नई दिल्ली: बाढ़ को कम करने के लिए केंद्र सरकार के प्रयासों के बावजूद असम और बिहार सहित कई राज्यों को गंभीर बाढ़ की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इसका मुख्य कारण प्राकृतिक जलमार्गों पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण और अनियमित निर्माण बताया जा रहा है. जल शक्ति मंत्रालय ने इस पर चिंता जाहिर की है. कहा है कि अपर्याप्त शहरी जल निकासी प्रणालियां और प्राकृतिक जलमार्गों पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण ने स्थिति को और खराब कर दिया है.
जल शक्ति मंत्रालय ने संसदीय समिति को बताया, "सरकार द्वारा बाढ़ को कम करने के लिए अपनाए गए कई प्रयासों और पहलों के बावजूद, कई राज्यों को गंभीर बाढ़ की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. ये अप्रत्याशित मौसम पैटर्न हैं, जो समय और स्थान दोनों में वर्षा में व्यापक बदलाव, भूस्खलन, बर्फ पिघलने, बादल फटने और ग्लेशियल झीलों के फटने आदि के साथ अत्यधिक वर्षा की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के साथ जुड़े हैं."
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, असम में वन भूमि पर सबसे अधिक अतिक्रमण किया गया है. जहां 2.13 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर अवैध कब्जा है. डॉ. केके पांडे ने कहा, कि असम में आर्द्रभूमि के अतिक्रमण पर कोई डेटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन रिपोर्टों से पता चलता है कि असम में कई आर्द्रभूमि अतिक्रमण के साथ-साथ जल निकायों में मिट्टी, कीचड़, चिकनी मिट्टी आदि के जमा होने के कारण नष्ट हो गई हैं.
"बड़े पैमाने पर शहरी विकास परियोजनाओं के साथ-साथ वन भूमि और आर्द्रभूमि पर अतिक्रमण से बाढ़ की समस्याएं पैदा होती हैं. अपर्याप्त शहरी जल निकासी व्यवस्था और प्राकृतिक जलमार्गों पर अतिक्रमण से स्थिति और भी खराब हो जाती है."- डॉ. केके पांडे, पर्यावरण विशेषज्ञ
उदयपुर में अखिल भारतीय राज्य जल मंत्री सम्मेलन 2025. (File Photo) (/x.com/CWCOfficial_GoI/) वन भूमि पर अतिक्रमणःसंसद में सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, वन भूमि पर अतिक्रमण के मामले में महाराष्ट्र दूसरे नंबर (57,554.87) हेक्टेयर पर है. अरुणाचल प्रदेश 53,499.96 हेक्टेयर के साथ तीसरे स्थान पर है. अन्य राज्यों में भी वन भूमि पर अतिक्रमण दर्ज किया गया है, जिनमें ओडिशा (40,507.56 हेक्टेयर), आंध्र प्रदेश (13,318.16 हेक्टेयर), तमिलनाडु (15,768.48 हेक्टेयर), त्रिपुरा (4,242.37 हेक्टेयर) और सिक्किम (469.16 हेक्टेयर) शामिल हैं.
बाढ़ एक नियमित वार्षिक घटनाः मंत्रालय ने जल संसाधन संबंधी संसदीय समिति को बताया, "बाढ़ नियंत्रण उपायों ने निस्संदेह बाढ़ की गंभीरता को कम करने में भूमिका निभाई है, इन उपायों की प्रभावशीलता अक्सर उपरोक्त चुनौतियों के कारण कम हो जाती है." परियोजना प्राधिकरणों द्वारा नियोजन में विखंडित दृष्टिकोण तथा अंतर-राज्यीय सहयोग में कमी के कारण व्यापक बाढ़ प्रबंधन रणनीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न होती है. मंत्रालय ने स्वीकार किया कि असम, बिहार और भारत के अन्य भागों में बाढ़ एक नियमित वार्षिक घटना है.
पंचवर्षीय योजनाः बाढ़ प्रबंधन परियोजनाओं की योजना, निर्माण और क्रियान्वयन राज्य द्वारा किया जाता है. केंद्र सरकार केंद्रीय वित्त पोषण के लिए शामिल राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की परियोजनाओं को वित्त पोषित करती है. फरवरी, 2024 में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वित्त वर्ष 2021-26 की अवधि के लिए बाढ़ प्रबंधन और सीमा क्षेत्र कार्यक्रम (FMBAP) को जारी रखने को मंजूरी दी. FMBAP योजना के तहत वित्त पोषण के लिए बिहार और असम की एक-एक परियोजना को शामिल किया गया है. भविष्य में और अधिक परियोजनाओं को शामिल करने के लिए बजट रखा गया है.
