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भारत-रूस संबंधों को लेकर चीन क्यों असुरक्षित महसूस कर रहा? जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट - India Russia ties

India Russia ties : रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की हालिया चीन यात्रा से इस बात की चर्चा जोरों पर है कि इसका भारत-रूस के संबंध पर असर तो नहीं पड़ेगा. एक्सपर्ट का कहना है कि रूस-चीन का गठजोड़ रूस-भारत संबंधों में कोई बदलाव या प्रभाव नहीं डालेगा.पढ़िए ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी की रिपोर्ट.

India Russia ties
पुतिन मोदी (ANI File Photo)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 31, 2024, 6:56 PM IST

नई दिल्ली: रूस-यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत के बाद से भारत के अंदर और बाहर दोनों जगह यह बहस चल रही है कि क्या बढ़ते चीन-रूस संबंध पारंपरिक रूस-भारत मित्रता में बाधा डालेंगे और भारत के राष्ट्रीय हित को नुकसान पहुंचाएंगे. जिससे यह चीन के बढ़ने के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाएगा.

एक एक्सपर्ट की राय है कि रूस-चीन गठजोड़ रूस-भारत संबंधों में कोई बदलाव या प्रभाव नहीं डालेगा. उन्होंने कहा कि 'भारत-रूस संबंध चट्टान की तरह ठोस हैं और एक समय-परीक्षणित संबंध हैं जो किसी अन्य तीसरे देश से प्रभावित नहीं हो सकते हैं.'

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की हालिया चीन यात्रा ने नई दिल्ली में आशंका पैदा कर दी है. भारत से अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को रूस से दूर रखने की मांग करने वाली आवाजें तेज हो रही हैं. हालांकि, चीन, रूस और भारत के बीच शक्ति त्रिकोण में, चीन के पास भारत-रूस के मजबूत और गहरे संबंधों को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए नई दिल्ली स्थित राजनीतिक आर्थिक विशेषज्ञ डॉ. श्रोकमल दत्ता ने कहा, 'भारत चीन और रूस के बीच त्रिकोणीय गतिशीलता संभव नहीं है क्योंकि भारत और चीन में ऐतिहासिक समस्याएं हैं जिनके लिए चीन पूरी तरह से जिम्मेदार है. जब तक चीन ऐसा नहीं करता भारत के खिलाफ अपने सैन्य आक्रामक रुख को रोकना संभव नहीं है.'

दत्ता ने टिप्पणी की, 'भारत-चीन संबंधों को सामान्य बनाने के लिए चीन को अवैध रूप से कब्जाए गए भारतीय क्षेत्र अक्साई चिन यानी अक्साई हिंद को वापस करना होगा और भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश पर अपने बेतुके दावों को रोकना होगा. रूस के साथ हमारे संबंध टाइम टेस्टेड और ठोस हैं और भविष्य में इसमें और वृद्धि होगी. अगर चीन अरुणाचल प्रदेश पर दावा करता रहा तो भारत भी तिब्बत पर अपना विस्तारित सांस्कृतिक क्षेत्र होने का दावा कर सकता है और शिनजियांग की कब्जा की गई जमीन को भी स्वतंत्र देश घोषित कर सकता है.'

उन्होंने कहा कि 'रूस-चीन गठबंधन किसी भी तरह से रूस-भारत संबंधों में बदलाव या प्रभाव नहीं डालेगा. भारत रूस के रिश्ते चट्टान की तरह मजबूत हैं और समय की कसौटी पर खरे उतरे रिश्ते हैं जिन पर किसी तीसरे देश का असर नहीं हो सकता.'

गौरतलब है कि जून 2023 में चीन और कुछ अन्य G20 सदस्य देशों ने कश्मीर में भारत द्वारा आयोजित G20 पर्यटन शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया था. रूस ने बहिष्कार के बावजूद शिखर सम्मेलन में भाग लिया, जिसने चीन का ध्यान आकर्षित किया. अगस्त 2023 के मध्य में रिपोर्टें सामने आईं कि रूस निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार भारत को S400 मिसाइल रक्षा प्रणाली सौंप देगा, जिससे चीन में सार्वजनिक आक्रोश फैल गया और चीन-रूस दोस्ती की ताकत पर सवाल उठने लगे.

