एफपीओ के सहयोग से समूह बनाकर खेती करने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है. जलवायु में हो रहे परिवर्तनों के कारण एग्रो-क्लाइमेट क्षेत्रों के हिसाब से योजना बनाकर उन्नत किस्मों की खेती करने से अधिक लाभ मिलेगा.
"मसालों के लिए हो प्राकृतिक खेती" :उन्होंने कहा कि उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ-साथ मसालों की गुणवत्ता पर भी ध्यान देने की जरूरत है, ताकि मसालों के उपयोग से स्वास्थ्य में कोई हानि न हो. आईसीएआर के कोझीकोड और अजमेर में मसालों के राष्ट्रीय स्तर के संस्थान कार्यरत हैं. उन्होंने मसालों की खेती में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को जागरूक करने का भी आह्वान किया. उन्होंने जानकारी साझा करते हुए कहा कि हाल ही में जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील और अधिक उत्पादन देने वाली फसलों की 109 किस्मों का विमोचन किया गया था, जिसमें 6 किस्में मसालें वाली फसलों की थी.
"भारत मसालों की भूमि" : प्रो. बी.आर. काम्बोज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बीआर कांबोज ने अपने संबोधन में कहा कि मसाले न केवल हमारे भोजन में स्वाद और जायका जोड़ते हैं, बल्कि हमारे भोजन की गुणवत्ता और औषधीय मूल्यों को भी बढ़ाते हैं. भारत को ‘मसालों की भूमि’ के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि भारत मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है. भारत के मसाले विश्व में अपने जायके के लिए प्रसिद्ध हैं. अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आईएसओ) द्वारा सूचीबद्ध 109 मसालों में से भारत अपने विविध कृषि-जलवायु क्षेत्रों के कारण 63 का उत्पादन करता है. भारत में उगाए जाने वाले कुल 63 मसालों में से 20 को बीज मसालों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिनके सूखे बीज या फलों का उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है और वे देश के लगभग 45 प्रतिशत क्षेत्र और कुल मसाला उत्पादन का 18 प्रतिशत हिस्सा योगदान करते हैं.