1 फरवरी, 2025 को पेश किया गया भारत का केंद्रीय बजट 2025-26 काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि सरकार आर्थिक विकास को जलवायु कार्रवाई के साथ संतुलित करने के लिए संघर्ष कर रही है. भारत दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, इसलिए उस पर अपनी राजकोषीय नीतियों को अपने पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ सामंजस्य स्थापित करने का दबाव बढ़ रहा है.
भारत का जलवायु परिदृश्य: उत्सर्जन और पर्यावरणीय चुनौतियां
भारत का वार्षिक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन 2015 में 3.2 GtCO₂e (बिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर) से बढ़कर 2024 में अनुमानित 3.98 GtCO₂e हो गया है. कोयला ऊर्जा का प्रमुख स्रोत बना हुआ है, जो देश के बिजली उत्पादन का 70 प्रतिशत से अधिक है. नवीकरणीय ऊर्जा पर बड़े खर्च के बावजूद, कोयले का उत्पादन और आयात बढ़ता जा रहा है, जो बिजली की कमी से निपटने के दौरान स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों पर जाने की कठिनाई को उजागर करता है. साथ ही, जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदाओं ने पर्यावरण संबंधी चिंताओं को बढ़ा दिया है. 2024 में, भारत को भीषण गर्मी, अनियमित मानसून, घातक बाढ़ और सूखे का सामना करना पड़ा, जिसका स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और कृषि पर असर पड़ा.
एक अध्ययन में, 2023 में सिक्किम में आई बाढ़ को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा गया है, क्योंकि ग्लेशियर के पिघलने से साउथ ल्होनक झील का विस्तार 12 गुना हो गया था, जिससे जीएलओएफ (glacial lake outburst flood) की नौबत आई और 55 लोगों की मौत के साथ 1,200 मेगावाट का बांध तबाह हो गया.
नीतिगत ढांचा: जलवायु कार्रवाई का आधार
कई प्रमुख नीतिगत ढांचे भारत के जलवायु संबंधी वादों का मार्गदर्शन करते हैं ताकि स्थायी भविष्य सुनिश्चित किया जा सके. जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) में जलवायु अनुकूलन, ऊर्जा दक्षता और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण पर केंद्रित राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं. पेरिस समझौते के तहत, भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) 2005 के स्तर से उत्सर्जन तीव्रता में 45 प्रतिशत की कमी करने और 2030 तक कुल स्थापित क्षमता में गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए प्रतिबद्ध है.
आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में भारत के सतत प्रयासों और 2070 तक नेट जीरो हासिल करने की चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है. ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर और महत्वपूर्ण खनिजों में बड़े निवेश की जरूरत है, लेकिन वित्तीय बाधाएं बनी हुई हैं. COP29 जलवायु वित्त लक्ष्य 300 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष है, जो 2030 तक अनुमानित 5.1-6.8 ट्रिलियन डॉलर से बहुत कम है. सर्वेक्षण में शहरी स्थिरता, ताप विद्युत, नवीन कोयला प्रौद्योगिकियों और परमाणु ऊर्जा पर जोर दिया गया है, जबकि सौर पैनल निपटान जैसे नवीकरणीय अपशिष्ट प्रबंधन पर चिंताओं पर ध्यान दिया गया है.
बजट 2025-26: जलवायु वित्तपोषण और प्रमुख आवंटन
केंद्रीय बजट 2025-26 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) को 3,412.82 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो वित्त वर्ष 2025 के लिए संशोधित बजट 3,125.96 करोड़ रुपये से 9 प्रतिशत अधिक है. बजट में केंद्र सरकार की पहलों के लिए 1,060.56 करोड़ रुपये, पर्यावरण, वानिकी और वन्यजीवों के लिए 720 करोड़ रुपये और हरित भारत राष्ट्रीय मिशन के लिए 220 करोड़ रुपये शामिल हैं, जो पिछले वित्त वर्ष के 160 करोड़ रुपये से अधिक है. प्राकृतिक संसाधन संरक्षण के लिए वित्तपोषण को बढ़ाकर 50 करोड़ रुपये कर दिया गया है, जबकि प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलीफेंट के लिए 290 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो जैव विविधता संरक्षण को लेकर प्रतिबद्धता को दर्शाता है.
वित्त वर्ष 2016 और वित्त वर्ष 2022 के बीच जलवायु अनुकूलन व्यय जीडीपी के 3.7% से बढ़कर 5.6% हो गया, जो जलवायु लचीलेपन में भारत के बढ़ते निवेश को दर्शाता है. बजट में स्वच्छ प्रौद्योगिकी विनिर्माण, वित्तीय पहुंच में वृद्धि और जलवायु-लचीली कृषि पर जोर दिया गया है. राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन, उच्च उपज वाले बीज मिशन और परमाणु ऊर्जा मिशन जैसे प्रमुख प्रयास घरेलू अक्षय ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास करते हैं.
महत्वपूर्ण बात यह है कि निजी क्षेत्र द्वारा संचालित अनुसंधान, विकास और नवाचार (आरडीआई) गतिविधियों के लिए 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. इससे सतत प्रौद्योगिकियों में खोजों में तेजी आ सकती है. बजट में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में मदद करने के लिए ऋण गारंटी योजना को बढ़ाया गया है. इसमें शहरी विकास और जल सुरक्षा पर भी ध्यान दिया गया है.