नई दिल्ली: विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने साप्ताहिक प्रेस ब्रीफिंग को संबोधित करते हुए कनाडा पर ऑस्ट्रेलियाई मीडिया समूह ऑस्ट्रेलिया टुडे को ब्लॉक करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, 'हमें पता चला है कि इस विशेष मीडिया समूह के सोशल मीडिया हैंडल और पेज को ब्लॉक कर दिया गया है और अब प्रवासी मुद्दों को उठाने वाला यह महत्वपूर्ण मीडिया समूह कनाडा में दर्शकों के लिए उपलब्ध नहीं है. यह घटना इस समूह द्वारा ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग के साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर की प्रेस कॉन्फ्रेंस के कुछ ही घंटों बाद हुई.'
जायसवाल ने इसे 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति कनाडा का पाखंड' करार दिया. कनाडा में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, जो दर्शाता है कि अपने झूठ के उजागर होने से हताश होकर ओटावा ने यह कदम उठाया.
ऑस्ट्रेलिया टुडे ने भी कनाडा की कार्रवाई पर कड़ी प्रतिक्रिया दी. इसने एक्स पर एक बयान जारी किया, जिसमें उल्लेख किया गया, "कनाडा सरकार के आदेश पर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ हमारे साक्षात्कार और ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग के साथ सोशल मीडिया पर प्रेस कॉन्फ्रेंस पर हाल ही में लगाया गया प्रतिबंध और रोक हमारी टीम और उन लोगों के लिए कठिन रही है जो स्वतंत्र और खुली पत्रकारिता को महत्व देते हैं.'
बयान में आगे कहा गया कि यह 'पारदर्शिता, सत्यता और महत्वपूर्ण खबरों को सामने लाने के अधिकार के लिए प्रयास करना जारी रखेगा. 'फाइव-आईज' ग्रुप के सह-सदस्य देश में स्थित एक मीडिया समूह का यह आरोप जस्टिन ट्रूडो और उनकी सरकार के लिए एक तमाचा था.
ऑस्ट्रेलिया टुडे की रिपोर्ट में पेनी वोंग ने भारत द्वारा खालिस्तानी चरमपंथियों को निशाना बनाने के कनाडाई आरोपों और जयशंकर की प्रतिक्रिया को उठाया था. कनाडा को सबसे ज्यादा नाराजगी इस प्रतिक्रिया से हुई. जयशंकर ने अपने जवाब में तीन पहलुओं को शामिल किया, बिना सबूत के आरोप, भारतीय राजनयिकों की निगरानी और कनाडा में भारत विरोधी तत्वों को राजनीतिक शरण देना.
भारत ने इस मुद्दे को बार-बार उठाया है, लेकिन ट्रूडो के लिए नुकसानदेह बात यह थी कि इसे ऑस्ट्रेलिया में उठाया गया और पेनी वोंग ने भारत के पक्ष को स्वीकार कर लिया.
ट्रूडो सरकार की कार्रवाई स्पष्ट रूप से अपराध बोध का संकेत है, साथ ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति पाखंड, जैसा कि भारतीय प्रवक्ता ने दावा किया है. सहयोगी देश के मीडिया नेटवर्क को ब्लॉक करना, जिस पर कनाडा के खिलाफ आरोपों को दोहराया गया, यह दर्शाता है कि जस्टिन ट्रूडो जानते हैं कि जो मुद्दा उठाया गया वह सच है और अब तक वे झूठे थे, जो अपनी कुर्सी बचाने के लिए बेताब हैं. अगर कनाडा सही है, तो उस नेटवर्क को ब्लॉक करने की कोई जरूरत नहीं थी, जो केवल एक बातचीत की रिपोर्ट कर रहा था. विदेश मंत्रालय का एक साधारण बयान ही काफी हो सकता था.
जिस बात से ट्रूडो डरे हुए हैं, वह यह है कि उनके अपने लोग ही अब उन पर विश्वास नहीं कर रहे हैं. उन्हें यह समझ में आने लगा है कि भारत के खिलाफ पूरा खेल बिना किसी सबूत के आधे-अधूरे सच पर आधारित था, नहीं तो अब तक आरोप-पत्र दाखिल हो चुके होते, लेकिन अपनी कुर्सी को सुरक्षित रखने के लिए जगमीत सिंह के विश्वासों का समर्थन करना ही उनका एकमात्र उद्देश्य है.
इसके अलावा, कनाडा जैसा देश, जो कानून के शासन की वकालत करता है, खुद भारतीय राजनयिकों का पीछा करके, उनकी निगरानी करके और उन्हें डराकर वियना कन्वेंशन का उल्लंघन कर रहा है. अगर भारत भी ऐसा ही करता तो वे दुनिया के सामने चिल्ला उठते.
