नई दिल्ली: बीते 17 अगस्त को भारत ने 'एन एम्पावर्ड ग्लोबल साउथ फॉर ए सस्टैनेबल फ्यूचर' (सतत भविष्य के लिए सशक्त वैश्विक दक्षिण) की व्यापक थीम के अंतर्गत वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन (VOGSS) की मेजबानी की. भारत द्वारा आयोजित VOGSS की यह तीसरा सम्मेलन था.
पहला और दूसरा शिखर सम्मेलन क्रमश: 12 और 13 जनवरी 2023 और 17 नवंबर, 2023 को आयोजित किया गया था. इसके सभी शिखर सम्मेलन वर्चुअल फॉर्मेट में आयोजित किए गए थे और ग्लोबल साउथ के 100 से अधिक देशों ने इन शिखर सम्मेलन के विचार-विमर्श में भाग लिया.
ग्लोबल साउथ क्या है और भारत के भू-राजनीतिक गणित में यह कैसे महत्वपूर्ण है?
ग्लोबल साउथ शब्द 'थर्ड वर्ल्ड देशों' से विकसित हुआ है, जो औपनिवेशिक और शीत युद्ध के बाद के दौर में गरीब, कम आय वाले, कम विकसित और विकासशील देशों का सामूहिक रूप से वर्णन करने और उन्हें विश्व के दूसरे देशों (अनिवार्य रूप से साम्यवादी देश) और पहले विश्व के देशों (अनिवार्य रूप से औद्योगिक और तकनीकी रूप से विकसित और पूंजी अर्थव्यवस्था वाले उन्नत समृद्ध देश) से अलग करने के लिए प्रचलित था.
साम्यवादी USSR और उसके सेटेलाइट कम्युनिस्ट देशों के पतन के बाद से समकालीन दुनिया, विकास के स्तर के आधार पर, अब ग्लोबल नॉर्थ (उन्नत, समृद्ध और विकसित देश) और ग्लोबल साउथ (पिछड़े, गरीब या विकासशील देश) में विभाजित है. यह विभाजन भूगोल पर आधारित नहीं है, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड आदि देश अपने भौगोलिक स्थान के बावजूद ग्लोबल नॉर्थ से जुड़े हैं.
अतीत के थर्ड वर्ल्ड और वर्तमान समय के ग्लोबल साउथ के बीच एक क्वालिटीव डिफरेंस है. ग्लोबल साउथ में अब कुछ तेजी से विकासशील और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं भी शामिल हैं, जैसे भारत, चीन, ब्राजील, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका आदि. भारत जिसने 2047 तक विकसित देश बनने का लक्ष्य रखा है, उसे ग्लोबल साउथ से ग्लोबल नॉर्थ में अपने ट्रांजिशन के शुरुआती चरण में कहा जा सकता है.
अतीत में भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेतृत्व के माध्यम से थर्ड वर्ल्ड के राजनीतिक और सुरक्षा हितों को बढ़ावा दिया है. इसने संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं के ढांचे के भीतर जी 77 में अपनी पहल के माध्यम से विकासशील दुनिया के व्यापार और आर्थिक हितों को भी बढ़ावा दिया है. वैश्विक दक्षिण का नेतृत्व अब अधिक प्रतिस्पर्धी है, भारत के लिए मुख्य प्रतिस्पर्धा चीन से आ रही है.
भारत के भू-राजनीतिक गणित में यह नेतृत्व करने का समय है. सबसे बड़े कार्यशील लोकतंत्र के रूप में भारत की प्रतिष्ठा, तेजी से बढ़ती और उभरती अर्थव्यवस्था, अत्यधिक कुशल कार्यबल, एक विकास भागीदार के रूप में उत्कृष्ट ट्रैक रिकॉर्ड है, जिसमें विकास सहायता गैर-निर्देशात्मक और सौम्य है. इसके अलावा कई अन्य फैक्टर भी भारत को वंचित वैश्विक दक्षिण की आवाज बनने के मामले में दूसरों पर बढ़त दिलाते हैं. यह पहल ग्लोबल एजेंडे को आकार देने में सकारात्मक योगदान देने में सक्षम एक महत्वपूर्ण वैश्विक खिलाड़ी के रूप में उभरने की भारत की व्यापक महत्वाकांक्षाओं में भी फिट बैठती है.