रांची:झारखंड बीजेपी के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कपिल सिब्बल को खुला पत्र लिखा है. उन्होंने पत्र में लिखा है कि आदरणीय कपिल सिब्बल जी, पिछले कई दिनों से आपके वक्तव्य, विचार और दलील से जुड़े भड़ास कोर्ट से लेकर यूट्यूब चैनल और मीडिया में देख रहा हूं. निश्चित रूप से आपका नाम देश के मशहूर कानून के जानकारों, दलित-पिछड़े समाज के हम जैसे आम आदमी की पहुंच से दूर देश-विदेश के सबसे मंहगे वकीलों की लिस्ट के साथ ही राजनीति के क्षेत्र में भी शुमार है. बड़ा सम्मान करता हूं आपका लेकिन असहमति है तो आपके उस काम से, जिसमें अपने वकालत पेशे में भी आपको मनोनुकूल फैसला नहीं मिलने पर राजनीति और पक्ष-विपक्ष दिखायी देने लगता है.
मोटी रकम लेकर आपके द्वारा लड़े जा रहे मुकदमों में जब फैसला आपके क्लाइंट के पक्ष में आता है तो आपको सब कुछ ठीक-ठाक लगता है और जब आपकी मन की ईच्छा के अनुरूप नहीं होती है तो आपको न्यायिक आदेशों में सिर्फ कमियां ही कमियां दिखायी देने लगती हैं, और राजनीति की गंध भी आने लगती है.
निश्चित रूप से कोर्ट को सबके लिये एक समान नियम बनाना चाहिए, हम सौ फीसदी सहमत हैं आपसे. हां साथ में कोर्ट को यह भी नियम बना देना चाहिये कि अगर कपिल सिब्बल साहब वकील हैं तो इतवार, सोमवार, सुबह शाम दोपहर रात कुछ भी हो स्पेशल कोर्ट लगाना चाहिए, सुनवाई कपिल साहब के समय और सुविधा के हिसाब से तय किया जाना चाहिए और फैसला भी वैसा ही होना चाहिये जैसा सिब्बल साहब चाहें। आप यही कहना चाहते होंगे.
आपके एक यूट्यूब इंटरव्यू के दौरान ऐसा प्रतीत हुआ कि आप आदिवासी हितैषी बनने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं. अगर ऐसा है तो रुबिका पहाड़िन (जिसके पति-दिलदार अंसारी ने उनकी निर्मम हत्या की तथा बॉडी को 18 टुकड़ों में काटकर अलग-अलग जगह फेंक दिया था), उमेश कच्छप (जिसने वरीय भ्रष्टाचारी अफसरों के दबाव में आत्महत्या की) और दरोगा संध्या टोप्पो (जिनको अवैध गौ तस्करों ने ड्यूटी के दौरान तस्करी कर ले जा रहे गौ-वंष के ट्रक से कुचलकर मार डाला) के सभी बिना किसी फीस के लड़ेंगे ? उमेश कच्छप की बेटी सालों से अपने पिता को न्याय दिलाने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा रही है, और मेरी गुजारिश के बाद भी आपने अगर उसकी मदद नहीं की, तो मैं समझूंगा कि आपका ये प्रेम सिर्फ अमीरों तक ही सीमित है और वहीं गरीबों की पहुंच में आपके मुंशी और बाबू भी नहीं आते. अगर आप इनके जैसे बेसहारा सौ दलित-आदिवासियों के साथ भी खड़े हो जायें, बिना पैसा लिये चार्टेड जहाज से आकर मुफ्त में उनके लिए लड़कर न्याय दिला दें तो राज्य में आप बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी के समानांतर पहचान पायेंगे और लोग कालांतर में आपकी मूर्ति लगाकर पूजा करेंगे.
कोर्ट के प्रति आपकी तिलमिलाहट शायद कोर्ट को न पता चला हो पर हमें तो पता है कि आपके क्लाइंट ने मोटी रकम और चार्टर फ्लाइट का प्रबंध कराया था, इसलिये भी आप तमतमाए हुए होंगे ? लगता है कि आपने क्लाइंट से कुछ वादा कर दिया था और फैसला पक्ष में न आने से आप नाराज हो गए हैं. आपका ये हावभाव देखकर ऐसा लग रहा है कि आपका बस चले तो आप घर पर ही कोर्ट लगा लें और आप इसलिए भी उस फैसले से नाराज हो गए हैं क्योंकि जिस क्लाइंट ने भी आपको रखा है उसने एक-एक तारीख के लिये चार्टेड जहाज से लेकर फीस देने में इतनी मोटी भारी भरकम राशि खर्च की है जिसमें एक दलित, निर्धन आदिवासी, गरीब परिवार की दो-तीन पीढ़ी की तकदीर और तस्वीर दोनों बदली जा सकती है. माननीय न्यायालयों को इसका तो ख्याल रखना ही चाहिए. क्या यह बात सही है न कपिल सिब्बल जी ?
