जयपुर. 26 जनवरी जिसे आज हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं, लेकिन ये वो तारीख थी जिसे आजादी से पहले पूर्ण स्वराज दिवस घोषित किया गया था. 1931 से लेकर 1947 तक 26 जनवरी को देश के विभिन्न कोनों में आजादी के महोत्सव के रूप में मनाया गया. जयपुर के युवा भी इसमें पीछे नहीं रहे. उनका केंद्र था महाराजा कॉलेज, जहां प्रजामंडल के सदस्यों के साथ युवा जुटकर मनाते थे पूर्ण स्वराज दिवस.
26 जनवरी 1930 जब हिंदुस्तान के हर कोने में उत्सव सा माहौल था. खादी पहने और हाथों में भारत का तत्कालीन ध्वज लिए युवा, स्त्री-पुरुष, बूढ़े- बच्चे सब पूर्ण स्वराज का उत्सव मनाने के लिए जुटे थे. गांव-गांव, शहर-शहर में वंदे मातरम् के उद्घोष लगाते हुए जगह-जगह इकट्ठा हुए और आजादी की इमारत में एक और ईंट लगाई गई थी. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार कांग्रेस के दिसंबर 1929 लाहौर अधिवेशन में पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में पहली बार देश ने अंग्रेजी हुकूमत को तोड़ते हुए देश की आजादी की घोषणा कर दी थी. इसे पूर्ण स्वराज कहा गया.
26 जनवरी को इस तरह बनाया गया यादगार : पूर्ण स्वराज के इस संकल्प को हर घर, हर जन तक पहुंचाने के लिए 6 जनवरी 1930 को इलाहाबाद में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई. वहां 26 जनवरी को पूरे देश में स्वाधीनता दिवस मनाने का फैसला लिया गया. सभी देशवासियों से आह्वान किया गया कि अगली 26 जनवरी को भारतीय ध्वज फहराकर पूर्ण स्वराज का जयघोष किया जाए. तब से लेकर 1947 तक 26 जनवरी आजादी के महोत्सव के रूप में मनाए जाने लगी. इसके बाद 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ. संविधान सभा बनाई गई और 26 नवंबर 1949 को संविधान बनकर तैयार हो गया, लेकिन लोगों के मन में था कि 26 जनवरी को पूर्ण स्वराज मनाते आए हैं, तो इस तारीख को भी महत्व दिया जाना चाहिए. इसी वजह से 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में और 26 जनवरी को रिपब्लिक स्टेट के रूप में डिक्लेयर करते हुए गणतंत्र दिवस मनाना शुरू किया गया.