जानें कौन है बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी की मजीद ब्रिगेड, जिसने पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर किया हमला - Balochistan attack
Balochistan problem : पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के बाहर हमले ने एक बार इस अशांत क्षेत्र को फिर चर्चा में ला दिया है. आजादी के बाद से ही यह इलाका संघर्षों को लेकर चर्चा में रहा है. यहां बेरोजगारी ज्यादा है, बावजूद इसके जिस तरह से चीन के नागरिकों को इस इलाके में काम दिया जा रहा है उससे भी असंतोष पनप रहा है. पढ़ें खास रिपोर्ट.
हैदराबाद : पाकिस्तान के अशांत बलूचिस्तान प्रांत में ग्वादर बंदरगाह के बाहर हुए हमले में आठ विद्रोही मारे गए. इस हमले में दो सैनिकों की भी मौत हो गई. हमले की जिम्मेदारी प्रतिबंधित बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) से संबद्ध मजीद ब्रिगेड ने ली है. मजीद ब्रिगेड का गठन 2011 में बलूच लिबरेशन आर्मी ने किया था. इसका नाम पूर्व पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो के उस गार्ड के नाम कर किया गया है, जो उन पर हमले की कोशिश में मारा गया था. यह पहली बार नहीं है जब ग्वादर और उसके आसपास के इलाकों में विद्रोहियों का गुस्सा सामने आया है. लक्ज़री पीसी होटल में 2019 में भी इसी तरह का हमला हुआ था.
भौगोलिक रूप से समझिए इस इलाके को :बलूचिस्तान क्षेत्र तीन देशों में विभाजित है, ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान. प्रशासनिक रूप से इसमें बलूचिस्तान का पाकिस्तानी प्रांत, सिस्तान और बलूचिस्तान का ईरानी प्रांत और अफगानिस्तान के दक्षिणी क्षेत्र शामिल हैं, जिसमें निमरूज़, हेलमंद और कंधार है. इसकी सीमा उत्तर में खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र, पूर्व में सिंध और पंजाब और पश्चिम में ईरानी क्षेत्रों से लगती है. मकरान तट सहित इसकी दक्षिणी तटरेखा, अरब सागर द्वारा, विशेष रूप से इसके पश्चिमी भाग, ओमान की खाड़ी से मिलती है.
ग्वादर पोर्ट पर चीनी दखल
पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है बलूचिस्तान : पाकिस्तान का बलूचिस्तान इस देश का सबसे बड़ा प्रांत है. देश के बाकी हिस्सों की तुलना में यहां गरीबी ज्यादा है. हालांकि इस इलाके में प्राकृतिक संसाधनों की अधिकता है. यहां तेल का पाया जाना इसे रणनीतिक रूप से और महत्वपूर्ण बनाता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस तरह के हमलों के पीछे बलूचिस्तान की जनता का गहरा असंतोष बताया जा रहा है. ऐसे में इसके इतिहास पर नजर डालना जरूरी है.
बलूचिस्तान के इतिहास पर नजर :दरअसलस्वतंत्रता के समय इस प्रांत में मकरान, लास बेला, खारन और कलात की प्रमुख रियासतें शामिल थीं. जब ब्रिटिश शासन खत्म होने वाला था तो कलात के प्रमुख, अहमद यार खान ने खुले तौर पर स्वतंत्र बलूच राज्य की वकालत करना शुरू कर दिया. उन्हें उम्मीद थी कि मुहम्मद अली जिन्ना के साथ उनकी व्यक्तिगत दोस्ती उन्हें पाकिस्तान में शामिल होने के बजाय अपना राज्य सुरक्षित करने में मदद करेगी. ऐसा लगा भी जब 11 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान ने उन्हें शामिल होने के लिए मजबूर करने के बजाय उनके साथ मित्रता की संधि पर हस्ताक्षर किए.