असम को केंद्र से सहायताः मंत्रालय ने कहा ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के बाद से, FMBAP योजना के FMP घटक के तहत वित्त पोषण के लिए असम की 142 परियोजनाओं को शामिल किया गया है. जिनमें से 111 परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं. 30 परियोजनाएँ बंद कर दी गई हैं. इन परियोजनाओं ने असम में 7.365 लाख हेक्टेयर भूमि और 1.75 करोड़ की आबादी को सुरक्षा प्रदान की है. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के बाद से एफएमपी और एफएमबीएपी योजना के अंतर्गत असम सरकार को 1557.04 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता जारी की गई है.
बिहार को केंद्रीय सहायताः ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के बाद से, एफएमबीएपी योजना के एफएमपी घटक के तहत वित्त पोषण के लिए बिहार की 48 परियोजनाओं को शामिल किया गया है. जिनमें से 42 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं. इन परियोजनाओं ने बिहार में 28.67 लाख हेक्टेयर भूमि और 2.23 करोड़ की आबादी को सुरक्षा प्रदान की है. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के बाद से, एफएमपी और एफएमबीएपी योजना के तहत बिहार सरकार को 1624.04 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता जारी की गई है.
नेपाल के साथ बातचीतः मंत्रालय ने कहा कि बिहार में गंगा बेसिन में बाढ़ का कारण बनने वाली प्रमुख नदियां सीमा पार की हैं. इन नदियों का ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र नेपाल में है. इस संबंध में भारत सरकार ने पड़ोसी देशों के साथ सहयोग तंत्र स्थापित किया है. मंत्रालय ने बताया कि भारत सरकार नेपाल से आने वाली नदियों में आने वाली बाढ़ से होने वाली तबाही को कम करने के लिए विभिन्न स्तरों पर नेपाल सरकार के साथ लगातार बातचीत कर रही है.
उदयपुर में अखिल भारतीय राज्य जल मंत्री सम्मेलन 2025. (File Photo) (/x.com/CWCOfficial_GoI/) मंत्रालय ने कहा,"संबंधित मुद्दों पर मौजूदा भारत-नेपाल द्विपक्षीय चार स्तरीय तंत्रों में चर्चा की जाती है, जिसमें जल संसाधन पर संयुक्त मंत्रिस्तरीय समिति (जेएमसीडब्ल्यूआर), जल संसाधन पर संयुक्त समिति (जेसीडब्ल्यूआर) और संयुक्त स्थायी तकनीकी समिति (जेएसटीसी) के साथ-साथ जलप्लावन और बाढ़ प्रबंधन पर संयुक्त समिति (जेसीआईएफएम) शामिल हैं."
नेपाल से आने वाली नदियां तबाही मचातीः केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ने आईएमडी के साथ मिलकर राज्य विभागों को बाढ़ का पूर्वानुमान जारी किया है. हालांकि, बाढ़ के पूर्वानुमान की प्रभावशीलता में सुधार के लिए ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र (नेपाल) से वास्तविक समय के मौसम संबंधी आंकड़ों की निर्बाध आपूर्ति की अभी भी आवश्यकता है. सारदा, घाघरा, राप्ती, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला, कोसी आदि कई नदियां नेपाल से निकलती हैं. भारत के मैदानी इलाकों में प्रवेश करने से पहले नेपाल के पहाड़ी इलाकों से होकर बहती हैं.
मंत्रालय ने कहा, "ऊपरी इलाकों में भारी बारिश से न केवल भारी बाढ़ आती है, बल्कि भारत के मैदानी इलाकों में भारी मात्रा में तलछट भी आती है. भारत इन सीमा पार नदियों पर विभिन्न द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से इन नदियों से पेयजल, बिजली, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण जैसे पारस्परिक लाभ प्राप्त करने के लिए नेपाल के साथ लगातार सहयोग कर रहा है."
बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में बाढ़ आमतौर पर नेपाल से आने वाली नदियों के कारण आती है. इसलिए बाढ़ की समस्या का दीर्घकालिक समाधान बहुउद्देशीय परियोजनाओं के निर्माण में निहित है. मंत्रालय ने कहा, "वर्तमान में, नेपाल सरकार के साथ द्विपक्षीय समझौते के अनुसार गठित दो समितियों केएचएलसी (बिहार में कोसी) और जीएचएलएससी (उत्तर प्रदेश में गंडक) की सिफारिशों के अनुसार बिहार और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नेपाल क्षेत्र में बाढ़ प्रबंधन कार्य किए जा रहे हैं."
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