छिन्दवाड़ा. ज्योतिषाचार्य पंडित आत्माराम शास्त्री कहते हैं, '' उड़ीसा प्रांत के पुरी में जगन्नाथ जी का मंदिर है. 12वीं शताब्दी से यहां पर जगन्नाथ जी की यात्रा का शुभारंभ हुआ जो हर साल आषाढ़ माह में रथ यात्रा के रूप में निकाली जाती है. भगवान जगन्नाथ जी विष्णु जी के अवतार हैं और विष्णु जी के ही अवतार भगवान कृष्ण जी हैं. कहावत है कि पुरी में भगवान कृष्ण ने अपने बड़े भाई बलराम जी के साथ में बहन सुभद्रा को रथ में बिठाकर इस यात्रा को निकाला था, तभी से भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा शुरू हुई जो लगातार चली आ रही है. अब यह यात्रा भक्त अपने-अपने शहरों में भी आषाढ़ महीने में निकालते हैं.''
मौसी के घर आराम करने के बाद लौटते हैं श्रीकृष्ण
पंडित आत्माराम शास्त्री कहते हैं, '' मान्यता है कि भगवान श्री कृष्णा अपनी मौसी के घर 7 दिनों तक आराम करते हैं और उसके बाद में अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ में सवार होकर वापस लौटते हैं. रथ यात्रा ओडिशा के पुरी में कृष्ण जी की मौसी के मंदिर, गुंडिचा मंदिर तक जाती है. ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ वापसी की यात्रा शुरू करने से पहले त्यौहार के दौरान 7 दिनों तक आराम करते हैं.
अक्षय तृतीया से शुरू हो जाती है तैयारी
रथ यात्रा तो 9 दिनों तक चलती है लेकिन इसकी तैयारी अक्षय तृतीया के दिन रथों के निर्माण के साथ शुरू हो जाती है. इन रथों के लिए लकड़ियां दशपल्ला के जंगल से लाई जाती हैं और श्री मंदिर के बढ़ई ही इन्हें बनाते हैं. त्यौहार के दौरान, भगवान जगन्नाथ, भगवान बलराम और उनकी बहन सुभद्रा को बिठाकर सड़कों पर बड़े रथ खींचे जाते हैं.''