हैदराबाद: रूस-यूक्रेन युद्ध के तीन साल पूरे होने को हैं. इस संघर्ष में दोनों पक्ष हजारों सैनिकों को खो चुके हैं. रूसी हमलों में यूक्रेन के कई शहर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं. भारी नुकसान के बाद भी दोनों देश युद्धविराम के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं. इसके बजाय एक दूसरे के खिलाफ अलग-अलग युद्ध रणनीति का इस्तेमाल कर रहे हैं.
ऐसी की एक रणनीति है मीट ग्राइंडर (Meat Grinder). शत्रु पर काबू पाने के इरादे से मानव जीवन की परवाह किए बगैर किसी विशेष स्थान पर सैनिकों द्वारा एक के बाद एक लगातार हमला करना मीट ग्राइंडर रणनीति कहलाता है. मीट ग्राइंडर रणनीति सैनिकों के निजी जीवन के मूल्य को मान्यता नहीं देती है. रूस और उत्तर कोरिया इस रणनीति का इस्तेमाल जीवन की भारी कीमत पर कर रहे हैं. उत्तर कोरिया यूक्रेन युद्ध में रूस का साथ दे रहा है.
मीट ग्राइंडर रणनीति का इतिहास
मीट ग्राइंडर एक रूसी रणनीति है, युद्धक्षेत्र में यह दृष्टिकोण दुश्मन पर हावी होने के लिए सैनिकों की भारी तैनाती और आक्रामक हमले को महत्व देता है. नौ दशकों से चली आ रही यह रणनीति रूस का अनूठा दृष्टिकोण है, जिसमें दो बहुत पुरानी रणनीतियों - दुश्मन की ताकत को कमजोर करना और सामूहिक लामबंदी का संयोजन शामिल है. इसका उद्देश्य युद्ध के मैदान में सैनिकों की भारी तैनात करके केवल संख्या के बल पर दुश्मन को शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर करना है.
संगठन और रणनीति में पिछड़ने के बावजूद, रूसी सेना ने इसी दृष्टिकोण के सहारे 1812 में नेपोलियन के आक्रमण के खिलाफ सफलतापूर्वक युद्ध लड़ा.
इसके बाद 'मीट ग्राइंडर' रणनीति सोवियत संघ (अब रूस) की सैन्य रणनीति का प्रमुख हिस्सा बन गई. 'मात्रा का अपना गुण होता है' वाक्यांश की जड़ें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान स्टालिन के नेतृत्व में अप्रमाणिक (apocryphal) हैं. स्टेलिनग्राद और कुर्स्क जैसी प्रमुख लड़ाइयों में लाखों सैनिकों की तैनाती शामिल थी, और सोवियत सेना ने आखिकार पूर्वी मोर्चे पर अपनी संख्या के बल पर जर्मन नाजी हमले (Nazi blitzkrieg) को कुचल दिया.