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बांग्लादेश : मोहम्मद यूनुस के खिलाफ भी छात्रों ने शुरू किया विद्रोह - PROCLAMATION OF JULY UPRISING

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार जुलाई विद्रोह की घोषणा करेगी. हालांकि, सरकार का प्रस्ताव छात्र संगठनों के प्रस्ताव से अलग होगा.

Bangladesh Students Movement
प्रतीकात्मक तस्वीर (IANS)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 31, 2024, 10:14 AM IST

ढाका: मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने घोषणा की है कि उसने जुलाई विद्रोह की घोषणा तैयार करने का फैसला किया है. बता दें कि अंतरिम सरकार ने भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन द्वारा प्रस्तावित घोषणा से खुद को अलग कर लिया है.

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने आधी रात को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में संवाददाताओं से कहा कि हमें उम्मीद है कि कुछ ही दिनों में सभी की भागीदारी और आम सहमति से घोषणा तैयार कर ली जाएगी. देश के सामने पेश की जाएगी.

यूनुस के आधिकारिक जमुना निवास के सामने संवाददाताओं को संबोधित करते हुए आलम ने कहा कि घोषणा सभी सहभागी छात्रों, राजनीतिक दलों और हितधारकों के विचारों पर आधारित होगी, जिसमें भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन भी शामिल है, जिसके कारण 5 अगस्त को प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग सरकार को सत्ता से बाहर होना पड़ा था. आलम ने कहा कि सरकार ने प्रस्तावित चार्टर तैयार करने की पहल 'लोगों की एकता, फासीवाद विरोधी भावना और जुलाई के विद्रोह के माध्यम से विकसित राज्य सुधार की इच्छा को मजबूत करने' के लिए की है.

छात्रों के नेतृत्व वाले एक अन्य समूह नेशनल सिटिजन कमेटी के साथ भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन ने दो दिन पहले एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम में कहा कि वे मंगलवार दोपहर को ढाका के सेंट्रल शहीद मीनार में जुलाई के विद्रोह की घोषणा करेंगे. लेकिन सरकार की आधी रात की घोषणा के तुरंत बाद, छात्र मंच ने जल्दबाजी में एक आपातकालीन बैठक बुलाई और लगभग दो घंटे बाद पत्रकारों से कहा कि घोषणा के बजाय वे उसी स्थान और समय पर 'एकता के लिए मार्च' का आयोजन करेंगे.

मंच के संयोजक हसनत अब्दुल्ला ने 29 दिसंबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि मुजीबिस्ट '72 संविधान को उसी जगह (घोषणा में) दफना दिया जाएगा, जहां जुलाई के विद्रोह के दौरान एक सूत्री घोषणा की गई थी. उस समय अब्दुल्ला ने कहा था कि भारतीय आक्रमण की शुरुआत 1972 के संविधान के सिद्धांतों के माध्यम से हुई थी (और) यह घोषणा यह स्पष्ट करेगी कि मुजीबिस्ट संविधान ने लोगों की आकांक्षाओं को कैसे नष्ट किया और हम इसे कैसे बदलना चाहते हैं.

मंच के नेता ने कहा कि इस घोषणा से बांग्लादेश में अपदस्थ प्रधानमंत्री की 'नाजी अवामी लीग' को भी 'अप्रासंगिक' घोषित करने की उम्मीद है. भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के नेता और राष्ट्रीय नागरिक समिति के मुख्य आयोजक सरजिस आलम ने उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि 'हम मानते हैं कि जिस तरह से हमारी क्रांति को सभी फासीवाद विरोधियों ने अपनाया था, उसी तरह इस घोषणा में भी सभी की उम्मीदें और आकांक्षाएं शामिल होंगी.'

1972 का संविधान स्वतंत्र बांग्लादेश के उदय के एक साल बाद 1970 के चुनावों में चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा 'संविधान सभा' के सदस्यों के रूप में उनके 'जनादेश' के अनुरूप तैयार किया गया था, जिसमें शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व वाली अवामी लीग को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ था.

पार्टी ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में 162 सामान्य सीटों में से 160 और सभी सात महिला सीटों पर जीत हासिल की. हालांकि, जनरल याह्या खान के नेतृत्व में पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य जुंटा ने अंततः अचानक सेना की कार्रवाई शुरू कर दी, जिससे मुक्ति युद्ध शुरू हो गया. अंतरिम सरकार ने 'घोषणा' से खुद को दूर कर लिया, यूनुस के प्रेस सचिव ने कहा कि 'सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है' और 'इसे (घोषणा) 'निजी पहल' के रूप में देखना चाहती है.

5 अगस्त को शासन को हटाए जाने के बाद से अवामी लीग सार्वजनिक क्षेत्र में नहीं दिखी है, क्योंकि इसके कई नेता गिरफ्तार हो गए हैं या देश और विदेश में भाग रहे हैं, कभी-कभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी गतिविधियों को सीमित कर रहे हैं. लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बीएनपी के कुछ नेताओं ने इस प्रस्ताव पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की. इसकी सर्वोच्च नीति-निर्धारक स्थायी समिति के सदस्य मिर्जा अब्बास ने कहा कि संविधान 1972 में 30 लाख शहीदों के खून की कीमत पर लिखा गया था.

उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि आपके वरिष्ठ होने के नाते, हमें निराशा होती है जब आप (छात्र आंदोलन के नेता) कहते हैं कि संविधान को दफना दिया जाना चाहिए. अगर संविधान में कुछ भी बुरा है, तो उसमें संशोधन किया जा सकता है. अब्बास ने कहा कि जब आप (छात्र नेता) इस तरह की बातें कहते हैं, तो यह फासीवादी लगता है, क्योंकि फासीवादी कहते थे, हम उन्हें दफना देंगे, उन्हें मार देंगे और उन्हें काट देंगे. छात्र मंच और बीएनपी सहित विभिन्न राजनीतिक समूह अक्सर अपदस्थ शासन को 'फासीवादी' कहते हैं.

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