हैदराबाद : ट्यूबरक्लोसिस/टीबी या तपेदिक एक ऐसा क्षय रोग है जो आज के आधुनिक चिकित्सा के दौर में भी लोगों को काफी डराता है. दरअसल इस संक्रामक रोग को लेकर ना सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया भर में कई तरह के भ्रम व्याप्त हैं. चिकित्सकों के अनुसार निसंदेह यह एक गंभीर संक्रामक रोग है लेकिन यदि सही समय सही इलाज कराया जाय तो यह ठीक हो सकती है.
भ्रम और उनसे जुड़े सत्य तथा टीबी होने के कारण
ठाणे मुंबई के जनरल फिजीशियन डॉ ऋषभ लाल बताते हैं कि उनके पास इलाज के लिए आने वाले बहुत से लोगों में टीबी को लेकर काफी काफी भ्रम और ड़र देखने में आते हैं. कुछ लोगों को लगता है कि एक बार टीबी हो गया है अब वह कभी ठीक नहीं हो सकते, लोग उनका सामाजिक बहिष्कार कर देंगे क्योंकि यह दूसरों को भी फैल सकता है या अब तो उनके बचने की उम्मीद नहीं रही . वही ऐसे लोगों जिन्हे हड्डी या शरीर के किसी अन्य अंग में टीबी होने की पुष्टि होती है, वे जांच के बाद भी मानने को तैयार नहीं होते की उन्हे टीबी है, क्योंकि उन्हे लगता है कि यह सिर्फ फेफड़ों में होता है. दरअसल बहुत से लोगों को मालूम ही नहीं होता है कि टीबी शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकती है.
वह बताते हैं कि टीबी निसंदेह एक गंभीर रोग है लेकिन लाइलाज नहीं है. वह बताते कि टीबी होने का अगर समय से पता चल जाए और इस रोग का पूरा इलाज कराया जाय तो यह ठीक हो सकता है. टीबी रोग दरअसल माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के नामक बैक्टीरिया के कारण होने वाला संक्रमण है, जो हवा के माध्यम से शरीर में पहुंचते हैं. यह सही है कि इस बीमारी की शुरुआत फेफड़ों से ही होती है, लेकिन ये किडनी, आंतों, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में भी फैल सकता है. फेफड़ों में टीबी होने पर पीड़ित के खांसने- छींकने या फिर उसकी लार के संपर्क में आने से यह संक्रमण व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकती है. लेकिन यहा यह जानना भी जरूरी है कि टीबी अनुवांशिक या जेनेटिक बीमारी नहीं होती है . यह संक्रमण ज्यादातर उन्ही लोगों को प्रभावित करता है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. जिन लोगों का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है वे ना सिर्फ टीबी बल्कि किसी भी प्रकार के संक्रमण के प्रभाव में कम ही आते हैं.
कई लोगों को लगता है कि फेफड़ों के टीबी के लिए धूम्रपान जिम्मेदार होता है. धूम्रपान निसंदेह सेहत पर बुरा प्रभाव डालता है और टीबी में भी समस्या को ज्यादा खराब कर सकता है लेकिन सामान्य तौर पर इसे टीबी होने के लिए जिम्मेदार कारणों में नहीं गिना जाता है.
टीबी के प्रकार तथा लक्षण :डॉ ऋषभ बताते हैं कि आमतौर पर टीबी के चार प्रकार माने गए हैं.
- लेटेंट या गुप्त टीबी :लेटेंट टीबी में टीबी का बैक्टीरिया हमारे शरीर में प्रवेश के बाद भी निष्क्रिय या गुप्त रूप में रहता है. दरअसल यदि किसी व्यक्ति के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है तो वह बैक्टीरिया को सक्रिय नहीं होने देते हैं. इस स्थिति में टीबी के कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. लेकिन भविष्य में यदि किसी रोग, संक्रमण या अन्य कारण से शरीर की इम्यूनिटी प्रभावित होती है बैक्टीरिया शरीर में सक्रिय हो सकते हैं.
- एक्टिव या सक्रिय टीबी :इस अवस्था में टीबी के बैक्टीरिया शरीर में सक्रिय होकर प्रभाव दिखाना शुरू कर देते हैं. जिससे रोग के लक्षण भी नजर आने लगते हैं. इस अवस्था में रोग संक्रामक होने लगता है.
- पल्मोनरी टीबी :टीबी में बैक्टीरिया हमारे शरीर में सक्रिय होने के बाद सबसे पहले हमारे फेफड़ों पर असर दिखाना शुरू करते हैं. इसलिए इसे शरीर में रोग की शुरुआत भी माना जाता है.
- एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी :लेटेंट तथा पल्मोनरी टीबी का यदि समय से इलाज ना हो तो यह शरीर के कुछ अन्य अंगों को भी प्रभावित करना शुरू कर देते हैं. जिसे एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहा जाता है.