हालांकि, इस क्षेत्र में हो रहे सोवियत विस्तार से सावधान ब्रिटिश इसके सख्त खिलाफ थे. वह कलात का पाकिस्तान में विलय चाहते थे. इससे भी अधिक जटिल मामला यह था कि कलात के तीन सामंत पाकिस्तान में शामिल होना चाहते थे. अक्टूबर 1947 तक पाकिस्तान ने अपना सुर बदल लिया और विलय के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया.
आख़िरकार हालात तब बिगड़ गए जब 17 मार्च, 1948 को पाकिस्तान सरकार ने कलात के तीन सामंती राज्यों के विलय को स्वीकार करने का फैसला किया, जिससे कलात चारों ओर से ज़मीन से घिरा रह गया और उसके पास आधे से भी कम भूभाग रह गया. तब 26 मार्च, 1948 को पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान में घुसी. आखिरकार प्रमुख ने एक दिन बाद विलय की संधि पर हस्ताक्षर कर दिए. उसी वर्ष जुलाई में खान के भाई प्रिंस अब्दुल करीम ने समझौते के खिलाफ विद्रोह कर दिया. तब से इस क्षेत्र में शुरू हुआ हिंसा का दौर जारी है.
विद्रोहियों पर पाकिस्तानी सेना ने ढाए जुल्म : यहां विद्रोहियों से पाकिस्तानी बलों ने क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया. पाकिस्तानी बलों पर अत्याचार करने का आरोप लगा. बलों पर अपहरण, यातना, मनमाने ढंग से गिरफ़्तारी और फांसी देने तक की रिपोर्टें आई हैं. 2011 की एमनेस्टी इंटरनेशनल रिपोर्ट में भी इसका खुलासा हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तानी बल लोगों को पूछताछ के लिए उठाते हैं और प्रताड़ित करते हैं. बाद में गोली मारकर शव फेंक देते हैं. एनजीओ वॉयस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स के अनुसार, 2001 और 2017 के बीच की अवधि में लगभग 5,228 बलूच लोग लापता हो गए हैं.
बड़ा सवाल ये कि संघर्ष इतना लंबा क्यों :इसके पीछे एक मूलभूत कारण जातीय भिन्नता है. बलूचिस्तान के लोगों का इतिहास, भाषा और संस्कृति साझा है और वे पंजाबियों या सिंधियों से बहुत अलग हैं. पाकिस्तान का निर्माण धर्म के आधार पर हुआ था. हालांकि पंजाबी जमींदारों की पाकिस्तान की नौकरशाही पर लगभग निर्विवाद पकड़ थी. जातीय मतभेद 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के टूटने का कारण थे. बलूच लोगों की गहरी आर्थिक और राजनीतिक शिकायतें जातीय मतभेदों को बढ़ा रही हैं. सबसे हालिया संघर्ष वास्तव में लगभग पूरी तरह से आर्थिक अलगाव की भावना से प्रेरित था. बलूच राष्ट्रवादियों का तर्क है कि बलूच लोग स्वयं बलूचिस्तान के प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं.
चीन समर्थित ग्वादर बंदरगाह का निर्माण कुछ मायनों में बलूच आबादी के सामने आने वाले आर्थिक अन्याय का प्रतीक है. शिक्षित बलूच आबादी के बीच बेरोजगारी के अत्यधिक उच्च स्तर के बावजूद, बाहरी (चीनी) लोगों को काम पर रखा गया. यही वजह है कि हाल के वर्षों में बलूच विद्रोहियों ने परियोजना में शामिल चीनी अधिकारियों को नियमित रूप से निशाना बनाया है.
पीएम मोदी उठाते रहे हैं बलूचिस्तान और पीओके में अत्याचार का मुद्दा : गौरतलब है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में लोगों पर हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठाते रहे हैं. यहां तक कि वह लालकिले से संबोधन के दौरान भी इसका जिक्र कर चुके हैं. पीएम मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में कहा था कि 'पाकिस्तान को दुनिया को जवाब देने का समय आ गया है.' पीएम मोदी के संबोधन में गिलगित-बाल्टिस्तान सहित बलूचिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का जिक्र सुन यहां के लोगों ने उनके संदेशों से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री को धन्यवाद भी दिया था.