बर्न: शुक्रवार को एक स्विस कोर्ट ने ब्रिटेन के सबसे अमीर परिवार के सदस्यों को जिनेवा के एक आलीशान विला में घरेलू कामगारों के शोषण का दोषी पाया. हालांकि, कोर्ट ने अपने नौकरों की मानव तस्करी के आरोपी परिवार के सदस्यों को बरी कर दिया. द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार को कोर्ट ने प्रकाश और कमल हिंदुजा को चार साल और छह महीने की जेल की सजा सुनाई, जबकि अजय और नम्रता हिंदुजा को चार साल की सजा सुनाई गई.
साथ ही, कोर्ट ने उन्हें करीब 950,000 अमेरिकी डॉलर का मुआवजा और 300,000 अमेरिकी डॉलर की प्रक्रिया शुल्क अदा करने का निर्देश दिया. अभियोक्ताओं ने ब्रिटेन के परिवार के चार सदस्यों - प्रकाश हिंदुजा, उनकी पत्नी कमल हिंदुजा, उनके बेटे अजय हिंदुजा और उनकी बहू नम्रता हिंदुजा पर भारत से कई कामगारों की तस्करी और शोषण का आरोप लगाया था.
परिवार के सदस्यों पर कर्मचारियों के पासपोर्ट जब्त करने और विला में बिना ओवरटाइम भुगतान के उन्हें प्रतिदिन 16 घंटे या उससे अधिक काम करने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया गया था. हिंदुजा परिवार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने आरोपों को खारिज कर दिया था. परिवार के व्यवसाय सलाहकार नजीब जियाजी, जिन पर भी आरोप लगे थे, शोषण में शामिल पाए गए.
द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदुजा परिवार के सदस्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील रोमेन जॉर्डन ने ईमेल के माध्यम से भेजे गए एक बयान में कहा कि वे इस फैसले से 'निराश' हैं और उन्होंने उच्च न्यायालय में अपील दायर की है. बयान में आगे लिखा है कि परिवार को न्यायिक प्रक्रिया पर पूरा भरोसा है और वे अपना बचाव करने के लिए दृढ़ हैं. हिंदुजा परिवार एक बहुराष्ट्रीय समूह का नेतृत्व करता है, जिसके पास रियल एस्टेट, ऑटोमोटिव विनिर्माण, बैंकिंग, तेल और गैस तथा स्वास्थ्य सेवा में बड़ी हिस्सेदारी है.
मुकदमे में बहस 10 जून को शुरू हुई, जिसमें मुख्य अभियोक्ता, यवेस बर्टोसा ने दावा किया कि परिवार ने एक पालतू जानवर के लिए जितना बजट बनाया था, उससे कहीं ज्यादा बजट एक घरेलू कामगार के लिए रखा था. द न्यूयॉर्क टाइम्स ने स्विस न्यूज मीडिया में आई रिपोर्ट का हवाला देते हुए यह जानकारी दी.
अभियोग के अनुसार, कुछ घरेलू कामगार, जो बच्चों की देखभाल या घर का काम करते थे, उन्हें सिर्फ 10,000 रुपये प्रति महीने (वर्तमान में लगभग 120 अमेरिकी डॉलर) का भुगतान किया जाता था. इसमें कहा गया है कि कई कामगार भारत में गरीब पृष्ठभूमि से थे और बिना ओवरटाइम के भुगतान के 'सुबह से देर शाम तक' काम करते थे.