ऑस्ट्रेलिया टुडे को ब्लॉक करने का सहारा क्यों लिया, इसपर कनाडा की चुप्पी ने यह भी उजागर किया कि भारत ने वियना कन्वेंशन का पालन किया, लेकिन वे उन्हें तोड़ रहे थे. अब सच्चाई ट्रूडो को परेशान करने लगी है. कुछ ही दिनों की बात है जब कनाडा के विपक्ष ने कनाडाई संसद में इस मुद्दे को उठाया, जिससे ट्रूडो को बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ी.
कनाडा ने तब शोर मचाया, जब भारत ने वियना कन्वेंशन का हवाला देते हुए सभी अतिरिक्त कनाडाई राजनयिकों को देश से बाहर निकाल दिया. शुरू में ओटावा ने हिचकिचाहट दिखाई, लेकिन नई दिल्ली ने कहा कि वह उनकी राजनयिक छूट को हटा देगा, इसलिए कोई विकल्प नहीं था. कनाडा ने विरोध करने की कोशिश की, लेकिन नई दिल्ली ने सुनने से इनकार कर दिया और कोई भी ऐसा देश नहीं था जो भारत को उपदेश दे सके. कनाडा को मजबूरन झुकना पड़ा.
इस बार, कनाडा के झूठ और अवैधानिक कार्य खुलेआम सामने आ गए हैं और वह उन्हें दबाने के लिए कुछ नहीं कर सकता. उसे पता है कि वह गलत है और वैश्विक आलोचना का शिकार हो सकता है. एकमात्र अन्य देश जहां भारतीय राजनयिकों को इसी तरह के दबाव का सामना करना पड़ता है, वह है पाकिस्तान. अब समय आ गया है कि भारत पाकिस्तान और कनाडा दोनों के साथ एक जैसा व्यवहार करे, क्योंकि दोनों ही देश आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करते हैं.
किसी भी कनाडाई राजनयिक की ओर से कोई टिप्पणी नहीं की गई है. न ही उसके विदेश कार्यालय, विदेश मंत्री या नई दिल्ली में उसके उच्चायोग की ओर से कोई ट्वीट किया गया है. जाहिर है, उसके अवैध कार्यों की निंदा की गई है और वह कुछ नहीं कर सकता. ऐसी चुप्पी बहरा करने वाली है और केवल इस तथ्य को और पुख्ता करती है कि जयशंकर ने जो कहा वह सही है. टोरंटो पुलिस ने भारतीय वाणिज्य दूतावास को भारत के प्रवासियों के लिए अपने आउटरीच को रद्द करने के लिए मजबूर किया, यह दावा करते हुए कि वह सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकता. इसका मतलब यह है कि राष्ट्रीय राजनीति में खालिस्तान समर्थक समूहों के सदस्यों का वर्चस्व है और कनाडाई पुलिस या तो उनसे डरती है या उन्हें नियंत्रित करने के लिए संसाधनों की कमी है.
एक ऐसे देश के लिए यह दुखद स्थिति है जो खुद को विकसित और कानून के शासन का पालन करने वाला कहता है. भारत ने हत्या के पीछे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का नाम लेने सहित फर्जी आरोपों के लिए कनाडा के खिलाफ पूरी ताकत झोंक दी है. ऐसा लग रहा था कि कनाडा कुछ समर्थन हासिल कर रहा था, लेकिन उसके हालिया कदमों ने उलटा असर डाला है और इससे कनाडा की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचेगा. वह भारत पर वही आरोप नहीं लगा सकता और न ही अपने कार्यों का बचाव कर सकता है, क्योंकि अब उस पर विश्वास नहीं किया जाएगा.
ट्रूडो सरकार के खिलाफ यह भारत का दबाव और आरोप ऐसे समय में आए हैं जब डोनाल्ड ट्रंप के फिर से अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने के साथ ही कनाडा के भीतर अनिश्चितता बढ़ रही है. कनाडा सरकार के हर वरिष्ठ प्रतिनिधि, जिसमें उप-विदेश मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड और जगमीत सिंह शामिल हैं, यह कहते रहे हैं कि ट्रंप का सत्ता में आना कनाडा की अर्थव्यवस्था के लिए काले दिनों का संकेत है. वे अमेरिका से अपेक्षित प्रतिक्रिया को संभालने के लिए कनाडाई लोगों के बीच एकता चाहते हैं. ट्रूडो और ट्रंप के बीच खटास पुरानी है.
भारत को अपनी ओर से हर मंच पर कनाडा के झूठ को उजागर करना और उसका प्रचार करना जारी रखना चाहिए. बिना किसी सबूत के कनाडा को भारत पर आरोप लगाने नहीं दिया जा सकता. इस बार कनाडा ने ऑस्ट्रेलियाई मीडिया नेटवर्क को ब्लॉक करके खुद को ही नुकसान पहुंचाया है. भारत को उसे इससे उबरने नहीं देना चाहिए.
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