पटना: इन दिनों पंचायत सीरीज का तीसरा सीजन लोग मजे लेकर देख रहे हैं. लेकिन, क्या आपको याद है पंचायत सीजन 2 में एक किसान की बकरी चोरी हो जाती है. वह किसान सीसीटीवी कैमरा में देखने के लिए पंचायत ऑफिस पहुंचता है. जहां पंचायत के दूसरे कैरेक्टर भूषण तमाशा करते हैं और भूषण उस बकरी वाले कैरेक्टर यानी कि माधव से कहते हैं 'कि ए माधव तुम पुलिस केस गवाही देगा ना, कि ये लोग क्या कर रहा मेरे साथ'. तो, माधव कहता है कि भूषण भाई आप कर तो रहे हैं... उसके बाद माधव का कैरेक्टर हर जुबान पर चढ़ गया.
पटना के हैं बुल्लू कुमार :माधव के उस कैरेक्टर को लेकर कई रिल्स बनाए जाने लगे. अब वह माधव पंचायत के तीसरे सीजन में भी महत्वपूर्ण कैरेक्टर में है. भले पंचायत सीजन 2 में माधव का करैक्टर छोटा था लेकिन, पंचायत सीजन 3 में माधव का करैक्टर उभर कर सामने आया है. यह माधव और कोई नहीं है, यह बिहार पटना के रंगमंच से निकले हुए एक रंगकर्मी हैं. इनका पूरा नाम है बुल्लू कुमार. बुल्लू कुमार पटना के रंग मंच के मंजे हुए रंगकर्मी है. इन्होंने पटना के कालिदास रंगालय से लेकर प्रेमचंद रंगशाला तक कई नाटक किए हैं. ईटीवी भारत आज आपको पंचायत के माधव यानी की बुल्लू कुमार से रु-ब-रु कराएगा.
नाटक ही करना है :दरअसल बुल्लू कुमार रंगमंच से पहले नवादा में रहते थे. हिसुआ के गोंदर बीघा गांव रहने वाले हैं. पहले तो बुल्लू कुमार अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद पटना में नौकरी-चाकरी के लिए आए थे. लेकिन एक दिन गलती से वह पटना के गांधी मैदान के कालिदास रंगालय में नाटक देखने पहुंच गए. इस नाटक में ऐसे उलझे कि बस इन्होंने सोच लिया कि इन्हें करना है तो नाटक ही करना है. रंगकर्मी ही बनाना है.
'मेरे पास खोने को कुछ नहीं था' :ईटीवी भारत ने जब उनसे यह सवाल पूछा कि आखिर ऐसा क्या हुआ था कि आपके मन में यह आया कि आपको रंग गर्मी ही बनाना है? इसपर बुल्लू कुमार कहते हैं कि मेरे पास खोने को कुछ नहीं था. उस समय मैं एक नेटवर्किंग कंपनी में काम करता था. जिसमें एक कहानी सुनाई गई थी कि एक बंदर और बंदरिया नदी के किनारे पेड़ पर बैठे थे. आकाशवाणी हुई कि जो इसमें डुबकी लगाएगा वह राजकुमार बन जाएगा या राजकुमारी बन जाएगी. बंदरिया ने डुबकी लगा ली, बंदर सोचने लगा कि अभी नहीं. इतने में बंदरिया राजकुमारी बन गई. बन्दरिया को राजकुमारी बना देखकर जब बंदर डुबकी लगाया तो वह बंदर ही रह गया, क्योंकि समय खत्म हो चुका था. ऐसे में यह बात मेरे दिमाग में फिट हो गई कि मेरे पास खोने को कुछ नहीं है. जो पाना है, यहीं से पाना है. फिर रंग मंच पर लगातार मेहनत करते रहे.
सिनेमा के लिए पटना से मुंबई गया :बुल्लू कुमार बताते हैं कि कई बार ऐसा मौका आया जब लगा कि सब कुछ खत्म हो चुका है. कई बार अकेले में जोर-जोर से रोए. लेकिन, दिलासा देते हुए, हिम्मत करते हुए आगे बढ़ते रहे. लगातार 5 साल रंगमंच करते हुए 2015 में मैंने सोच लिया कि अब रंगमंच नहीं करेंगे, अब सिनेमा करेंगे और इसी संकल्प के साथ मैं पटना से मुंबई पहुंच गया. छोटे-मोटे सीरियल मिले, मेरी एक फिल्म आई गुटूर गू, बहुत पहचान नहीं बन पाई, उधर, पटना भी आना-जाना लगा रहा था. मैं पूरी तरह से रंगमंच नहीं छोड़ पाया था. सोलो रंगमंच करता था. रसप्रिया मेरा एक बहुत ही महत्वपूर्ण नाटक है जो मैं करता रहा हूं.
पटना बाढ़ में जोगीरा गाया था :एक बार जब पटना में बहुत बारिश हुई थी और पटना डूबने लगा था तो मैंने ट्रैक्टर पर घूम कर गीत गाया था. अपना पटना इतना सुंदर होगा. हर घर घर पानी होगा बोलो.. जोगीरा सा रा रा.. यह यूट्यूब और फेसबुक पर बहुत ही वायरल हुआ था. इसमें मेरे साथी भी काफी एक्टिव थे.