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सेबी प्रमुख माधबी बुच के पास अडाणी की ऑफशोर संस्थाओं में हिस्सेदारी, इसलिए नहीं की कोई कार्रवाई: नई हिंडनबर्ग रिपोर्ट - Hindenburg New Revelation

Hindenburg New Revelation: बाजार नियामक से संबंधित हितों के टकराव के सवाल उठाते हुए, अमेरिका स्थित हिंडनबर्ग रिसर्च ने शनिवार को सेबी की अध्यक्ष और उनके पति पर आरोप लगाये हैं. हिंडनबर्ग रिसर्च ने अब दावा किया है कि सेबी चेयरपर्सन के पास 'अडाणी मनी साइफनिंग स्कैंडल में इस्तेमाल की गई अस्पष्ट ऑफशोर संस्थाओं में हिस्सेदारी थी.

Hindenburg New Revelation
(बाएं) सेबी चेयरपर्सन माधबी बुच; (दाएं) अडाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी (एएनआई) (ANI)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 11, 2024, 6:46 AM IST

Updated : Aug 11, 2024, 7:30 AM IST

नई दिल्ली: अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने बाजार नियामक सेबी की अध्यक्ष माधबी बुच पर नये आरोप लगाये हैं. हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा है कि उनके और उनके पति के पास अडाणी मनी साइफनिंग घोटाले में इस्तेमाल किए गए अस्पष्ट ऑफशोर फंड में हिस्सेदारी थी.

हिंडनबर्ग ने एक ब्लॉगपोस्ट में कहा कि अडाणी पर अपनी रिपोर्ट के 18 महीने बाद सेबी ने अडाणी के मॉरीशस और ऑफशोर शेल संस्थाओं के कथित अघोषित जाल में आश्चर्यजनक रूप से रुचि नहीं दिखाई है. व्हिसलब्लोअर दस्तावेजों का हवाला देते हुए, हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा कि सेबी की वर्तमान अध्यक्ष माधबी बुच और उनके पति के पास अडाणी मनी साइफनिंग घोटाले में इस्तेमाल किए गए दोनों अस्पष्ट ऑफशोर फंड में हिस्सेदारी है.

बता दें कि कथित तौर पर अडाणी समूह पर आरोप है कि विनोद अडाणी (ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडाणी के बड़े भाई) की ओर से नियंत्रित अस्पष्ट ऑफशोर बरमूडा और मॉरीशस फंड का इस्तेमाल राउंड-ट्रिप फंड और स्टॉक की कीमत बढ़ाने के लिए किया गया है.

हिंडनबर्ग ने कहा कि आईआईएफएल के एक प्रिंसिपल की ओर से हस्ताक्षरित फंड की घोषणा में कहा गया है कि निवेश का स्रोत 'वेतन' है और दंपति की कुल संपत्ति 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर आंकी गई है. हिंडनबर्ग ने आरोप लगाया गया है कि दस्तावेजों से पता चलता है कि सेबी की अध्यक्ष माधबी बुच और उनके पति के पास छोटी-छोटी संपत्तियों के साथ एक बहुस्तरीय ऑफशोर फंड संरचना में हिस्सेदारी थी. हिंडनबर्ग ने इस बात पर जोर दिया है कि सेबी विनियमित करने के लिए जिम्मेदार हैं.

इसने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया, जिसमें यह दर्ज किया गया था कि सेबी ने अडाणी के ऑफशोर शेयरधारकों को किसने फंड किया, इसकी जांच में 'कोई सुराग नहीं मिला'. हिंडनबर्ग ने कहा कि अगर सेबी वास्तव में ऑफशोर फंड धारकों को ढूंढना चाहता था, तो शायद सेबी के अध्यक्ष को आईने में देखकर शुरुआत करनी चाहिए थी. यह आश्चर्यजनक नहीं है कि सेबी उन बिंदुओं की जांच करने से परहेज करता रहा जिसके तार उसके अध्यक्ष से जुड़ते थे.

बता दें कि हिंडनबर्ग रिसर्च ने अतीत में इलेक्ट्रिक ट्रक निर्माता निकोला कॉर्प और एक्स जैसी कंपनियों को शॉर्ट किया है. पिछले साल जनवरी में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडाणी समूह पर 'कॉर्पोरेट इतिहास में सबसे बड़ा धोखा' करने का आरोप लगाया. हालांकि समूह ने सभी आरोपों का जोरदार खंडन किया, लेकिन इस निंदनीय रिपोर्ट ने समूह के शेयरों को तेजी से गिरा दिया, जिससे 10 सूचीबद्ध संस्थाओं के बाजार मूल्य में 150 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक की गिरावट आई. तब से 10 सूचीबद्ध कंपनियों में से अधिकांश ने घाटे की भरपाई कर ली है.

हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने बाजार नियामक सेबी से अपनी जांच पूरी करने और नियामक खामियों की जांच के लिए एक अलग विशेषज्ञ पैनल गठित करने को कहा. पैनल ने अडाणी पर कोई प्रतिकूल रिपोर्ट नहीं दी और सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि सेबी की ओर से की जा रही जांच के अलावा किसी अन्य जांच की आवश्यकता नहीं है.

सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड), जो हिंडनबर्ग रिपोर्ट से पहले भी अडाणी समूह की जांच कर रहा था, ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त पैनल को बताया था कि वह 13 अपारदर्शी अपतटीय संस्थाओं की जांच कर रहा है, जिनके पास समूह के पांच सार्वजनिक रूप से कारोबार किए जाने वाले शेयरों में 14 प्रतिशत से 20 प्रतिशत के बीच हिस्सेदारी है. इसमें यह नहीं बताया गया है कि क्या दो अधूरी जांच पूरी हो गई हैं.

हिंडनबर्ग ने कहा कि वर्तमान सेबी अध्यक्ष और उनके पति धवल बुच ने बरमूडा और मॉरीशस के उन्हीं अस्पष्ट अपतटीय फंडों में छिपे हुए शेयर रखे थे, जो विनोद अडाणी की ओर से इस्तेमाल किए गए एक ही जटिल नेस्टेड ढांचे में पाए गए थे.

व्हिसलब्लोअर से प्राप्त दस्तावेजों के हवाले से हिंडनबर्ग ने कहा है कि 22 मार्च, 2017 को, अपनी पत्नी को सेबी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने से कुछ सप्ताह पहले, धवल बुच ने मॉरीशस फंड प्रशासक ट्राइडेंट ट्रस्ट को पत्र लिखा था. यह ईमेल उनके और उनकी पत्नी के ग्लोबल डायनेमिक ऑपर्च्युनिटीज फंड (GDOF) में निवेश के बारे में था.

आरोप है कि पत्र में, धवल बुच ने 'खातों को संचालित करने के लिए अधिकृत एकमात्र व्यक्ति होने' का अनुरोध किया, जो राजनीतिक रूप से संवेदनशील नियुक्ति से पहले अपनी पत्नी के नाम से संपत्ति को हटाने जैसा प्रतीत होता है.

जीडीओएफ सेल 90 (आईपीईप्लस फंड 1) से संबंधित 26 फरवरी, 2018 को माधबी बुच के निजी ईमेल को संबोधित एक बाद के खाता विवरण में, संरचना का पूरा विवरण सामने आया है.

हिंडनबर्ग के अनुसार, माधबी बुच और उनके पति ने बरमूडा और मॉरीशस में अस्पष्ट ऑफशोर फंडों में अघोषित निवेश किया था, वही संस्थाएं जिनका कथित तौर पर विनोद अडाणी की ओर से उपयोग किया गया है.

कथित तौर पर ये निवेश 2015 से हैं, जो 2017 में सेबी के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में माधबी बुच की नियुक्ति और मार्च 2022 में सेबी अध्यक्ष के रूप में उनकी पदोन्नति से बहुत पहले की बात है. हिंडनबर्ग के अनुसार, बुच और उनके पति ने संभवतः 5 जून, 2015 को सिंगापुर में IPE प्लस फंड 1 के साथ अपना खाता खोला होगा।

IPE फंड एक छोटा ऑफशोर मॉरीशस फंड है, जिसे अडाणी के एक निदेशक ने इंडिया इंफोलाइन (IIFL) के माध्यम से स्थापित किया है, जो एक वेल्थ मैनेजमेंट फर्म है, जिसका वायरकार्ड गबन घोटाले से संबंध है.

हिंडेनबर्ग ने दावा किया कि गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी ने इस संरचना का उपयोग भारतीय बाजारों में निवेश करने के लिए किया, जिसमें कथित तौर पर अडाणी समूह को बिजली उपकरणों के ओवर-इनवॉइसिंग से प्राप्त धन शामिल था.

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Last Updated : Aug 11, 2024, 7:30 AM IST

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