पटना : आज 25 जुलाई को विश्व आईवीएफ दिवस मनाया जा रहा है. आज ही के दिन वर्ष 1978 में पहली आईवीएफ बच्ची लुईस ब्राउन का जन्म इंग्लैंड में हुआ था. अब लुईस भी मां बन चुकी हैं. हाल के दिनों में आईवीएफ का प्रचलन काफी बढ़ गया है और इसके कई कारण हैं.
आईवीएफ क्या है ?: पटना की प्रख्यात गाइनेकोलॉजिस्ट डॉक्टर सारिका राय बताती हैं कि आईवीएफ का मतलब है 'इन विट्रो फर्टिलाइजेशन.' यानी वह फर्टिलाइजेशन जो शरीर के बाहर हो रहा है. जब यूट्रस में गर्भ नहीं ठहरता (गर्भधारण में परेशानी) है. उस स्थिति में आईवीएफ काफी मददगार होता है.
''आईवीएफ में पुरुष का शुक्राणु और महिला का अंडा लिया जाता है और उसे एक टेस्ट ट्यूब में लिक्विड के भीतर डालकर छोड़ दिया जाता है. दोनों आपस में अट्रेक्ट होते हैं और इसके बाद जो भ्रूण तैयार होता है, वह जब 5 दिन का हो जाता है तब उसे महिला के यूट्रस में इंप्लांट किया जाता है.''-डॉक्टर सारिका राय, गाइनेकोलॉजिस्ट
विश्व आईवीएफ दिवस 2024 (ETV Bharat GFX) आईवीएफ की कब जरूरत पड़ती है: डॉक्टर सारिका राय ने बताया कि आइवीएफ प्रक्रिया से गर्भधारण की तब जरूरत पड़ती है जब महिला सामान्य रूप से गर्भ धारण नहीं कर पा रही हैं. यदि महिला के दोनों फालोपियन ट्यूब बंद हो या ट्यूब में कोई रुकावट हो तो भी आईवीएफ कारगर है. यदि महिला के अंडाशय में अंडे की संख्या कम हो गई है, या महिला का बार-बार मिसकैरेज हो रहा है, उस स्थिति में भी गर्भधारण के लिए आईवीएफ मददगार होता है.
'पुरुषों का कमजोर शुक्राणु भी बांझपन का कारण': पटना के एनएमसीएच हॉस्पिटल की स्त्री एवं बचपन रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नीलू प्रसाद ने बताया कि उनके पास बांझपन का इलाज करने के लिए जो दंपति आ रहे हैं उनमें से 15 से 20 प्रतिशत पुरूषों में शुक्राणु शून्य रह रही है. इसके अलावा 70% पुरुषों के शुक्राणु की गुणवत्ता कमजोर रह रही है.
''पुरुषों का कमजोर शुक्राणु भी महिलाओं के सामान्य प्रेगनेंसी में बाधक है. ऐसी महिलाओं का आईवीएफ के माध्यम से गर्भधारण संभव है. उन्होंने बताया कि अभी भारत में 18.7 प्रतिशत लोग बांझपन से ग्रसित हैं. बांझपन की समस्या पुरूष और महिला दोनों में लगभग बराबर है.''- डॉक्टर नीलू प्रसाद, स्त्री एवं बांझपन रोग विशेषज्ञ, एनएमसीएच
विश्व आईवीएफ दिवस 2024 (ETV Bharat GFX) बांझपन की समस्या क्यों ? : डॉ नीलू प्रसाद ने बताया कि पुरूषों में शुक्राण की संख्या का अभी स्टैंडर्ड 15 हजार प्रति मिली लीटर है. यह लगातार घटाता जा रहा है, क्योंकि विश्व स्तर पर पुरूषों में शुक्राणु की संख्या घट रही है. यह चिंता का विषय है.
''महिलाओं में बांझपन का सबसे कॉमन कारण फॉलिक सिस्टीक ओवरी है. हर तीसरी महिला में यही समस्या देखने को मिल रही है. इसमें अंडा बनने की प्रक्रिया और गुणवत्ता दोनों बहुत घट जाती है तथा वजन काफी तेजी से बढ़ता है. यही फर्टिलिटी को नष्ट करता है. बिहार में भी बांझपन की समस्या बढ़ गई है और इसका कई बड़े कारण हैं.''-डॉक्टर नीलू प्रसाद, स्त्री एवं बांझपन रोग विशेषज्ञ, एनएमसीएच
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