रिश्ते पर किसी भी तरह का असर नहीं :एक्सपर्ट ने आगे बताया कि राष्ट्रपति पुतिन की चीन यात्रा दो देशों के बीच द्विपक्षीय यात्रा है और इसका भारत के साथ रूस के रिश्ते पर किसी भी तरह का असर नहीं पड़ेगा. इसके अलावा, राष्ट्रपति पुतिन के भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के साथ बहुत सौहार्दपूर्ण और मजबूत व्यक्तिगत संबंध हैं.

दत्ता ने कहा कि 'राष्ट्रपति पुतिन के चीन दौरे का भारत के साथ रूस के रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. चीन निश्चित रूप से भारत और रूस के बीच मजबूत समय-परीक्षित संबंधों को लेकर बहुत चिंतित है. चीन के साथ समस्या यह है कि एक राष्ट्र के रूप में उस पर कोई अन्य देश भरोसा नहीं कर सकता. चीन हर देश पर हमेशा अविश्वास रखता है. समस्या यहीं है- प्रत्येक राष्ट्र द्वारा चीन के प्रति अविश्वास.'

चीन इस बात को पूरी तरह से समझता है कि रूस-भारत संबंधों में किसी भी तरह की गिरावट के कारण चीनी हस्तक्षेप के कारण भारत द्वारा रूसी हथियारों की खरीद में कमी आने से भारत अमेरिका या अन्य पश्चिमी देशों से और अधिक हथियार मांगने के लिए प्रेरित होगा. इससे भारत और पश्चिम के बीच गठबंधन काफी मजबूत हो जाएगा, जिससे चीन के हितों को सीधा खतरा पैदा होगा. 'रूस फैक्टर' वर्तमान में अमेरिका-भारत संबंधों को बाधित करता है, जिससे चीन को ताइवान और दक्षिण चीन सागर विवादों में विकास को प्रभावित करने के लिए अधिक अवसर मिलता है.

रूस ऐतिहासिक रूप से भारत के सैन्य हार्डवेयर के मुख्य आपूर्तिकर्ताओं में से एक रहा है, जिसमें एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली जैसी उन्नत प्रणालियां भी शामिल हैं. यह रक्षा संबंध भारत की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाता है, जो चीन और भारत के बीच चल रहे सीमा तनाव को देखते हुए चीन के लिए एक रणनीतिक चिंता का विषय है. बीजिंग चाहे रूस और अन्य देशों को प्रभावित करने की कितनी भी कोशिश कर ले, देश अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी रूस और भारत के बीच बढ़ते संबंधों को लेकर बेहद असुरक्षित है.

रूस के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी क्षेत्र में चीन के प्रभाव के प्रति संतुलन के रूप में कार्य कर सकती है. उदाहरण के लिए, यह गतिशीलता विशेष रूप से शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और ब्रिक्स जैसे मंचों पर स्पष्ट है, जहां रूस और भारत उन मुद्दों पर एकजुट हो सकते हैं जो चीनी प्रभुत्व का मुकाबला कर सकते हैं.

दूसरी ओर, चीन और भारत दोनों मध्य एशिया में प्रभाव डालने की होड़ में हैं. भारत के साथ रूस के मजबूत संबंध नई दिल्ली को इस रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र में पैर जमाने में मदद कर सकते हैं, संभवतः चीन की कीमत पर. चीन वैश्विक भू-राजनीति की बहुध्रुवीय प्रकृति को पहचानता है और समझता है कि रूस भारत सहित कई देशों के साथ संबंध बनाए रखेगा. यह व्यावहारिक दृष्टिकोण निश्चित रूप से चीन को व्यापक भू-राजनीतिक वास्तविकता के हिस्से के रूप में रूस-भारत संबंधों को स्वीकार करने में मदद करेगा.

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