महाकुंभ मेले को हिंदू धर्म में सबसे खास और पवित्र आयोजनों में से एक माना जाता है. महाकुंभ मेले का समय ग्रहों की विशेष स्थिति को देखकर फिक्स किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दौरान पवित्र नदियों का जल अमृत बन जाता है. इसलिए महाकुंभ के दौरान श्रद्धालुओं को गंगा, यमुना आदि नदियों में स्नान करने से पुण्य मिलता है. हालांकि, महाकुंभ में स्नान करते समय कुछ नियम हैं जिनका आपको पालन करना होगा. आज हम आपको इन नियमों के बारे में बताने जा रहे हैं, अगर आप भी महाकुंभ में स्नान करने जा रहे हैं तो इन बातों का ध्यान जरूर रखें...
क्या शाही स्नान करने से पुण्य मिलता है? धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शाही स्नान के प्रभाव से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु त्रिवेणी घाट पर तीसरे शाही स्नान में जल्द ही भाग लेंगे. इस दौरान भक्तों को नीचे दिए गए नियमों का भी पालन करना जरूर चाहिए, मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होगी...
नियम 1 महाकुंभ के दौरान सबसे पहले नागा साधु स्नान करते हैं. नागा साधुओं के स्नान करने के बाद ही अन्य लोग स्नान कर सकते हैं. इसलिए महाकुंभ के दिन भूलकर भी नागा साधुओं के सामने स्नान नहीं करना चाहिए. ऐसा करना धार्मिक दृष्टि से अच्छा नहीं माना जाता है. यह नियमों का उल्लंघन है और कुंभ स्नान का शुभ फल नहीं मिलता है.
नियम 2 अगर आप महाकुंभ में स्नान करने जा रहे हैं तो यह भी याद रखें कि श्रद्धालुओं को 5 बार स्नान करना चाहिए. धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब कोई गृहस्थ महाकुंभ में 5 बार स्नान करता है, तो उसका कुंभस्नान पूरा माना जाता है.
नियम 3 महाकुंभ में स्नान के बाद सूर्य देव को दोनों हाथों से जल चढ़ाना चाहिए. कुंभ मेले का आयोजन सूर्य देव की विशेष स्थिति को ध्यान में रखते हुए किया जाता है, इसलिए महाकुंभ में स्नान के साथ सूर्य देव को अर्घ्य देने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. कुंभ स्नान के दौरान सूर्य को अर्घ्य देने से कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है.
नियम 4
कुंभ में स्नान के बाद प्रयागराज में अदवे हनुमानजी या नागवासुकि मंदिर के दर्शन भी करने चाहिए. मान्यता के अनुसार इन मंदिरों के दर्शन के बाद ही भक्तों की धार्मिक यात्रा पूरी होती है. इन नियमों का पालन करके महाकुंभ में स्नान करने से कई लाभ मिलते हैं. आपके जीवन में सुख-समृद्धि आती है और आपका आध्यात्मिक विकास भी होता है.
महाकुंभ के शाही स्नान में सबसे पहले नागा साधु करते हैं स्नान प्रयागराज में महाकुंभ के पहले और दूसरे दिन सबसे पहले नागा साधुओं ने त्रिवेणी संगम में शाही स्नान किया. इस धार्मिक उत्सव में 6 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु शामिल हुए. तीसरे शाही स्नान के लिए करीब 10 करोड़ श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचने की संभावना है. बता दें, शाही स्नान सबसे पहले नागा साधु करते हैं. उसके बाद बाकियों को स्नान करने की इजाजत मिलती है. तो आखिर क्यों सबसे पहले नागा साधु ही करते हैं शाही स्नान? आइए जानते हैं...
महाकुंभ में सबसे पहले स्नान कौन करेगा, इस पर हमेशा विवाद होता आया है. नागा साधुओं और बैरागी साधुओं के बीच जमकर मारपीट भी रही है. साल 1760 में इस मुद्दे पर हुई मारपीट में सैकड़ों बैरागी साधुओं की जान चली गई थी. फिर 1788 में भी ऐसी ही स्थिति देखने को मिली थी. महंत बाबा रामदास द्वारा इसकी शिकायत किए जाने के बाद नागा और बैरागी साधुओं के लिए अलग-अलग घाटों की व्यवस्था की गई थी. इसके बाद हरिद्वार और प्रयाग में पहले स्नान को लेकर विवाद हुआ. हालांकि, अंग्रेजों के शासनकाल में नागा साधुओं को पहले स्नान का अधिकार दिया गया था. तब से यह परंपरा चली आ रही है.
पुराणों के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के बीच अमृत कलश को पाने के लिए संघर्ष हुआ, तब समुद्र मंथन हुआ. उस समय प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक में अमृत की बूंदें बरसीं. उसके बाद यहां महाकुंभ मेला शुरू हुआ. चूंकि नागा साधु भगवान शिव के अनुयायी माने जाते हैं, इसलिए वह भोले शंकर की तपस्या और साधना की वजह से इस स्नान को सबसे पहले करने के अधिकारी माने गए. तब से चली आ रही इस परंपरा के अनुसार, नागा साधु सबसे पहले अमृत की बूंदों में स्नान करते हैं.