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भारत का बदकिस्मत क्रिकेटर, ब्रैडमैन से भी ज्यादा का औसत, 22 साल की उम्र में दोहरा शतक, लेकिन 28 साल की उम्र में करियर खत्म - UNLUCKY CRICKETER VINOD KAMBLI

क्रिकेट के पंडितों का आज भी कहना है कि कांबली वास्तव में तेंदुलकर से ज्यादा प्रतिभाशाली थे.

विनोद कांबली और सुनील शेट्टी
विनोद कांबली और सुनील शेट्टी (IANS PHOTO)

By ETV Bharat Sports Team

Published : Dec 22, 2024, 5:38 PM IST

नई दिल्ली: जब टेस्ट क्रिकेट की बात आती है तो हमारे जेहन में सबसे पहले डॉन ब्रैडमैन का नाम आता है. क्योंकि सिर्फ़ 52 टेस्ट में 99.94 का औसत रखना आसान काम नहीं है. बल्कि आज के दौर में इस औसत से रन बनाना तकरीबन ना मुम्किन है. ब्रैडमैन के बाद अगर दूसरे किसी ऐसे क्रिकेटर का नाम लिया जाता है तो वह सचिन तेंदुलकर हैं. सचिन के नाम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन, टेस्ट में सबसे ज्यादा शतक, वनडे में दोहरा शतक बनाने वाले पहले व्यक्ति हैं.

ब्रैडमैन और तेंदुलकर क्रिकेट की दो पहचान
ब्रैडमैन और तेंदुलकर क्रिकेट की दो पहचान हैं. इन दोनों दिग्गजों से आगे निकलना किसी के लिए भी आसान नहीं है. लेकिन 1990 के दशक की शुरुआत में, एक भारतीय बल्लेबाज ने अपने करियर की शुरुआत इतनी शानदार तरीके से की कि हर कोई उस की तुलना डॉन ब्रैडमैन से करने लगे थे यहां तक कि उस खिलाड़ी को सचिन से भी बेहतर बताते थे.

विनोद कांबली (IANS PHOTO)

1991 में तेंदुलकर सबसे रोमांचक युवा बल्लेबाज थे
वह वर्ष 1991 था जब तेंदुलकर अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में केवल दो साल ही बिता पाए थे, लेकिन वे उस समय सबसे रोमांचक युवा बल्लेबाज थे, और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज बनने की राह पर थे. कपिल देव अपने करियर के अंतिम चरण में थे. तेंदुलकर और मोहम्मद अजहरुद्दीन को छोड़कर भारत को अपने बल्लेबाजी क्रम का नेतृत्व करने के लिए युवा बल्लेबाजों की जरूरत थी.

19 वर्षीय खिलाड़ी विनोद कांबली का पदार्पण
इसलिए जब भारत त्रिकोणीय श्रृंखला में पाकिस्तान और वेस्टइंडीज के साथ खेलने के लिए शारजाह गया, तो बीसीसीआई ने 19 वर्षीय खिलाड़ी को पदार्पण का मौका दिया. उसका नाम विनोद कांबली था. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उनका पहला साल बहुत अच्छा नहीं रहा. मध्य क्रम में बल्लेबाजी करते हुए, उन्होंने अपने करियर के पहले 15 महीनों में 9 वनडे मैच की सात पारियों में केवल 122 रन बना सके, जिसकी वजह से उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया.

विनोद कांबली (IANS PHOTO)

1992 में विनोद कांबली की दमदार वापसी
लेकिन फिर 1992 की शुरुआत विनोद की वापसी हुई और जयपुर में इंग्लैंड के खिलाफ नाबाद शतक जड़ दिया. उस के बाद सिर्फ़ सात टेस्ट में कांबली ने इंग्लैंड और जिम्बाब्वे के खिलाफ दो शतक और लगातार दो दोहरे शतक जड़ दिए थे. 7 टेस्ट के बाद, कांबली, जो उस समय 22 साल के थे, ने 7 टेस्ट में 100.4 की औसत से 793 रन बनाए थे. जो खुद ब्रैडमैन से भी ज्यादा था.

यह सोचना लगभग अविश्वसनीय है कि एक खिलाड़ी ने इतनी शानदार शुरुआत के बाद कैसे बर्बाद हो गया. कांबली ने अपना पहला दोहरा शतक सिर्फ़ अपने तीसरे टेस्ट में बनाया, जबकि तेंदुलकर को अपने पहले दोहरे शतक के लिए 6 साल तक इंतज़ार करना पड़ा था. सचिन ने 1999 में न्यूजीलैंड के खिलाफ अपना पहला दोहरा शतक लगाया था.

विनोद कांबली (IANS PHOTO)

विनोद कांबली का करियर
इतनी शानदार वापसी के बावजूद कांबली सिर्फ़ 17 टेस्ट मैच खेलने के बाद उनका औसत 54.20 था लेकिन उसके बाद उन्होंने भारत के लिए फिर कभी टेस्ट मैच नहीं खेला. 1996 के विश्व कप के सेमीफाइनल में भारत के श्रीलंका से हारने के बाद उनके आंसुओं की छवि लंबे समय तक लोगों के जेहन में रही. तब तक वे अपना आखिरी टेस्ट मैच खेल चुके थे.

श्रीलंका के खिलाफ 120 रन बनाने के बाद, कांबली अपने अगले 10 टेस्ट मैचों में सिर्फ़ दो अर्धशतक ही लगा पाए. उस समय उनका प्रदर्शन इतना खराब नहीं था कि उन्हें टीम से बाहर कर दिया जाए, लेकिन सिर्फ़ प्रदर्शन में कमी ही कांबली के बाहर होने का एकमात्र कारण नहीं था बल्कि मैदान के बाहर उनकी गतिविधियां और भी ज़्यादा चर्चा में थी जो उनके करियर के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हुईं.

विनोद कांबली (IANS PHOTO)

28 साल की उम्र में विनोद कांबली का करियर खत्म
1991 से 2000 के बीच, कांबली ने भारतीय टीम में नौ बार वापसी की. लेकिन 2000 में उनका करियर खत्म हो गया. तब उनकी उम्र सिर्फ 28 साल थी. कांबली ने नौ वर्षों में भारत के लिए 104 एकदिवसीय मैच खेले, जिसमें 32.59 की औसत से 2477 रन बनाए, जिसमें दो शतक शामिल हैं.

तेंदुलकर और विनोद कांबली
अपने खराब स्वास्थ्य के कारण खबरों में रहने वाले कांबली भारतीय क्रिकेट की सबसे दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण कहानियों में से एक के रूप में जाने जाते हैं. क्रिकेट के पंडितों का तब और अब भी कहते हैं कि कांबली वास्तव में तेंदुलकर से ज्यादा प्रतिभाशाली थे. लेकिन आज एक को भारतीय क्रिकेट का भगवान कहा जाता है तो दूसरे को बदकिस्मत क्रिकेटर कहा जाता है.

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