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सिंधु जल संधि पर पुनः बातचीत: क्या पाकिस्तान अपनी बात पर अमल करेगा ? - INDUS WATERS TREATY

By Aroonim Bhuyan

Published : 6 hours ago

Indus Water Treaty, सिंधु जल संधि पर फिर से बातचीत करने की अंतिम चेतावनी मिलने के कुछ सप्ताह बाद ही पाकिस्तान ने कहा है कि वह ऐसा करने को तैयार है. सिंधु जल संधि क्या है और इसे लेकर ताजा विवाद क्या है? ईटीवी भारत इस पर एक नजर डालता है. पढ़िए पूरी खबर...

A view of Kishenganga river in North Kashmirs Gurez Valley
उत्तर कश्मीर की गुरेज घाटी में किशनगंगा नदी का एक दृश्य (ETV Bharat))

नई दिल्ली:पाकिस्तान ने भारत द्वारा नोटिस दिए जाने के बाद सिंधु जल संधि (IWT) पर पुनः बातचीत करने की इच्छा व्यक्त की है. हालांकि यह देखना अभी बाकी है कि क्या इस्लामाबाद आने वाले दिनों में वास्तव में अपनी बात पर अमल करेगा. पाकिस्तान ने अपनी इच्छा तब व्यक्त की है जब भारत ने कुछ सप्ताह पहले अंतिम अल्टीमेटम दिया था कि जब तक सिंधु जल संधि की शर्तों पर पुनः बातचीत नहीं हो जाती, तब तक दोनों पक्षों के बीच कोई और वार्ता नहीं होगी. साथ ही कहा था कि1960 में संधि पर हस्ताक्षर होने के बाद भू-राजनीतिक और पर्यावरणीय परिवर्तनों में मूलभूत परिवर्तन हुए हैं.

इसी क्रम में पाकिस्तान विदेश कार्यालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलूच ने गुरुवार को इस्लामाबाद में अपने साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा था कि सिंधु जल संधि एक महत्वपूर्ण संधि है, जिसने पिछले कई दशकों में पाकिस्तान और भारत दोनों की अच्छी सेवा की है. उन्होंने कहा कि हमारा मानना ​​है कि यह जल बंटवारे पर द्विपक्षीय संधियों का स्वर्णिम मानक है, और पाकिस्तान इसके कार्यान्वयन के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि भारत भी संधि के प्रति प्रतिबद्ध रहेगा.

आईडब्ल्यूटी क्या है?

सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच एक जल वितरण संधि है, जिसे विश्व बैंक द्वारा सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों में उपलब्ध जल का उपयोग करने के लिए व्यवस्थित और बातचीत की गई है. इस समझौते पर सितंबर 1960 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में हस्ताक्षर किए थे. संधि तीन पूर्वी नदियों – व्यास, रावी और सतलुज के जल पर नियंत्रण भारत को देती है, जबकि तीन पश्चिमी नदियों – सिंधु, चिनाब और झेलम के जल पर नियंत्रण पाकिस्तान के पास है.

यह संधि पाकिस्तान को आवंटित पश्चिमी नदियों और भारत को आवंटित पूर्वी नदियों के उपयोग के संबंध में दोनों देशों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए एक सहकारी तंत्र स्थापित करती है. इसके अलावा संधि की प्रस्तावना में सद्भावना, मैत्री और सहयोग की भावना से सिंधु नदी प्रणाली से जल के उपयोग में प्रत्येक देश के अधिकारों और दायित्वों को मान्यता दी गई है. इतना ही नहीं यह संधि भारत को पश्चिमी नदी के जल को सीमित सिंचाई उपयोग तथा असीमित गैर-उपभोग्य उपयोग जैसे कि विद्युत उत्पादन, नौवहन, संपत्ति की बिक्री तथा मछली पालन के लिए उपयोग करने की अनुमति देती है. संधि के तहत एक स्थायी सिंधु आयोग की स्थापना की गई. आयोग, जिसमें प्रत्येक देश से एक आयुक्त होता है, सहयोग तंत्र की देखरेख करता है और यह सुनिश्चित करता है कि दोनों देश संधि से उभरने वाले असंख्य मुद्दों पर चर्चा करने के लिए सालाना (बारी-बारी से भारत और पाकिस्तान में) मिलते हैं. इसके अलावा यह संधि छह दशकों से भी अधिक समय से कायम है. साथ ही कई युद्धों और भारत तथा पाकिस्तान के बीच उच्च तनाव के दौरों के बावजूद भी यह कायम है. हालांकि, हाल के वर्षों में जल उपयोग, बांध निर्माण और संधि कार्यान्वयन पर कई विवादों ने इसे एक बार फिर से इसे सुर्खियों में ला दिया है.