अपने इंटरव्यू के दौरान, अपने क्लाइंट की तारीफ करने में आप ऐसे खो गए आप कि ये भी याद न रहा कि भाजपा ने झारखंड राज्य के निर्माण के साथ-साथ राज्य के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री के तौर पर मुझे मौका दिया और उसके बाद श्री शिबू सोरेन और श्री अर्जुन मुंडा भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं. ये जो तथ्यहीन बातें आप हेमंत सोरेन की उपस्थिति में कर रहे थे और उसमें हेमंत सोरेन जी बिना अपने पिता को याद किए, मूकदर्शक बने सुन रहे थे, कोर्ट और जनता के सामने, इस तरह की बातें आप नहीं कर पाएंगे.
एक और तथ्यहीन बात जो आपने कही कि देष के इतिहास में ये ऐसा पहला मामला है जहां एक सिटिंग मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी हुई हो. महोदय आपको याद दिलाना चाहूंगा कि जयललिता और ओमप्रकाश चौटाला भी इन्हीं लिस्ट में शामिल हैं और किसी राज्य के मुख्यमंत्री को जेल तक पहुंचाने वाली आपकी बात पर बताना चाहूंगा कि मुख्यमंत्री तो छोड़ दीजिए, जब लगा कि देश के प्रधानमंत्री भ्रष्टाचारी और तानाशाह हो गई हैं, तब हमारे देष के कानून ने उनको भी कोर्ट में खींचकर ला खड़ा किया था और उनकी सदस्यता निरस्त कराई थी। कपिल जी ये हिमाकत हम बार-बार करते रहेंगे, क्योंकि हमने संविधान को साक्षी मानकर जनता की सेवा का वचन लिया है, भ्रष्टाचारी सत्ता और शासन का नहीं.
सिब्बल साहब, हम जानते हैं कि आप फीस लेकर लीगल सर्विस देते हैं, एक-एक मिनट की कीमत वसूलते हैं. कोई मुफ्त सहायता केंद्र थोड़े न खोल रखा है आपने. पर क्या आप हम झारखंड के लोगों को बता सकते हैं कि जनवरी 2020 से लेकर आपने झारखंड सरकार के गलत कार्यों की जाँच न होने देने के लिये और झारखंड को लूटकर, खा पकाकर खोखला कर देने वालों से बतौर फीस, सलाह और चार्टेड जहाज खर्च के मद में आप और आपकी टीम ने कितने वसूले हैं ? कभी पता किया आपने कि ये पैसे कहाँ से और कैसे कामों से कमाकर रखे गये हैं और इसमें गरीबों के खून-पसीने की गाढ़ी कमाई से मिले सरकारी राजस्व का कितना पैसा है ? एक बार दिल पर हाथ रखकर ये सब भी बता दीजिए फिर आप जो मर्जी सो बोलिये.
यूपीए सरकार में आपकी पार्टी ने मधुकोड़ा के साथ मिलकर पहले तो झारखंड की जल, जंगल, जमीन को खूब लूटा और बंदर-बांट कर खाया-पकाया। उसके बाद भ्रष्टाचार में संलिप्तता के आरोप में कोड़ा जी से किनारा कर लिया. हो आदिवासी समाज से आने वाली मधु कोड़ा के जाति की कम संख्या को देखते हुए आपसबों ने उनका साथ छोड़ दिया और वहीं आप हेमंत सोरेन के साथ इसलिए भी हैं क्योंकि उनके समाज की संख्या ज्यादा है. दो आदिवासी समाज के बीच ये जो आप अंतर कर रहे हैं वो आपकी लालच और फूट डालो और राज करो की नीति को दर्शाता है. आदिवासियों के इतने हितैषी हैं तो मधु कोड़ा के वक्त जब आप यूपीए सरकार में मंत्री थे तब आपने अपने पद से इस्तीफा क्यों नहीं दे दिया ? आपकी सरकार जब मधु कोड़ा को जेल भेज रही थी तब आपकी ये संवेदना कहां सो रही थी सिब्बल साहब ?
कोर्ट में आप कहते हैं कि टाइम लिमिट खत्म हो गया है इसलिये सोरेन परिवार के बेशुमार धन दौलत और सौ से भी ज्यादा जमीन जायदाद खरीदने की लोकपाल जांच नहीं होनी चाहिए. बेशक आपको बतौर फीस मोटी रकम मिल रही हो तो ये सब जांच रुकवाने और अपने क्लाइंट को बचाने का प्रयास कोर्ट में तो करना ही चाहिए. लेकिन कम से कम कोर्ट के बाहर के संचार माध्यमों का इस्तेमाल कर जनमानस के बीच एकतरफा गलत एवं झूठी जानकारी देने से तो आपको परहेज करना चाहिए। हां अगर कोर्ट के बाहर भी बिना सिर-पैर की भ्रामक एवं गलत जानकारी फैलाने का काम करने का ठेका भी आपके क्लाइंट से ली जा रही फीस के पैकेज का पार्ट है तो ये धंधा करते रहिए.