सिलेगॉन: इंडोनेशिया द्वारा उद्योग को बिजली देने के लिए उपयोग किए जाने वाले 'कैप्टिव' कोयला संयंत्रों के नियोजित विस्तार से 2030 तक CO2 उत्सर्जन में कटौती करने और एक दशक बाद सभी कोयला-चालित संयंत्रों को बंद करने की उसकी प्रतिज्ञा को खतरा है. गुरुवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है.
इंडोनेशिया दक्षिण पूर्व एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. इसके साथ ही कोयले पर अपनी निर्भरता के कारण इंडोनेशिया दुनिया के शीर्ष उत्सर्जकों में से एक है. इसके बाद भी राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांटो ने पिछले साल केवल 15 वर्षों में कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने और मध्य शताब्दी तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने की प्रतिबद्धता जताई थी.
लंदन स्थित ऊर्जा थिंक टैंक एम्बर की एक रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर में घोषित इंडोनेशिया की नई राष्ट्रीय बिजली मास्टर प्लान में नवीकरणीय ऊर्जा में वृद्धि के साथ-साथ 2030 के बाद कोयला उत्पादन में भी तेज वृद्धि की योजना है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि नई योजना चिंताओं को जन्म देती है. एम्बर ने कहा कि इंडोनेशिया की नवीनतम बिजली मास्टर प्लान कोयला बिजली उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकती है. जकार्ता ने पहले कहा था कि उसका अक्षय ऊर्जा मिश्रण 2030 तक उसके बिजली उत्पादन का 44 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा. लेकिन नई योजना में अगले सात वर्षों में 26.8 गीगावाट की नई कोयला क्षमता शामिल है. एम्बर ने कहा कि जिसमें से 20 गीगावाट से अधिक तथाकथित कैप्टिव कोयला विस्तार से आएगा, जो ग्रिड के बजाय उद्योग को ऊर्जा की आपूर्ति करेगा.
एम्बर के अनुसार, इंडोनेशिया वर्तमान में 49.7 गीगावाट के कोयला आधारित बिजली संयंत्र संचालित करता है, और सरकार का कहना है कि दिसंबर तक 253 कोयला आधारित बिजली संयंत्र चालू थे. लेकिन दर्जनों और कोयला आधारित संयंत्र निर्माणाधीन हैं, जिनमें कैप्टिव कोयला संयंत्र भी शामिल हैं. सरकारी बिजली कंपनी पेरुसाहान लिस्ट्रिक नेगारा ने टिप्पणी के अनुरोध का जवाब नहीं दिया.