संधि पर नवीनतम विवाद क्या है?

पाकिस्तान ने पश्चिमी नदियां झेलम और चिनाब की सहायक नदियों पर स्थित किशनगंगा (330 मेगावाट) और रातले (850 मेगावाट) पनबिजली संयंत्रों की तकनीकी डिजाइन विशेषताओं के बारे में आपत्तियां उठाईं. इस पर दोनों देशों ने अलग-अलग रुख अख्तियार किया. हालांकि, सिंधु जल संधि के कुछ अनुच्छेदों के तहत भारत को इन नदियों पर जलविद्युत ऊर्जा सुविधाओं का निर्माण करने की अनुमति है. इसके बाद पाकिस्तान ने इन दोनों परियोजनाओं से संबंधित चिंताओं के समाधान के लिए मध्यस्थता न्यायालय की स्थापना हेतु विश्व बैंक से संपर्क किया.

भारत ने संधि के मतभेदों और विवादों के निपटारे के लिए सिंधु जल संधि के अनुच्छेद IX के खंड 2.1 के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति का अनुरोध किया. फलस्वरूप अक्टूबर 2022 में, विश्व बैंक ने दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के अनुरोधों को स्वीकार करते हुए मिशेल लिनो को तटस्थ विशेषज्ञ और सीन मर्फी को मध्यस्थता न्यायालय का अध्यक्ष नियुक्त किया. इसके बाद भारत ने कहा कि उसने किशनगंगा और रातले परियोजनाओं से संबंधित चल रहे मामले में एक तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता न्यायालय के अध्यक्ष की एक साथ नियुक्ति करने की विश्व बैंक की घोषणा पर गौर किया है. वहीं नई दिल्ली ने कहा कि विश्व बैंक की घोषणा में इस बात को स्वीकार करते हुए कि 'दो प्रक्रियाओं को एक साथ चलाना व्यावहारिक और कानूनी चुनौतियां पेश करता है'.

भारत इस मामले का आकलन करेगा. वहीं भारत का मानना ​​है कि सिंधु जल संधि का कार्यान्वयन संधि की भावना के अनुरूप होना चाहिए. फिर, जनवरी 2023 में, भारत ने पाकिस्तान को अपना पहला नोटिस भेजा, जिसमें 1960 में संधि पर हस्ताक्षर होने के बाद से भू-राजनीतिक और पर्यावरणीय परिदृश्य में हुए मूलभूत परिवर्तनों को संबोधित करने की नई दिल्ली की मंशा को दर्शाया गया. इसमें 1960 में संधि की शुरुआत के बाद से जनसंख्या वृद्धि, कृषि आवश्यकताओं और विकसित जल उपयोग की स्थिति में बदलाव का हवाला दिया गया था. हालांकि, पिछले साल जुलाई में, अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय (ICA) ने कहा कि सीन मर्फी की अध्यक्षता वाले मध्यस्थता न्यायालय में आईडब्ल्यूटी से संबंधित मामलों को संबोधित करने की सक्षमता है.

नई दिल्ली ने कहा कि वह इस्लामाबाद के अनुरोध पर गठित मध्यस्थता न्यायालय द्वारा दिए गए किसी भी फैसले को स्वीकार नहीं करेगा. इतना ही नहीं भारत ने कहा कि तथाकथित मध्यस्थता न्यायालय सिंधु जल संधि के प्रावधानों का उल्लंघन है. वहीं विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा एक तटस्थ विशेषज्ञ पहले से ही किशनगंगा और रातले परियोजनाओं से संबंधित मतभेदों पर विचार कर रहा है. इस समय तटस्थ विशेषज्ञ कार्यवाही ही संधि के अनुरूप कार्यवाही है. संधि में समान मुद्दों पर समानांतर कार्यवाही का प्रावधान नहीं है.

नवीनतम घटनाक्रम क्या है?

रिपोर्टों के मुताबिक जनवरी 2023 में पहले नोटिस के बाद से कई अनुस्मारक भेजे जाने के बाद भी पाकिस्तान अपने जवाबों में अड़ियल रहा है. आखिरकार, इस साल 30 अगस्त को भारत ने पाकिस्तान को अल्टीमेटम के साथ नोटिस भेजा. अल्टीमेटम दिए जाने के कुछ ही सप्ताह बाद पाकिस्तान ने संधि पर फिर से बातचीत करने की इच्छा जताई. तो क्या पाकिस्तान संधि पर फिर से बातचीत के लिए आगे आएगा? इस पर नज़र रखें.

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