नई दिल्ली: हाल ही में कनाडाई अधिकारियों के एक समूह द्वारा दिए गए बयान, जो एक दूसरे से मेल खाते हैं, सभी का उद्देश्य भारत को कनाडा में खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की कथित हत्या से जोड़ना है. कनाडा सरकार के बयान विस्तृत जांच पर आधारित नहीं लगते हैं, बल्कि यह विफलता को छिपाने का प्रयास है. कनाडा सरकार के झूठे औचित्य तब खुलकर सामने आ गए जब उसके अपने नागरिकों ने उन बयानों पर सवाल उठाए, जिनमें से कई विरोधाभासी थे और इसके पीछे का इरादा 'ट्रूडो बचाओ' अभियान का हिस्सा प्रतीत होता था. कनाडा के लोगों ने सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणियों में भारत की तुलना में अपनी ही सरकार की ज्यादा आलोचना की.
भारत-कनाडा संबंधों में गिरावट की शुरुआत निज्जर की हत्या से नहीं बल्कि फरवरी 2018 में ट्रूडो परिवार की सात दिवसीय भारत यात्रा से हुई थी. प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रूडो से छठे दिन औपचारिकता के तौर पर मुलाकात की. यात्रा का अंत परिवार के साथ फोटो खिंचवाने के अलावा किसी सार्थक परिणाम के साथ नहीं हुआ. इससे ट्रूडो के अहंकार को ठेस पहुंची. साथ ही उन्हें बिना किसी सार्थक परिणाम के गैरजरूरी खर्च के लिए अपने देश में आलोचना का सामना करना पड़ा. यहां तक कि सिख समुदाय को लुभाने के उनके प्रयास भी विफल रहे.
ट्रूडो के लिए इससे भी बदतर अनुभव पिछले सितंबर में जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए भारत की उनकी यात्रा थी. वह संभवतः एकमात्र वैश्विक नेता थे, जिनके साथ पीएम मोदी ने कोई आधिकारिक द्विपक्षीय वार्ता नहीं की. खालिस्तान आंदोलन का समर्थन करने के लिए भी उन्हें मुंह की खानी पड़ी. इस बात को जानते हुए कि वह शिखर सम्मेलन में मौजूद एक अन्य व्यक्ति मात्र थे, ट्रूडो ने भारतीय राष्ट्रपति द्वारा आयोजित औपचारिक रात्रिभोज को छोड़ दिया, इसके बजाय वह अपने साथ आए बेटे को एक रेस्तरां में ले गए.
जख्म पर नमक छिड़कने के लिए कनाडाई प्रधानमंत्री के विमान में मैकेनिकल खराबी आ गई, जिसके कारण उन्हें दिल्ली में एक और दिन बिताना पड़ा, जिससे वह दुनिया भर में हंसी के पात्र बन गए. दिल्ली से लौटने पर, जब उनकी असफल यात्रा और जी-20 में शून्य योगदान के बारे में पूछा गया, साथ ही उनके विमान के ठप हो जाने का भी मजाक उड़ाया गया, तो ट्रूडो ने पहली बार निज्जर की हत्या में भारत की संलिप्तता का उल्लेख किया. उनके इस आरोप ने कनाडा के लोगों का ध्यान उनकी शर्मनाक यात्रा से हटा दिया.
ताजा आरोप भी ऐसे समय में लगाए गए हैं, जब उन्हें इसी तरह की शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है. ट्रूडो ने दावा किया कि 11 अक्टूबर को लाओस की राजधानी वियनतियाने में आसियान शिखर सम्मेलन में उनके और प्रधानमंत्री मोदी के बीच 'संक्षिप्त बातचीत' हुई थी. उन्होंने कहा, "मैंने इस बात पर जोर दिया कि हमें कुछ काम करने की जरूरत है. कनाडा के लोगों की सुरक्षा और कानून के शासन को बनाए रखना किसी भी कनाडाई सरकार की प्रमुख जिम्मेदारियों में से एक है और मैं इसी पर ध्यान केंद्रित करूंगा."
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने जस्टिन ट्रूडो की टिप्पणियों की धज्जियां उड़ा दीं, जब उन्होंने कहा, "वियनतियाने में प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री ट्रूडो के बीच कोई ठोस चर्चा नहीं हुई. भारत को उम्मीद है कि कनाडा की धरती पर भारत विरोधी खालिस्तानी गतिविधियों को होने नहीं दिया जाएगा और कनाडा की धरती से भारत के खिलाफ हिंसा, उग्रवाद और आतंकवाद की वकालत करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी."
हाल ही में की गई घोषणाओं में भी मतभेद है. कनाडा ने दावा किया कि उसने भारतीय राजनयिकों को निष्कासित कर दिया है, जबकि भारत का कहना है कि कनाडा के इन आरोपों के बाद कि भारतीय राजनयिक जांच के दायरे में हैं, उसने उन्हें वापस बुला लिया. कनाडा का दावा है कि उसने भारत की संलिप्तता के सबूत पेश किए हैं, जबकि भारत ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि कोई सबूत साझा नहीं किया गया है.
कनाडा की विदेश मंत्री मेलानी जोली ने दावा किया कि भारत 'कनाडाई नागरिकों के खिलाफ लक्षित अभियान' में शामिल है. जांच का नेतृत्व कर रहे रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) के प्रमुख ने कहा कि भारत 'बिश्नोई गैंग से जुड़े खालिस्तान कार्यकर्ताओं' को निशाना बना रहा है. दिलचस्प बात यह है कि 2022 में भारत ने कनाडा से बिश्नोई गैंग के सदस्यों को प्रत्यर्पित करने के लिए अनुरोध किया था. कनाडा ने तब इनकार कर दिया था. आज, यह वही गैंग है जिसे कनाडा भारतीय राजनयिकों से जोड़ता है. यह कैसी विडंबना है.
कुल मिलाकर इरादा कनाडा के घरेलू मामलों में भारतीय हस्तक्षेप को उजागर करना प्रतीत होता है.
भारत सरकार ने अपने बयान में इसी पहलू को मुद्दा बनाया है, जिसका उल्लेख विदेश मंत्रालय के बयान में किया गया, 'कनाडा की राजनीति में विदेशी हस्तक्षेप को नजरअंदाज करने के लिए आलोचनाओं का सामना कर रही उनकी (ट्रूडो) सरकार ने नुकसान को कम करने के प्रयास में जानबूझकर भारत को शामिल किया है.' बयान में कहा गया है कि ट्रूडो ने यह टिप्पणी विदेशी हस्तक्षेप मामले में आयोग के समक्ष अपनी गवाही से ठीक पहले की.