नई दिल्ली : मधुमेह एक गंभीर बीमारी है. यह शरीर के मस्तिष्क समेत अलग-अलग अंगों को प्रभावित कर सकता है. अनुसंधानकर्ता लंबे समय से उस लिंक की बात करते रहे हैं कि मधुमेह की वजह से कॉगनिटिव फंक्शन (संज्ञानात्मक कार्य) यानी डिमेंशिया हो सकता है. हाल ही में आए एक अध्ययन में बहुत हद तक इसकी पुष्टि की गई है.
रिसर्च में दावा किया गया है कि डायबिटीज टाइप-2 और अल्जाइमर बीमारी में गहरा संबंध है. अगर आपको कम उम्र में डायबिटीज होता है, तो अल्जाइमर बीमारी से ग्रसित होने की संभावना बढ़ जाती है.
एक अध्ययन में अल्जाइमर के 81 फीसदी मरीजों में मधुमेह टाइप-2 के लक्षण पाए गए हैं. टेक्सास ए एंड एम विश्वविद्यालय के प्रारंभिक निष्कर्ष में पाया गया है कि मधुमेह और अल्जाइमर रोग के लिंक की वजह एक प्रोटीन है, जो आंत में पाया जाता है. इस अध्ययन रिपोर्ट को अमेरिकन सोसायटी फॉर बायोकैमिस्ट्री एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी में प्रस्तुत भी किया जा चुका है. शोधकर्ताओं ने अपने प्रयोगों में चूहों का उपयोग करके लिंक की जांच की. वैसे निष्कर्षों को अभी तक प्रकाशित नहीं किया गया है, और न ही सहकर्मी-समीक्षा की गई है.
वैज्ञानिकों ने बताया कि उच्च-प्रोटीन आहार, जेएके-3 प्रोटीन को दबा देता है. बिना इस प्रोटीन के चूहों में सूजन देखी गई. सूजन सबसे पहले आंतों से ही शुरू होती है और उसके बाद यह लिवर में जाता है. लिवर के बाद यह मस्तिष्क की ओर जाता है, जिसकी वजह से अल्जाइमर के लक्षण विकसित होने लगते हैं.
हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना है कि नियंत्रित मधुमेह अच्छा और स्वस्थ है. साथ ही आप अपनी जीवनशैली में बदलाव कर अपने जोखिम को कम कर सकते हैं. ब्लड में अत्यधिक सुगर होने की वजह से बीमारी होती है.
मधुमेह विशेषज्ञ और फोर्टिस सीडीओसी के अध्यक्ष डॉ अनूप मिश्रा कहते हैं कि अंगों का खराब होना मधुमेह की पहचान है, क्योंकि मधुमेह शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करता है, लिहाजा यह ब्रेन को प्रभावित करता है.
डॉ मिश्रा के अनुसार अगर ब्लड में सुगर को नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह आपके शरीर के अलग-अलग अंगों को प्रभावित करता है. उन्होंने कहा कि मधुमेह सबसे पहले छोटी रक्त वाहिकाओं को अवरुद्ध करने के लिए जाना जाता है, इसलिए मस्तिष्क तक ब्लड पहुंचने में दिक्कत आती है. और जब यही प्रक्रिया लंबे समय तक होती है, तो यह ब्रेन के कुछ हिस्से को प्रभावित करता है.
इसकी सबसे दिलचस्प बात यह है कि मधुमेह बीमारी जितनी कम उम्र में होगी, डिमेंशिया का खतरा उतना अधिक रहता है. इसकी व्याख्या बहुत साफ है, यदि ब्रेन को अधिक मात्रा में सुगर दिया जाता है, तो खतरा उतना अधिक बना रहता है. इसलिए कम उम्र में डायबिटिज है, तो डिमेंशिया का खतरा ज्यादा रहेगा.
इसलिए जब ब्लड सुगर का लेवल ज्यादा होता है, तो यह ब्रेन के नर्व और रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है. याददाश्त कमजोर होने लगती है, मूड बदलने लगता है, आपका वजन भी बढ़ सकता है, हॉर्मोनल चेंजेज दिखने लगते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि हाई ब्लड सुगर का संबंध बीटा-एमिलॉइड प्रोटीन के टुकड़ों से है. जब ये एक साथ एकत्रित हो जाते हैं, तो वे आपके मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं के बीच फंस जाते हैं और संकेतों को अवरुद्ध कर देते हैं. तंत्रिका कोशिकाएं जो एक दूसरे से संपर्क नहीं कर सकतीं, अल्जाइमर के मुख्य लक्षण हैं.
टाइप-2 डायबिटिज को कैसे खत्म करें-