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रीवा में शिव का आलौकिक धाम, श्रृंगी ऋषि की तपस्या देख भोलेनाथ ने दिए थे दर्शन, रातों-रात हुआ निर्माण - REWA DEVTALAB SHIV TEMPLE

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 12, 2024, 8:30 AM IST

रीवा शहर से 50 किलोमीटर दूर भगवान भोलेनाथ का अलौकिक शिवधाम देवतालाब शिव मंदिर स्थित है. इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विश्वक्रर्मा ने रातों-रात किया था. इसको लेकर कई रोचक किस्से हैं.

REWA SHIV NAGARI DEVTLAB
देवतालाब शिव मंदिर के दर्शन से पूरी होती है चारोधाम की यात्रा (ETV Bharat)

रीवा: विंध्य क्षेत्र की धरती के अजब किस्से हैं, इस धरती में कई ऐसे रहस्य हैं, जिन्हें जानकर लोगों को हैरानी भी होती है, कि ऐसा कैसे हो सकता है. यहां कई ऐसी धरोहर हैं, जो सैकड़ों नहीं हजारों वर्षों से भी ज्यादा पुरानी हैं. आज हम बात करने जा रहे हैं, यहां पर स्थित आलौकिक शिवधाम की. जिसके निर्माण की कहानी त्रेयता युग से जुड़ी हुई है. इस पवित्र शिवधाम का नाम देवतालाब है. यहां पर एक विशाल शिव मंदिर है. जिसे एक बड़े से चट्टान को उकेर कर बनाया गया था. इसका निर्माण भगवानों के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा ने खुद एक रात में किया था. कहा जाता है कि चारोधाम की यात्रा करने के बाद श्रद्धालु इस दिव्य मंदिर में पहुंचकर जब तक भगवान शिव के दर्शन नहीं कर लेते, तब तक उनकी चारों धाम की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती.

देवतालाब मंदिर के नीचे दूसरा मंदिर (ETV Bharat)

रीवा से 50 किलोमीटर दूर स्थित है आलौकिक शिवधाम

शिव की नगरी कहे जाने वाले देव तालाब का आलौकिक शिव धाम रीवा शहर से महज 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस मंदिर में श्रृंगेश्वर नाथ रूपी शिवलिंग स्थापित है. जिसे सोमनाथ के रूप में भी जाना जाता है. बडी संख्या में देश विदेश से श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन करने देवतालाब मंदिर आते हैं. श्रावण, अगहन और फाल्गुन मास में बड़ी संख्या में भक्त भगवान शिव के दर्शन करने देवतालब पहुंचते हैं.

त्रेता युग में इसी स्थान पर श्रृंगीऋषि ने की थी तपस्या

किवदंतियां हैं कि, देवतालाब का यह शिव धाम त्रेता युग के समय का है. त्रेयता युग के समय में भगवान भोलेनाथ के परम भक्त श्रृंगीऋषि इस क्षेत्र में आए थे, तब इस स्थान पर घना जंगल हुआ करता था. उन्होंने यहीं पर रूककर भगवान शिव की अराधना की और तस्पया में लीन हो गए. इसके बाद स्वयं भगवान शिव ने श्रृंगीऋषि को साक्षात दर्शन दिए, तभी एक शिवलिंग प्रकट हुई. जिसके बाद भगवान शिव ने श्रृंगीऋषि को इसी स्थान पर मंदिर बनवाने के लिए निर्देशित किया.

औरंगजेब की सेना ने शिवलिंग को किया था खंडित करने का प्रयास (ETV Bharat)

भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में किया था भव्य मंदिर का निर्माण

श्रृंगीऋषि ने भगवानों के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा को अमंत्रित किया. जिसके बाद स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने एक विशाल चट्टान को तराश कर एक ही रात में बेजोड़ भव्य मंदिर का निर्माण किया था. उसी दौरान भगवान विश्वकर्मा ने मंदिर के चारों ओर तालाबों का निर्माण किया, ताकि भक्त मंदिर में आकार भगवान शिव का जलाभिषेक कर सकें. इन्हीं तलाबों की वजह से शिव के इस नगरी का नाम देवतालाब पड़ा. कहा जाता है कि, भगवान भोलेनाथ के इस दिव्य देवतालाब मंदिर के अंदर जो श्रृंगेश्वर नाथ रूपी शिवलिंग है, उसका का रंग दिन में चार बार बदलता है.

मंदिर के नीचे दूसरा मंदिर

जानकार बताते हैं कि, जिस देवतालाब मंदिर के गर्भगृह में श्रृंगेश्वर नाथ शिवलिंग स्थापित है. उसके ठीक नीचे शिव का एक और मंदिर स्थापित है. वहां पर पहुंचने के लिए मंदिर के ठीक सामने से एक रास्ता जाता था, जो वर्षों पहले ही बंद हो चुका है. उसी स्थान पर खजाने के साथ ही एक चमत्कारिक मणि भी मौजूद है. जिसकी रक्षा स्वयं नाग देवता करते है. कई वर्षों पूर्व मंदिर के तहखाने से खतरनाक जीव जंतु निकलने लगे, जिसके बाद से उसका दरवाजा हमेशा के लिए बंद कर दिया गया.

भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में किया मंदिर का निर्माण (ETV Bharat)

औरंगजेब के सेना ने की थी शिवलिंग को खंडित करने की कोशिश

कहा जाता है कि, मुगल शासक औरंगजेब के शासन काल में उसकी सेना देवतालाब पहुंच गई थी. सेना ने मंदिर में विराजित भगवान श्रृंगेश्वर नाथ रूपी शिवलिंग को खंडित करने का प्रयास भी किया था. जिसके बाद ही उसका शर्वनाश हो गया था. ऐसा कहते हैं कि, जब मुगल सेना ने शिवलिंग को तोड़ने के लिए शिवलिंग में प्रहार किया, तो उसमें तीन दरारें पड़ गई और एक दरार से खून तो दूसरे दरार से दूध. वहीं तीसरी दरार से गंगा की धारा निकल पड़ी. तब से ही यहां पर भगवान भोलेनाथ के श्रृंगेश्वर नाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगने लगा.

रीवा रियासत के महराजाओं ने भी करवाया मंदिर में विकास कार्य

इतिहास में यह भी दर्शाया गया है कि भगवान विश्वकर्मा ने भोलेनाथ के इस मंदिर को स्वयं आकार दिया. उसके बाद रीवा रियासत के महाराजा ने भी मंदिर में कई विकास कार्य करवाए. उन्होंने मंदिर के गर्भ गृह में स्थित मुख्य शिवलिंग के पास ही चार अन्य शिवलिंग स्थापित करवाए और मंदिर के बाहर चारों दिशाओं में चार अन्य मंदिरों का भी निर्माण कराया.

देवतालाब में शिव के दर्शन किए बगैर नहीं पूरी होती चारोधाम की यात्रा

देवतालाब शिव मंदिर की एक मान्यता यह भी है कि, देवतालाब मंदिर में विराजमान श्रृंगेश्वर नाथ भगवान के दर्शन किए बगैर चारोधाम की यात्रा को सफल नहीं माना जाता. क्योंकि यह भोलेनाथ के सभी रूपों में जेष्ठ रूप है. यहां ऐसी प्रथा है की चारोधाम की यात्रा करने के बाद श्रद्धालु देवतालाब मंदिर आते हैं और भगवान भोलेनाथ को रोट का प्रसाद चढ़ाते है. इसके बाद ही चारोधाम की यात्रा सफल मानी जाती है.

भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए बनाए गए थे तालाब (ETV Bharat)

वरिष्ठ लेखक ने मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य बताए

वरिष्ठ लेखक और पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी 85 वर्षीय अमोल प्रसाद मिश्रा ने मंदिर से जुड़े कई रोचक तथ्यों को ईटीवी भारत से साझा किया. अमोल प्रसाद मिश्रा ने बताया कि "उनके गुरू पंडित जगदीश प्रसाद शास्त्री थे. जिन्होंने "श्री देवतालाब महातिमम" नाम से संस्कृत में काव्य लिखा था. गुरू जी ने अच्छी तरह से शोध करते हुए लिखा है, कि देवतालाब का जो भव्य शिव मंदिर है, वह श्रृंगीऋषि ने बनवाया था. श्रृंगीऋषि राजा दशरथ के दामाद थे. त्रेयता युग की बात है, जब श्रृंगीऋषि इस विंध्य क्षेत्र की धरती में पधारे, तो उन्होंने देवतालाब में भव्य शिव मंदिर का निर्माण करवाया था. इसलिए इस मंदिर का एक नाम श्रृंगेश्वर नाथ धाम है. इसे सोमनाथ के नाम से भी जाना जाता है. "

बम भोलिया और लमटेरा गीत गाकर भक्त करते थे भोलेनाथ को प्रसन्न

अमोल मिश्रा बताते हैं कि "सैकड़ों वर्षों से श्रावण मास, अगहन और फाल्गुन के महीने में देवतालाब मंदिर में भव्य मेले का अयोजन किया जा रहा है. पहले के जमाने में भक्त जब भगवान शिव के दर्शन करने देवतालाब मंदिर आया करते थे, तब मंदिर के पट खुलने से पहले उनके द्वारा एक विशेष गीत गाकर भगवान भोले नाथ को प्रसन्न किया जाता था. जिसे बघेली में बम भोलिया कहते है और बुंदेलखंड में लमटेरा कहते है. इस गीत के कुछ अंश खुद अमोल मिश्रा ने ईटीवी को गाकर सुनाए."

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श्रृंगेश्वर नाथ के दर्शन से पूर्ण होती है हर मनोकामना

लेखक अमोल मिश्रा ने बताया कि "उनके दादा भगवतदीन की कोई संताने नहीं थी, तब वह प्रातः काल में उठकर देवतालाब मंदिर जाकर पट खुलते ही भगवान शिव का जलाभिषेक करते थे. इसके बाद कुछ समय बीता और भगवान शिव के आशिर्वाद से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. कहते हैं कि देवतालाब मंदिर में श्रृंगेश्वर नाथ के दर्शन मात्र से लोगों के कष्ट दूर होते हैं. साथ ही भोलेनाथ भक्तों की हर मनोकामना भी पूरी करते है." इन दिनों सावन मास का महीना है. इस पावन अवसर पर बड़ी संख्या में भक्त भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए शिव की नगरी देवतालाब पहुंच रहे हैं.

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