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निर्वासित तिब्बती सरकार और चीन कर रहे बैक-चैनल बातचीत; क्या फिर से शुरू होगी रुकी वार्ता - TIBET CHINA BACKCHANNEL

TIBET CHINA back channel talks : तिब्बत की निर्वासित सरकार के राजनीतिक प्रमुख पेंपा त्सेरिंग ने पुष्टि की है कि उनके वार्ताकार चीन के साथ 'बहुत अनौपचारिकट बातचीत कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि फिलहाल इससे अधिक उम्मीद लगाना ठीक नहीं होगा.

TIBET CHINA back channel talks
तिब्बत की निर्वासित सरकार. फाइल फोटो (IANS)

By PTI

Published : Apr 25, 2024, 1:49 PM IST

धर्मशाला: निर्वासित तिब्बती सरकार और चीन बैक-चैनल वार्ता कर रहे हैं. यह एक दशक से अधिक समय से औपचारिक वार्ता प्रक्रिया के गतिरोध के बाद फिर से जुड़ने की इच्छा का संकेत दे रहा है. तिब्बत की निर्वासित सरकार के सिक्योंग या राजनीतिक प्रमुख पेंपा त्सेरिंग ने अनौपचारिक वार्ता की पुष्टि करते हुए कहा कि उनके वार्ताकार 'बीजिंग में लोगों' के साथ बातचीत कर रहे हैं, लेकिन आगे बढ़ने की तत्काल कोई उम्मीद नहीं है.

त्सेरिंग ने पत्रकारों के एक छोटे समूह से कहा कि पिछले साल से हमारे बीच बैक-चैनल वार्ता चल रही है. लेकिन हमें इससे तत्काल कोई उम्मीद नहीं है. उन्होंने जोर दिया कि वार्ता दीर्घकालिक और बहुत अनौपचारिक होनी चाहिए. केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के प्रमुख ने कहा कि मेरे वार्ताकार हैं जो बीजिंग में लोगों से बात कर रहे हैं. फिर अन्य तत्व भी हम तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.

2002 से 2010 तक, तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के प्रतिनिधियों और चीनी सरकार ने नौ दौर की बातचीत की, जिसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला. तब से कोई औपचारिक बातचीत नहीं हुई है. एक अन्य वरिष्ठ तिब्बती नेता ने संकेत दिया कि बैक-चैनल वार्ता का उद्देश्य समग्र वार्ता प्रक्रिया को पुनर्जीवित करना है क्योंकि तिब्बती मुद्दे को हल करने का यही एकमात्र तरीका है.

सीटीए नेता ने 2020 में पूर्वी लद्दाख विवाद के बाद नई दिल्ली और बीजिंग के बीच खराब संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि भारतीय सीमा पर चीनी युद्ध ने भारत में तिब्बती मुद्दे को उजागर किया है. उन्होंने कहा कि सीमा पर चीनी आक्रामकता के साथ, तिब्बती मुद्दा भी स्वाभाविक रूप से भारत में उजागर हो जाता है.

साथ ही, त्सेरिंग ने तिब्बती मुद्दे के लिए भारत से अधिक समर्थन की वकालत की. उन्होंने कहा कि अब आप देख सकते हैं कि भारत की विदेश नीति अधिक जीवंत हो रही है. दुनिया भर में भारत का प्रभाव भी बढ़ रहा है. इस अर्थ में, हम निश्चित रूप से चाहेंगे कि भारत तिब्बती मुद्दे के प्रति थोड़ा और मुखर हो.

1959 में एक असफल चीनी विरोधी विद्रोह के बाद, 14वें दलाई लामा तिब्बत से भाग गए और भारत आ गए जहां उन्होंने निर्वासित सरकार की स्थापना की. चीनी सरकार के अधिकारी और दलाई लामा या उनके प्रतिनिधि 2010 के बाद से औपचारिक वार्ता में नहीं मिले हैं.

बीजिंग कहता रहा है कि उसने तिब्बत में क्रूर धर्मतंत्र से दासों को मुक्त कराया है और इस क्षेत्र को समृद्धि और आधुनिकीकरण के रास्ते पर ला रहा है. चीन ने अतीत में दलाई लामा पर 'अलगाववादी' गतिविधियों में शामिल होने और ऐसा करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है. तिब्बत को विभाजित किया और उसे विभाजनकारी व्यक्ति माना.

हालांकि, तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने जोर देकर कहा है कि वह स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे हैं बल्कि 'मध्य-मार्ग दृष्टिकोण' के तहत 'तिब्बत के तीन पारंपरिक प्रांतों में रहने वाले सभी तिब्बतियों के लिए वास्तविक स्वायत्तता' की मांग कर रहे हैं. 2008 में तिब्बती क्षेत्रों में चीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के कारण दोनों पक्षों के बीच संबंध और तनावपूर्ण हो गए. दलाई लामा तिब्बती मुद्दे को बातचीत के जरिए सुलझाने के पक्षधर रहे हैं.

दलाई लामा ने पिछले साल कहा था कि मैं चीन के साथ बातचीत के लिए हमेशा तैयार हूं और कई साल पहले यह स्पष्ट कर चुका हूं कि हम पूर्ण स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे हैं और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) का हिस्सा बने रहेंगे.

अपनी टिप्पणी में, त्सेरिंग ने सुझाव दिया कि भारत और चीन के बीच कम जटिल संबंध तिब्बती मुद्दे के समाधान की दिशा में सकारात्मक रूप से आगे बढ़ने में मदद कर सकते हैं. इस संदर्भ में, उन्होंने भारतीय और तिब्बती संस्कृति और विरासत के बीच गहरे संबंध पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि परम पावन दलाई लामा कहते रहते हैं कि 'मैं भारतीय धरती का पुत्र हूं' और 'मैं भारतीय ज्ञान का दूत हूं. इसलिए हम भारतीय संस्कृति के करीब हैं लेकिन चीन के नहीं.

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