नई दिल्ली : चर्चित कहावत है, 'सोना आग में तपकर ही कुंदन बनता है'. यानि सोने को तपाया जाता है तो उसमें सारी अशुद्धियां समाप्त हो जाती हैं और वह निखरकर कुंदन बन जाता है. ठीक वैसे ही हमें भी जीवन की आग में तपना पड़ता है, तब जाकर हमारा व्यक्तित्व निखरकर सामने आता है. इस कहावत को सिद्ध कर दिखाया है, भारत के दाएं हाथ के विकेटकीपर-बल्लेबाज ध्रुव जुरेल ने, जिस कुंदन ने अपने दूसरे टेस्ट में ही चमक बिखेर दी है.
टीम इंडिया के संकटमोचक- नाम ध्रुव जुरेल
सबसे पहले जानिए जुरेल एकदम से चर्चा का केंद्र क्यों बन गए हैं ? दरअसल भारत और इंग्लैंड के बीच रांची में खेले जा रहे चौथे टेस्ट मैच में इंग्लैंड की पहली पारी 353 रन के जवाब में भारत की पहली पारी एक समय पर पूरी तरह से लड़खड़ा गई थी, भारत ने 177 रन के स्कोर पर अपने 7 विकेट गंवा दिए थे. फैंस के साथ-साथ क्रिकेट एक्सपर्ट भी मानने लगे थे कि भारत की पहली पारी जल्द सिमट जायेगी और इंग्लैंड बड़ी बढ़त बना लेगा. भारत के ऊपर हार के बादल भी मंडराने लगे थे. लेकिन, विकेटकीपर बल्लेबाज ध्रुव जुरेल एक छोर संभाले हुए थे, जो सिर्फ दूसरा टेस्ट मैच खेल रहे थे.
23 वर्षीय जुरेल भारत के लिए संकटमोचन साबित हुए और उन्होंने 90 रनों की जुझारु पारी खेलकर टीम इंडिया को भारी संकट से निकाल लिया. अपनी इस पारी में उन्होंने 6 चौके और 4 छक्के जड़े. जुरेल ने 8वें विकेट के लिए कुलदीप यादव (28) के साथ 76 रन की महत्वपूर्ण साझेदारी की और फिर 9वें विकेट के लिए आकाश दीप (9) के साथ 40 रन की पार्टनरशिप कर भारत को पहली पारी में सम्मानजनक स्कोर तक पहुंचा दिया. जुरेल की शानदार पारी की बदौलत इंग्लैंड पहली पारी में मात्र 46 रनों की लीड ले पाया. और फिर दूसरी पारी में महज 145 के स्कोर पर सिमट गया.
भारत अब रांची टेस्ट में जीत की दहलीज पर खड़ा है, लेकिन टीम इंडिया को यहां तक पहुंचाने में सबसे बड़ी भूमिका ध्रुव जुरेल ने निभाई है. आज ध्रुव की चमक चारों ओर बिखर रही है, सभी की जुबान पर जुरेल का नाम है. लेकिन, इस चमक को हासिल करने में जुरेल ने कड़ी मेहनत की है, खुद को खूब तपाया है, तब जाकर जुरेल आज सभी की आंखों का तारा बने हैं. जुरेल का यहां तक का सफर बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है, उनकी मां ने अपने जेवरात बेचकर उन्हें क्रिकेट किट दिलाई थी.
पिता कारगिल युद्ध के योद्धा
ध्रुव जुरेल का जन्म 21 जनवरी 2021 को उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था. उनके पिता नेम सिंह जुरैल आर्मी में हवलदार थे, जो कारगिल युद्ध के नायक रहे थे. जुरेल के पिता बचपन से ही चाहते थे कि बेटा उनकी तरह देश सेवा करे, और आर्मी ऑफिसर बने. लेकिन, उस समय उन्हें अंदाजा नहीं थी कि बेटा टीम इंडिया में शामिल होकर देश सेवा करेगा.
स्कूल समर कैंप से की क्रिकेटिंग करियर की शुरुआत
5 साल की उम्र में जुरेल का बायां पैर बस के नीचे आ गया और उसकी सर्जरी करानी पड़ी. लेकिन एक योद्धा के पुत्र जुरेल ने जल्दी ही रिकवरी करते हुए उसे पूरी तरह से ठीक कर लिया. पिता ने बेटे का एडमिशन आर्मी स्कूल में करा दिया. जुरेल ने 8 साल की उम्र में स्कूल में दो महीने का समर कैंप ज्वाइंन किया, जहां उन्होंने खेल के रूप में स्वीमिंग चुना, लेकिन कुछ लड़कों को लेदर बॉल से क्रिकेट खेलता हुए देखकर जुरेल की इस खेल में रुचि बढ़ी और क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया. यहीं से उनके क्रिकेटिंग करियर की शुरुआत हुई.