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भारत के बैडमिंटन और बॉक्सिंग इतिहास में 13 अगस्त का दिन खास, जानिए क्या है वजह ? - Special Day

By IANS

Published : Aug 13, 2024, 2:27 PM IST

August 13 is a special day of India : भारत के लिए बैडमिंटन और बॉक्सिंग इतिहास में 13 अगस्त का दिन खास है, क्योंकि इस दिनों दोनों खेलों के बेहतरीन खिलाड़ियों का खास दिन है. पढ़िए पूरी खबर..

satwiksairaj rankireddy and usha nagisetty
सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी और उषा नागिसेट्टी (IANS PHOTOS)

नई दिल्ली:भारत के बेहतरीन बैडमिंटन डबल्स खिलाड़ी सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी मंगलवार को 24 साल के हो गए हैं. सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की जोड़ी ने भारत को बैडमिंटन डबल्स में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां दिलाई हैं. यह पहली ऐसी भारतीय पुरुष डबल्स जोड़ी है, जिसने विश्व रैंकिंग में नंबर एक का स्थान हासिल किया और बीडब्ल्यूएफ वर्ल्ड टूर में सभी लेवल पर जीत हासिल की है.

सात्विक के पिता भी एक स्टेट लेवल खिलाड़ी थे. सात्विक ने 6 साल की उम्र में अमलापुरम में बैडमिंटन खेलना शुरू किया था और 14 साल की उम्र तक आते-आते उनका फोकस डबल्स गेम पर हो गया. इसके पीछे सात्विकसाईराज का तर्क यह था कि सभी खिलाड़ी सिंगल्स में खेलना चाहते हैं, भारत को डबल्स में भी अच्छे खिलाड़ियों की जरूरत है. सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी के नाम बैडमिंटन में सबसे तेज स्मैश का विश्व रिकॉर्ड भी है. उनके स्मैश की गति 565 किलोमीटर प्रति घंटा मापी गई थी.

सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की जोड़ी ने 2022 के कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीता था. इसके बाद उन्होंने 2022 के एशियाई गेम्स में भी गोल्ड जीता. साल 2023 की बैडमिंटन एशिया चैंपियनशिप में भी इस जोड़ी ने गोल्ड मेडल जीता. यह ऐसा करने वाली पहली भारतीय जोड़ी है. 2020 में सात्विक और उनके डबल्स पार्टनर चिराग शेट्टी को भारत सरकार से अर्जुन अवार्ड मिल चुका है.

पेरिस ओलंपिक में भी सात्विकसाईराज-चिराग की जोड़ी पदक की बहुत बड़ी दावेदार थी. हालांकि उनको क्वार्टरफाइनल में हार मिली. सात्विक ने पेरिस ओलंपिक में मेडल न जीतने के बाद गहरी निराशा प्रकट करते हुए कहा था. यह दर्द बहुत गहरा और वास्तविक है. आगे का रास्ता ग्राउंड जीरो से शुरू होता है.

13 अगस्त को भारत की महिला मुक्केबाज उषा नागिसेट्टी का भी बर्थडे है. उनका जन्म आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में हुआ था. कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में देश का नाम रोशन करने से लेकर उभरती प्रतिभाओं को निखारने तक, उषा ने भारतीय खेलों में उल्लेखनीय योगदान दिया है.

16 साल की उम्र में पेशेवर मुक्केबाजी को करियर के रूप में अपनाने वालीं उषा को प्रतिष्ठित ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. वह मुक्केबाजी में यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली महिला हैं. 2004 और 2010 के बीच, उन्होंने फेदरवेट कैटेगरी में छह नेशनल गोल्ड मेडल जीते. 2006 और 2008 में उन्होंने विश्व चैंपियनशिप में सिल्वर और एशियाई चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता.

हालांकि, पूजा के करियर को बड़ा झटका तब लगा, जब उनको 2012 लंदन ओलंपिक से पहले घुटने और गर्दन में चोट लग गई. यह इस खेल के प्रति पूजा का जुनून था कि उन्होंने बतौर कोच बॉक्सिंग में सक्रिय योगदान देना जारी रखा. वह 2013 से राष्ट्रीय महिला टीम और रेलवे महिला टीम को ट्रेनिंग दे रही हैं. पूजा का सपना है कि उनकी ट्रेनिंग में कोई एक लड़की भारत को ओलंपिक का मेडल दिलाए. एक ऐसा मेडल, जो पूजा चोट लगने की वजह से हासिल नहीं कर पाई थीं.

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