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बच्चे ऑटिज्म के शिकार हैं तो घबराएं नहीं, पटना की यह संस्था करेगी मदद, जानें क्या है इसका लक्षण - World Autism Awareness Day 2024 - WORLD AUTISM AWARENESS DAY 2024

World Autism Awareness Day: ऑटिज्म अवेयरनेस डे पर पटना के स्पर्श ऑटिस्टिक केयर थेरेपी सेंटर में इस मौके पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया. संस्था की संचालिका ने बताया कि उनकी संस्थान में ऐसे बच्चों में सुधार के लिए काम किया जाता है जो इस बीमारी से पीड़ित होते हैं. पढ़ें पूरी खबर.

ऑटिज्म अवेयरनेस डे
ऑटिज्म अवेयरनेस डे

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Apr 2, 2024, 6:36 PM IST

ऑटिज्म अवेयरनेस डे

पटनाःपूरे देश में मंगलवार को ऑटिज्म अवेयरनेस डे मनाया गया. इसबार का थीम 'एंपावरिंग ऑटिस्टिक वॉइस' रखा गया है. इस थीम का उद्देश्य है कि इस डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों की आवाज को मजबूती देना है. पटना की संस्थान स्पर्श इस क्षेत्र में काम कर रही है जो इस बीमारी से पीड़ित बच्चों का इलाज करती है.

विशेष कार्यक्रम का आयोजनःमंगलवार को पटना के स्पर्श ऑटिस्टिक केयर थेरेपी सेंटर में इस मौके पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया. ऑटिस्टिक बच्चों के पेरेंट्स को चिकित्सकों ने प्रेरित किया कि वह अपने बच्चों को एक्सेप्ट करें. बच्चों के साथ सोसाइटी में जाए और बच्चों में ऑटिस्टिक बिहेवियर होने के कारण खुद गिल्ट महसूस न करें बल्कि बच्चों को समझ में ढ़लने में मदद करें.

अभिभावक ने साझा किया अनुभवः ऑटिस्टिक बच्चों के पैरंट्स ने अपने अनुभव को बताया कि कैसे बच्चों को विशेष केयर करना पड़ जाता है. अभिनंदिता कुमारी ने बताया कि साल 2021 में जब उनका बेटा ढाई वर्ष का था तो उन्हें पता चला कि उनके बच्चे में ऑटिज्म सिंड्रोम है. एक वर्किंग वुमन है और उनके पति भी वर्किंग है और दोनों का जॉब लोकेशन अलग है. इससे जीवन में काफी उथल-पुथल मच गई.

"बच्चे के बिहेवियर में अग्रेशन था. बच्चा बहुत उछल-कूद करता था. ना सोने का कोई समय था ना जगने का. किसी की बातों को नहीं सुनता था और काफी चिल्लाता था. कभी अपने आप में हंसने लगता था. इसके बाद ऑटिज्म थेरेपी सेंटर में भेजना शुरू किया. अब उसके बिहेवियर में काफी सुधार हुआ है. सामान्य बच्चों के साथ बैठकर पढ़ाई करता है. अब अच्छे से बोल भी पा रहा है."-अभिनंदिता कुमारी, पटना

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बच्चा में हो रहा काफी सुधारः पटना कीरागिनी कुमारी ने बताया कि साल 2022 में उन्हें पता चला कि उनके बच्चे में ऑटिज्म सिंड्रोम है. कई जगह दिखाया लेकिन सुधान नहीं हुआ. बाद में थेरेपी सेंटर में भेजना शुरू किया. इसके बाद बच्चों के बिहेवियर में काफी सुधार हुआ. अब वह खुद से खाना खा लेता है, हैंड वॉश कर लेता है, स्कूल में सामान्य बच्चों के साथ बैठकर पढ़ाई कर रहा है.

"शिक्षक भी बताते हैं कि उसके एग्रेसिव बिहेवियर में कमी आई है. बच्चों को घर में विशेष रूप से केयर करना पड़ता है, क्योंकि बच्चा जल्दी फील नहीं कर पता कि सामने वाला किस मूड में है और क्या कहना चाहता है. बच्चा अपने ही मूड में रहता है."-रागिनी कुमारी, पटना

ऐसे किया जाता है ठीकः स्पर्श ऑटिज्म थेरेपी सेंटर की संचालिका मुक्ता मोहिनी ने बताया कि उनके दो बच्चे हैं और दोनों ऑटिस्टिक सिंड्रोम से ग्रसित हैं. 12 वर्ष के बेटे में सिवीयर ऑटिज्म है जबकि 5 वर्ष की बेटी में माइल्ड ऑटिज्म है. ऑटिस्टिक बच्चों को 1-2-1 थेरेपी देनी पड़ती है. 8 इंद्रियों पर काम किया जाता है. आंख, कान, नाक, जीह्वा, त्वचा के साथ-साथ बॉडी बैलेंसिंग. किसी वस्तु को कितने फ़ोर्स से पकड़ना है. भूख प्यास लगने का क्या अनुभव है यह सब सिखाया जाता है.

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क्या है इसका लक्षणः उन्होंने बताया कि ऑटिस्टिक बच्चे भूख, प्यास, टॉयलेट और नींद को महसूस नहीं करते. उन्हें सीखना पड़ता है कि पेट में कैसा महसूस होता है तो उसे भूख लगा कहते हैं. गला सूखने लगता है तो प्यास लगना कहते हैं. पेट भारी हो गया है तो शौच की अनुभूति होती है. बच्चे सामाजिक नहीं होना चाहते हैं और आइसोलेटेड रहते हैं. आंख में आंख डालकर बातें नहीं करते पूरी वाक्य नहीं बोलते हैं. यह बच्चे विजुअल मीडियम से ही सीखते हैं.

'बच्चों को सरप्राइज पसंद नहीं आते' मोहिनी बताती है कि यह बच्चे प्रिडिक्टेबल एनवायरमेंट में रहना चाहते हैं. कभी नहीं चाहते कि उनके सामने कोई अनप्रिडेक्टेड इवेंट हो तो वह उसे एक्सेप्ट नहीं कर पाते. सरप्राइज इन्हें पसंद नहीं है. बच्चों को 1-2-1 थेरेपी में सिचुएशन क्रिएट करके बताया जाता है कि बर्थडे पार्टी में गए हैं तो कैसे बिहेव करना है. किसी पार्टी फंक्शन में जाते हैं तो कैसे बिहेव करें.

"आज भी हमारे समाज की विडंबना है कि अभिभावक बच्चों के ऑटिज्म के कारण खुद गिल्ट फील करते हैं और समाज से कट जाते हैं. अभिभावक नहीं चाहते कि उनके रिलेटिव और सोसाइटी में पता चले कि उनके बच्चे में ऑटिज्म है. पार्टी फंक्शन सोशल गैदरिंग से दूर रहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका सारा समय बच्चे का केयर करने में चला जाएगा. समाज में नहीं जाएंगे तो समाज इन बच्चों को नहीं एक्सेप्ट करेगा. लोगों को जागरूक होना पड़ेगा तभी लोग इसे एक्सेप्ट करेंगे. इससे बच्चा पर अच्छा असर पड़ता है."-मुक्ता मोहिनी, संचालिका, स्पर्श

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